नई दिल्ली।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कोई भी देश हो, उसके शिक्षण संस्थान उसकी उपलब्धियों का सच्चा प्रतिबिंब होते हैं। प्रधानमंत्री दिल्ली विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह के समापन अवसर पर बतौर मुख्यातिथि संबोधित कर रहे थे। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय ने ऐसे समय में अपने 100 वर्ष पूरे किए हैं, जब देश अपनी आजादी के 75 वर्ष पूरे करके अमृत महोत्सव मना रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय की इस 100 वर्षों की यात्रा में बहुत से इतिहासिक पड़ाव आए हैं। उन्होने इस इतिहासिक अवसर पर दिल्ली विश्ववियालय से जुड़े सभी लोगों को बधाई दी। इस अवसर पर शिक्षा और कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहे जबकि समापन समारोह की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने की। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर में बनने वाले प्रौद्योगिकी संकाय एवं कंप्यूटर सेंटर तथा मौरिस नगर में बनने वाले शैक्षणिक ब्लॉक के तीन नए भवनों के नींव पत्थर भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से रखे। समापन समारोह के कार्यक्रम का आयोजन दिल्ली विश्वविद्यालय के खेल परिसर के मल्टीपर्पज हॉल में किया गया था।
प्रधानमंत्री श्री मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि दिल्ली यूनिवर्सिटी एक संस्थान नहीं बल्कि एक मूवमेंट रही है। इस यूनिवर्सिटी ने हर मूवमेंट को जिया है। इस यूनिवर्सिटी ने हर मूवमेंट में जान भर दी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस सबके बीच डीयू ने 100 सालों में अगर अपने अहसासों को जिंदा रखा है तो अपने मूल्यों को भी जीवंत रखा है। उन्होने एक संस्कृत के श्लोक का वर्णन करते हुए कहा कि जिसके पास ज्ञान है, वही सुखी है, वही बलवान है। उन्होंने कहा कि जब भारत के पास नालंदा जैसे विश्वविद्यालय थे तो भारत समृद्धि के शिखर पर था। जब भारत के पास तक्षशिला जैसे संस्थान थे तब भारत का विज्ञान विश्व को गाइड करता था। भारत की समृद्ध शिक्षा व्यवस्था भारत की समृद्धि की वाहक थी। उस समय दुनिया की जीडीपी में बहुत बड़ा शेयर भारत का होता था। लेकिन गुलामी के सैंकड़ों वर्षों के कालखंड ने हमारे शिक्षा के मंदिरों को तबाह कर दिया। और जब भारत का बौद्धिक प्रवाह रुका तो भारत की ग्रोथ भी थम गई थी। लंबी गुलामी के बाद देश आजाद हुआ। इस दौरान आजादी के भावात्मक ज्वार को एक मूर्त रूप देने में भारत के विश्ववियालयों ने एक अहम भूमिका निभाई थी। इनके जरिये एक ऐसी युवा पीढ़ी खड़ी हुई जो उस समय के आधुनिक विश्व को लालकार सकती थी। दिल्ली विश्वविद्यालय भी इस मूवमेंट का एक बड़ा केंद्र था। अतीत की ये समझ हमारे अस्तित्व और आदर्शों को आधार देती है और भविष्य के विजन को विस्तार देती है। कोई इंसान हो या संस्थान, जब उसके संकल्प देश के लिए होते हैं तो उसकी सफलता भी देश की सफलताओं से कदम मिलकर चलती है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि कभी भारत की अर्थव्यवस्था खस्ता हाल थी। आज भारत दुनिया की टॉप पाँच अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। उन्होने कहा कि आज डीयू में पढ़ने वाले लड़कों कि तुलना में लड़कियों की संख्या ज्यादा है। इसी तरह देश में भी लिंग अनुपात में काफी सुधार आया है। यानि शिक्षण संस्थान की जड़ें जितनी गहरी होती हैं, देश की शाखाएँ उतनी ही ऊंचाइयों को छूती हैं। इसलिए भविष्य के लिए भी विश्वविद्यालय और देश के संकल्पों में एकरूपता होनी चाहिए। श्री मोदी ने कहा कि 25 साल बाद जब देश अपनी आजादी के 100 वर्ष पूरे करेगा तब दिल्ली विश्वविद्यालय अपनी स्थापना के 125 वर्ष मनाएगा। अब हमारा लक्ष्य 2047 तक विकसित भारत का निर्माण है। पिछली सदी के तीसरे दशक ने स्वतंत्रता संग्राम को नई गति दी थी। अब इस शताब्दी का ये तीसरा दशक भारत की विकास यात्रा को एक नई रफ्तार देगा।
