नई दिल्ली। चर्चित कवि व आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता कुमार विश्वास द्वारा एक निजी चैनल द्वारा कराए गए साहित्य सम्मेलन में पढ़ी गई कविता आम आदमी पार्टी (आप) में भी चर्चा का केंद्र बन गई है। पार्टी के कई विधायकों व निगम पार्षदों व नेताओं ने कविता के बेहतर प्रदर्शन को लेकर गुपचुप तरीके से ही सही उन्हें शुभकामनाएं भेजी हैं।
इस कविता में उनके अंदर का दर्द छलका है। वहीं, उन्होंने इशारों ही इशारों में आप के मुखिया व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर तीखे व्यंग्य किए हैं। जो इशारा करते हैं कि केजरीवाल अब पहले वाले केजरीवाल नहीं रहे। उनके दरबार में काफी कुछ बदल चुका है।
सम्मेलन में मंच से कुमार विश्वास ने वह सब कुछ कह दिया। इसे शायद वह आप की राजनीतिक मामलों की कमेटी (पीएसी) की बैठक में नहीं बोल पाए थे, क्योंकि उन्हें वक्ताओं में शामिल ही नहीं किया गया था। खास बात यह है कि विश्वास ने केजरीवाल का नाम नहीं लिया।
उन्होंने कविता में मन की पीड़ा भी बयां की कि किस तरह जो लोग आंदोलन के समय उनके लफ्जों की छेनी से गढ़े गए थे। उस समय वे लोग उनकी तारीफ से नहीं थकते थे, मगर अब उन लोगों को उनके बोलने पर आपत्ति है।
यहां पर बता दें कि विश्वास इस समय राजस्थान के प्रभारी हैं। वह कहते हैं कि यह पद भी उन्हें जबरन दिया गया है। उन्होंने पार्टी की मुख्य टीम में जिम्मेदारी मांगी थी। मगर, उन्हें राजस्थान दे दिया गया और अब पार्टी के कुछ लोग उनकी इस जिम्मेदारी को लेकर भी परेशान हैं। विश्वास की मानें, तो वह चुप रहने वाले नही है, वह बोलेंगे।
पढ़ें कुमार विश्वास की कविता
..वो अब कहते हैं मत बोलो
पुरानी दोस्ती को इस नई ताकत से मत तौलो
ये संबंधों की तुरपाई है इसे षड्यंत्रों से मत खोलो
मेरे लहजे की छेनी से गढ़े देवता जो तब, मेरे लफ्जों पर मरते थे
वो अब कहते हैं मत बोलो।
चुप कैसे रहते
वे बोले दरबार सजाओ,
वे बोले जयकार लगाओ,
वे बोले हम जितना बोलें,
तुम केवल उतना दोहराओ।
वाणी पर इतना अंकुश कैसे सहते।
हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते।
हमने कहा कि अभी मत बदलो
दुनिया की आशाएं हम हैं।
वे बोले अब तो सत्ता की बरदाई भाषाई हम हैं।
हमने कहा कि व्यर्थ मत बोलो, गूंगों की भाषाएं हम हैं।
वे बोले बस शोर मचाओ, इसी शोर से आएं हम हैं।
इतने मतभेदों में मन की क्या कहते।
हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते।