-पीके खुराना-
शब्द खो जाते हैं, कहानियां जीवित रहती हैं। यही कारण है कि हमारा प्राचीन ज्ञान रामायण, महाभारत, गीता, पंचतंत्र आदि मुख्यत: कहानियां हैं और इसीलिए वे आज भी जीवित हैं और प्रासंगिक हैं। रामायण, महाभारत अथवा गीता को कहानी कहने का मेरा मकसद यह नहीं है कि मैं उनकी प्रामाणिकता पर शक कर रहा हूं, बल्कि मैं यह कहना चाहता हूं कि लंबी गुलामी और सैकड़ों-हजारों आक्रमणों के बावजूद रामायण और महाभारत के उपदेश आज भी इसलिए जीवित हैं क्योंकि वे कहानी के प्रारूप, या यूं कहें कि कहानी की भाषा में कहे गए, इसलिए सदियों से वे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को विरासत के रूप में सौंपे जा सके। यही कारण है कि अपनी बात कहने के लिए मैं अक्सर कहानियों का सहारा लेता हूं। आज भी अपनी बात मैं एक कहानी से ही शुरू कर रहा हूं। यह कहानी एक किसान की है जो अपने क्षेत्र में सबसे बढिय़ा गुणवत्ता का अनाज उगाता था। उसे हर साल बढिय़ा गुणवत्ता का अनाज उगाने के लिए पुरस्कार मिला करता था। उसे अपनी उपज के लिए अन्य किसानों के मुकाबले पैसा भी अधिक मिलता था। एक बार एक अखबार के संवाददाता ने उस किसान का इंटरव्यू किया तो उस संवाददाता को भी जीवन का एक ऐसा सबक सीखने को मिला जिसे हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं। वह किसान उन्नत किस्म के बीज लाता था और उसे अपने आसपास के खेत वाले किसानों में भी बांट देता था
संवाददाता को जब इस तथ्य का पता चला तो वह बहुत हैरान हुआ और उसने उस किसान से पूछा, ‘आप जानते हैं कि आपके पड़ोसी किसान भी उस प्रतियोगिता में भाग लेंगे जिसमें आपको हर वर्ष पुरस्कार मिलता है, तो भी आप बढिय़ा गुणवत्ता के बीज उनमें बांट देते हैं। क्या आपको डर नहीं लगता कि इससे वे पुरस्कार जीत जाएंगे और आप अपनी मेहनत के बावजूद पिछड़ जाएंगे?’ इस पर किसान ने कहा, ‘पकते हुए अनाज से पराग कण पैदा होते हैं। हवा और पक्षी उसे आसपास की जमीन पर बिखरा देते हैं। प्रकृति इसी से फलती-फूलती है। प्रकृति का यह नियम मुझ पर भी लागू होता है। यदि मेरे आसपास के खेतों में घटिया अनाज उगेगा तो वहां के पराग कण मेरे खेतों में भी आएंगे और उससे मेरे अनाज की गुणवत्ता घटती चली जाएगी। अगर मैं अच्छी गुणवत्ता का अनाज उगाना चाहता हूं तो यह आवश्यक है कि मेरे पड़ोसी भी अच्छी गुणवत्ता का अनाज उगाएं।’ हमारे जीवन में भी ऐसा ही होता है। यदि हम चाहते हैं कि हमारा जीवन खुशहाल हो तो हमें अपने समाज को भी खुशहाल बनाना होगा। गांधी जी ने एक बार कहा था, ‘मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।’