श्री मोदी ने कहा कि आज देश में बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय और कॉलेज बनाए जा रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी और एआईएमएस जैसी संस्थाओं की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। ये सभी संस्थान न्यू इंडिया के बिल्डिंग ब्लॉक्स बन रहे हैं। उन्होने कहा कि लंबे समय तक शिक्षा का फोक्स इसी बात पर रहा कि छात्रों को क्या पढ़ाया जाना चाहिए, लेकिन हमने फोक्स इस बात पर भी सिफ्ट किया कि छात्र क्या सीखना चाहता है। आप सभी के समूहिक प्रयासों से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति तैयार हुई है। अब छात्रों को ये बड़ी सुविधा मिली है कि वो अपनी इच्छा से अपनी पसंद के विषयों का चुनाव कर सकते हैं। शिक्षण संस्थाओं की क्वालिटी बेहतर बनाने के लिए भी हम लगातार काम कर रहे हैं। इन संस्थानों को कंपीटेटिव बनाने के लिए हम नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क लेकर आए हैं। इससे देश भर के संस्थानों को मोटिवेशन मिल रहा है। हमने संस्थाओं की स्वायत्ता को क्वालिटी ऑफ एजुकेशन से भी जोड़ा है। जितना बेहतर संस्थाओं का प्रदर्शन होगा उतनी ही बेहतर उनको स्वायत्ता मिल रही है। आज इंण्डियन यूनिवर्सिटीज़ की ग्लोबल पहचान बढ़ रही है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि 2014 में क्यूएस वर्ल्ड रैंकिंग में केवल 12 भारतीय विश्वविद्यालय थे, लेकिन आज ये संख्या 45 हो गई है। हमारे शिक्षण संस्थान दुनिया में अपनी अलग पहचान बना रहे हैं। क्वालिटी एजुकेशन और स्टूडेंट्स-फ़ैकल्टि रेशो आदि में तेजी से सुधार कर रहे हैं। इन सबके पीछे जो सबसे बड़ी गाइडिंग फोर्स काम कर रही है, वो है भारत की युवा शक्ति। उन्होने कहा कि एक समय था जब विद्यार्थी किसी संस्थान में दाखिला लेने से पहले प्लेसमेंट को ही महत्व देते थे, लेकिन आज युवा ज़िंदगी को इसमें बांधना नहीं चाहता। वो कुछ नया करना चाहता है, अपनी लकीर खुद खींचना चाहता है। उन्होने कहा कि 2014 से पहले भारत में कुछ सौ स्टार्टप्स थे, लेकिन आज भारत में स्टार्टप्स की संख्या एक लाख को भी पार कर गई है। 2014-15 की तुलना में पेटेंट में भी पाँच गुना से ज्यादा का इजाफा हुआ है।
प्रधानमंत्री ने अपनी हाल ही की अमेरिका यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि आज भारत का सम्मान और गौरव कितना बढ़ा हुआ है, इसके पीछे यह कारण है कि भारत की क्षमता बढ़ी है। भारत के युवाओं पर विश्व का भरोसा बढ़ा है। उन्होने बताया कि उनकी इसी यात्रा में भारत और अमेरिका के बीच इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी पर एक डील हुई है। इस एक समझौते से हमारे युवाओं के लिए धरती से लेकर स्पेस तक, सेमीकंडक्टर से लेकर एआई तक तमाम फील्ड्स में नए अवसर पैदा होने वाले हैं। जो तकनीक पहले भरत की पहुँच से बाहर होती थी, अब हमारे युवाओं को उनकी एक्सस मिलेगी। उन्होंने कहा कि बीते वर्षों में भारत ने अपने स्पेस सैक्टर को खोला है। भारत ने अपने डिफेंस सैक्टर को खोला है। भारत ने ड्रोन से जुड़ी नीतियों में बड़ा बदलाव किया है। इन सभी निर्णयों से देश के ज्यादा से ज्यादा युवाओं को आगे बढ़ने का मौका मिल रहा है।
मोदी ने कहा कि आज दुनिया के लोग भारत की संस्कृति को जानना चाह रहे हैं। कोरोना के समय दुनिया का हर देश अपनी जरूरतों के लिए परेशान था, लेकिन भारत अपनी जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ दूसरे देशों की भी मदद कर रहा था। लिहाजा विश्व में ये जानने का कौतूहल पैदा हुआ कि भारत में वो कौन से संस्कार हैं, जो संकट में भी सेवा का संकल्प पैदा करते हैं। भारत का बढ़ता सामर्थ्य हो या भारत की जी-20 की अध्यक्षता हो, ये सभी भारत के प्रति कौतूहल बढ़ा रहे हैं। उन्होने कहा कि देश में हिस्ट्री, हेरिटेज और कल्चर से जुड़े क्षेत्रों में भी युवाओं के लिए अपार संभावनाएँ बढ़ा दी हैं। आज देश के अलग-अलग