आज टमाटर देश के खुदरा बाजार में और रेहडिय़ों पर 100-140 रुपए प्रति किलोग्राम बेचा जा रहा है, तो वह दौर याद आने लगता है, जब कृषि मंडियों के सौदागरों ने किसान का टमाटर मात्र 1-2 रुपए प्रति किलो खरीदने का भाव दिया था। यह कोई पुराना दौर नहीं है। अभी 3-4 माह ही बीते हैं, जब किसानों का ऐसा आर्थिक शोषण और मानसिक उत्पीडऩ किया गया। किसान को ‘मुफ्त का प्राणी’ समझा गया। उसे फसल का उचित मूल्य देने की बजाय मात्र 2 रुपए अथवा 10 रुपए के चेक देकर अपमानित किया गया। वे भी 15 दिन बाद के चेक…! कुछ मामले ऐसे सामने आए कि मंडियों के आढ़तियों ने गोल-मोल हिसाब करके किसान से ही भुगतान की मांग की। किसान आज भी आढ़तियों के मोहताज हैं, लिहाजा उनके जाल में फंसे हैं। नतीजतन किसान की आमदनी कैसे बढ़ सकती है? हम उन 86 फीसदी किसानों की बात कर रहे हैं, जिनके पास मात्र 2 हेक्टेयर जमीन है या वे खेतिहर मजदूर हैं। ऐसे हालात में किसान आत्महत्याएं करने पर विवश न हों, तो वे क्या करें? घर-परिवार कैसे चलाएं? अगली फसल कैसे बोएं? आढ़ती से उधार लेते रहें, तो एक दिन इतने कर्जदार हो जाएंगे कि सब कुछ नीलाम हो सकता है! किसी भी सरकार ने न तो तब हस्तक्षेप किया और न ही अब इस कालाबाजारी को रोक पा रही है। बेचारे किसानों को टमाटर सडक़ों पर फेंकना पड़ा अथवा उसने अपनी ही फसल को टै्रक्टर तले कुचल दिया। लागत गई, फसल नष्ट हो गई, लेकिन बाजार के जमाखोरों की बल्ले-बल्ले होती रही है।
टमाटर, प्याज आदि एक निश्चित मौसम में अचानक महंगे कर दिए जाते हैं। न जाने कौन-सी नियामक शक्ति यह फैसला लेती है और टमाटर देश भर में 100-140 रुपए प्रति किलो बिकने लगता है! राजधानी दिल्ली के कई बाजारों में टमाटर 90-140 रुपए किलो बेचा जा रहा है। जून के पहले पखवाड़े तक टमाटर 30-35 रुपए किलो मिल रहा था। अचानक 80, 100 और फिर 140 रुपए प्रति किलो के भाव में बेचा जाने लगा। खुदरा विक्रेता का एक ही बहाना है कि मंडी से ही महंगा आ रहा है। फिर दलीलें दी जाने लगीं कि बारिश के कारण टमाटर की सप्लाई अवरुद्ध हुई है, लिहाजा टमाटर कम हो गया है, नतीजतन महंगा बिक रहा है। भारत के कई राज्य टमाटर बोते हैं और साल में दो फसलें मिलती हैं। अनुमान है कि इस बार 2 लाख टन टमाटर पैदा हुआ है। वह संपूर्ण फसल कहां गई? यदि टमाटर महंगा बेचा जा रहा है, तो क्या इसका फायदा किसानों को भी मिलेगा? हमारा जवाब है कि बिल्कुल भी नहीं। यदि मंडियों के सौदागर कुल मिला कर 10 रुपए किलो के भाव से टमाटर खरीदते और फिर भी 120-140 रुपए में बेचा जाता, तो बीच का बाकी पैसा किसकी जेब में जाता? जाहिर है कि जो व्यापारी टमाटर की कालाबाजारी और जमाखोरी से जुड़े हैं, उनकी तिजौरियों में ही जाता।
यह वाहियात दलील भी दी जाती रही है कि किसान टमाटर की फसल नष्ट करने की बजाय कोल्ड स्टोरेज में जमा रखे और सही अवसर पर अपनी फसल बेचे, तो उसे ज्यादा मुनाफा मिल सकता है, लेकिन मंडी कानून में अलग ही प्रावधान हैं कि लाइसेंस प्राप्त मंडियों से ही खरीद की जा सकती है। किसान खुले बाजार में फसल बेच सके, इसका तो कानून लाया गया था, जिनके विरोध में करीब एक साल तक किसान आंदोलन चलाया गया। अंतत: प्रधानमंत्री को वे तीनों कानून वापस लेने पड़े और संसद के जरिए उन्हें खारिज करना पड़ा। टमाटर सलाद में भी खाया जाता है और सब्जियों में भी डाला जाता है। टमाटर हर रसोई और घर के लिए जरूरी है। यदि एक किलो टमाटर खरीदने वाला 250 ग्राम ही खरीदने लगे, तो उसके मायने ये भी होंगे कि आम आदमी अपना खर्च कम करता जा रहा है। उसके असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेंगे, क्योंकि भिंडी, अदरक, मिर्च, फूल गोभी के साथ-साथ तुअर और अरहर की दालें भी महंगी हैं। बहुत कुछ महंगा है, लिहाजा सरकार जो खुदरा महंगाई दर 4.25 फीसदी प्रचारित कर रही है, वह नकली लगती है। आगामी लोकसभा चुनाव अब ज्यादा दूर नहीं है। लगता है इस बार महंगाई चुनाव का मुख्य मुद्दा बनेगी।