मैंने अपने जीवन में इसे कई बार अनुभव किया है। थायरोकेयर टैक्नालॉजीज के चेयरमैन ए. वेलुमनी भी एक ऐसे ही व्यक्ति हैं जिनका जीवन उनका संदेश है। उन्होंने थायरायड के टेस्ट के लिए देश की सर्वाधिक उन्नत प्रयोगशाला स्थापित की। इसके बावजूद देश भर में सबसे सस्ती दरों पर थायरायड का टेस्ट करना शुरू किया। इससे उनका व्यवसाय तेजी से फला-फूला। फिर उन्होंने देश भर में अपनी कंपनी के फ्रैंचाइज दिए। उनका फ्रैंचाइज माडल इतना आकर्षक था कि फ्रैंचाइजी खिंचे चले आए। अब थायरायड टेस्ट की दरों को उन्होंने इस प्रकार बनाया कि उनके फ्रैंचाइजी को उनसे भी ज्यादा मुनाफा मिले। इससे उनका व्यवसाय और भी तेजी से बढ़ा और आज वे थायरायड का टेस्ट करने वाली विश्व की सबसे बड़ी प्रयोगशाला के चेयरमैन हैं। वे भी इस नियम में ही विश्वास रखते हैं कि जीतना है, तो पहले अपने आसपास के लोगों को जिताना होगा। रामायण की बात करें तो भगवान राम के जीवन चरित्र से हमें एक महत्त्वपूर्ण शिक्षा मिलती है। वे जंगल में अकेले थे।
रावण ने माता सीता का हरण कर लिया था। उनके पास न सीता का पता लगाने का कोई साधन था, न उन्हें वापस पाने का कोई सिलसिला। अपने दुख के क्षणों में भी उन्होंने सुग्रीव की सहायता की। सुग्रीव को बाली के प्रकोप से छुटकारा दिलाया, उन्हें राजा बनाया। लाभ यह हुआ कि पूरी वानर सेना उनकी अपनी सेना बन गई। जंगलों में भटक रहा एक साधनहीन व्यक्ति अचानक एक साधन-संपन्न योद्धा बन गया। हम गांधी जी को पूजते हैं, मदर टेरेसा का सम्मान करते हैं, तो इसलिए कि उन्होंने अपने लिए नहीं, बल्कि समाज के लिए सोचा, समाज के उत्थान के लिए काम किया। गांधी जी जीवन के एक और नियम का बखान करते थे। वे कहते थे, ‘इस धरती में इतनी क्षमता है कि वह हर किसी की आवश्यकता पूरी कर दे, पर यह संभव नहीं है कि वह हर किसी का लालच भी पूरा कर दे।’ हम अक्सर डरपोकों का जीवन जीते हैं। हम इसलिए चीजें इक_ी करते हैं ताकि हमारा भविष्य सुरक्षित हो। इस लालच में हम जमाखोर बन जाते हैं।
लालच बढ़ता चलता है तो जमाखोरी भी बढ़ती है, लेकिन साथ-साथ डर भी बढ़ता जाता है कि हमारी सुविधाएं छिन न जाएं, जिससे और लालच बढ़ता है, और जमाखोरी बढ़ती है और परिणामस्वरूप तनाव बढ़ता है। इस प्रकार हम एक अंतहीन चूहादौड़ का हिस्सा बनकर अपने ही बनाए जाल में फंस जाते हैं और जीवन के असली आनंद से महरूम हो जाते हैं। जीवन का आनंद लेना हो तो अत्यधिक लालच से बचना चाहिए और सब्र रखना चाहिए। अंग्रेजी वर्णमाला का पहला अक्षर ‘ए’ है, लेकिन एक से 999 तक की गिनती के हिज्जों (स्पेलिंग) में ‘ए’ कहीं नहीं आता। ‘ए’ सर्वप्रथम ‘थाउजैंड’ में आता है। अंग्रेजी वर्णमाला का पहला अक्षर होने के बावजूद उसे सब्र रखना पड़ा। समय और मौका सबको मिलता है, लेकिन उसके लिए कर्म और सब्र आवश्यक है। गांधी जी कहा करते थे कि आप कर्मों के फल के बारे में पहले से कुछ नहीं जान सकते, लेकिन यदि आप कर्म नहीं करेंगे तो फल होगा ही नहीं। कर्म, सब्र और अपने आसपास के समाज की जीत का नजरिया ही आपकी जीत सुनिश्चित करता है। सफलता का यही मंत्र है, जीवन का यही मंत्र है! इस मंत्र को अपनाकर ही हम जीवन में सफल हो सकते हैं। इस मंत्र को आज से ही अपना लें।