राज्यों में ट्राइबल म्यूजियम बन रहे हैं। दिल्ली में विश्व का सबसे बड़ा हेरिटेज म्यूजियम बनने जा रहा है। कला, संस्कृति और इतिहास से जुड़े युवाओं के लिए पैशन को प्रोफेशन बनाने के इतने अवसर पैदा हो रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया में भारतीय शिक्षकों की भी एक अलग पहचान बनी है। भारत की सॉफ्ट पावर भारतीय युवाओं की सक्सेस स्टोरी बन सकती है। उन्होने कहा कि यूनिवर्सिटी को अपने लिए रोड़ मैप बनाना होगा, अपने लक्ष्यों को तय करना होगा ताकि जब आप इस संस्थान के 125 वर्ष मनाएं, तब आपकी गिनती दुनिया की टॉप रैंकिंग वाली यूनिवर्सिटीज़ में हो। इसके लिए तैयारी करें। फ्यूचर मेकिंग इनोवेशन्स आपके यहाँ हों, दुनिया के बेस्ट आइडिया और लीडर आपके यहाँ से निकलें, इसके लिए आपको लगातार काम करना होगा।
प्रधानमंत्री ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि जब हम अपने जीवन से कोई लक्ष्य तय करते हैं, तो उसके लिए पहले हमें अपाने मन मस्तिस्क को तैयार करना होता है। एक राष्ट्र के मन मस्तिक को तैयार करने की ये ज़िम्मेदारी उसके शैक्षणिक संस्थानों को निभानी होती है। हमारी नई पीढ़ी फ्यूचर रेडी है, वो चुनौतियों को स्वीकार करने और मुक़ाबला करने का टेम्परामेंट रखती है। ये शिक्षा संस्थान के विजन और मिशन से ही संभव होता है। प्रधानमंत्री ने विश्वास जताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय अपनी इस यात्रा को आगे बढ़ाते हुए इन संकल्पों को जरूर पूरा करेगी।
समारोह में बतौर विशिष्ट अतिथि पहुंचे शिक्षा और कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अपने संबोधन में कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय नाम से चाहे दिल्ली से जुड़ा लगे, लेकिन यह पूरे देश का विश्वविद्यालय है। उन्होने कहा कि भारत की आजादी की लड़ाई का संबंध डीयू से जुड़ा रहा है। उन्होने शहीद भगत सिंह के डीयू के तहखाने में रखने और चंदर शेखर आजाद का जिक्र करते हुए कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय से आजादी की लड़ाई का गहरा संबंध रहा है। धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा कि जब 1973-74 में भारत के संविधान पर संकट आया तो सबसे पहले दिल्ली विश्वविद्यालय ने आवाज उठाई। उन्होने कहा कि पिछले 100 सालों में दिल्ली विश्वविद्यालय ने देश को अनेक वैज्ञानिक, जननेता, उद्योग जगत,न्याय पालिका के बहुत बड़े-बड़े व्यक्तित्व और कला-साहित्य व पत्रकार दिये हैं। उन्होने कहा कि 100 साल पूरे होने पर हम सबकी जिम्मेवारी और ज्यादा बढ़ जाती है। उन्होने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदृष्टि के कारण 34 साल बाद नई शिक्षा नीति लागू की गई है। उन्होने दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा सबसे पहले इसे अपनाने के लिए सभी को बधाई दी। शिक्षा मंत्री ने एनआईआरएफ़ रैंकिंग में दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों के पहले-दूसरे स्थानों पर आने पर भी बधाई दी। उन्होने दिल्ली विश्वविद्यालय से अपेक्षा जताई की अमृतकाल में डीयू देश की ज़िम्मेदारी लेगा।
समारोह के आरंभ में दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने प्रधानमंत्री और शिक्षा मंत्री सहित सभी अतिथियों का स्वागत किया। कुलपति ने दिल्ली विश्वविद्यालय की 100 वर्ष की गौरवपूर्ण यात्रा और शताब्दी वर्ष की उपलब्धियों पर भी प्रकाश डाला। कुलपति ने अपने संबोधन में कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने मिशन मोड में भर्तियाँ करने का आह्वान किया और शिक्षा मंत्री ने लगातार इसकी समीक्षा की, उसी का परिणाम है कि डीयू ने दशकों के बाद 2200 शिक्षकों की भर्तियाँ की हैं। कुलपति ने कहा कि अपने 100 वर्षों में दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली के हर घर में गया, देश के हर जिले में गया, हर तहसील में गया और संसार में जितने भी देश हैं वहां पर आपको कहीं न कहीं दिल्ली विश्वविद्यालय के विद्यार्थी मिल जाएंगे। कुलपति ने कहा कि प्रधानमंत्री जी ने संकल्प लिया कि 2047 तक भारत एक विकसित राष्ट्र होगा। दिल्ली विश्वविद्यालय की उसमें क्या भूमिका हो सकती है, इसके लिए हमने भी अपना एक स्ट्रेटजी प्लान तैयार किया है, ताकि भारत सरकार के सहयोग से यह प्रभावी और आवश्यक भूमिका निभा सके। इसके लिए शिक्षकों को और मेहनत करनी पड़ेगी। अपने मन को बड़ा करना पड़ेगा। उन्होने शिक्षकों से आह्वान किया कि अमृत काल में भारत उनसे असाधारण प्रदर्शन की अपेक्षा करता है।
मेट्रो से पहुंचे प्रधानमंत्री
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह के समापन कार्यक्रम में दिल्ली मेट्रो से पहुंचे। उन्होंने अपने संबोधन में इसका जिक्र करते हुए कहा कि वे दिल्ली मेट्रो स्टेशन से अपने युवा साथियों के साथ गपशप करते हुए यहां पहुंचे हैं। उन्होने कहा कि उनके लिए दिल्ली विश्वविद्यायल में आना अपनों के बीच आने जैसा है। उन्होने कहा कि उन्हें विश्वास था कि उन्हें यहाँ आने पर अपने पुराने साथियों से मिलने का मौका मिलेगा और वह मौका आज मिल रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आप चाहे किसी भी वर्ष के पासआउट हों, दो डीयू वाले कहीं भी आपस में मिल जाएं, वह घंटों इकट्ठे निकाल सकते हैं।
डीयू के गौरवपूर्ण 100 वर्षों की यात्रा पर लगाई प्रदर्शनी
इस अवसर पर मल्टीपर्पज हॉल के बेसमेंट में एक प्रदर्शनी का आयोजन भी किया गया। विश्वविद्यालय के गौरवपूर्ण 100 वर्षों की यात्रा पर आयोजित इस प्रदर्शनी में विभिन्न कॉलेजों व विश्वविद्यालय के केंद्रीय अभिलेखागार आदि से विशिष्ट सामग्री जुटाई गई थी। इसके अतिरिक्त विदेशी विद्यार्थियों, दिल्ली विश्वविद्यालय से निकले पैरा ओलंपियनों और एनसीवेब सहभागियों ने भी इसमें भाग लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रदर्शनी का अवलोकन किया और विद्यार्थियों के साथ इंटरैक्शन भी किया
समारोह से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े लाखों लोग
शताब्दी वर्ष समारोह के समापन समारोह का सीधा प्रसारण भी किया गया जिसे सभी कॉलेजों और दिल्ली विश्वविद्यालय के सभी विभागों में स्क्रीन लगा कर दिखाया गया। इस प्रकार कार्यक्रम में प्रत्यक्ष रूप से जुड़े करीब 4000 लोगों के अतिरिक्त वर्चुअल (अप्रत्यक्ष) रूप से भी करीब चार लाख लोग इस ऐतिहासिक समापन समारोह से जुड़े।
पूर्व उपराष्ट्रपति ने किया था शताब्दी समारोह का आगाज
दिल्ली विश्वविद्यालय की स्थापना वर्ष 1922 में एक मई को हुई थी। गत वर्ष विश्वविद्यालय ने अपनी स्थापना की सौ वर्ष पूरे होने पर शताब्दी वर्ष समारोह का आयोजन किया था। विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह का उद्घाटन एक मई, 2022 को हुआ था जिसमें तत्कालीन उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू मुख्य अतिथि थे और शिक्षा और कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान विशिष्ट अतिथि थे। समारोह के दौरान विश्वविद्यालय की 100 वर्ष की ऐतिहासिक यात्रा के आलोक में शताब्दी स्मारक टिकट तथा 100 रुपये मूल्य का स्मारक सिक्का भी जारी किया था।
वर्ष भर चलता रहा कार्यक्रमों का दौर
वर्ष भर चले शताब्दी समारोह के दौरान अनेकों कार्यक्रम आयोजित किए गए। इस वर्ष के दौरान सेंटेनरी चान्स के तहत उन पूर्व विद्यार्थियों को भी अपनी डिग्रियां पूरी करने का मौका मिला जो किन्हीं कारणों से अपने समय में अपनी डिग्रियां पूरी नहीं कर पाए थे। दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा शताब्दी वर्ष में अनेक बड़े अकादमिक एवं प्रशासनिक फैसले लिए गए। इनमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप नए यूजीसीएफ पाठ्यक्रम को स्वीकार एवं लागू करना और सीयूईटी के माध्यम से प्रवेश परीक्षा के आधार पर स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर नामांकन जैसे महत्त्वपूर्ण फैसले शामिल हैं।