पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर पर सर्वदलीय बैठक भी हो गई। गृहमंत्री अमित शाह ने अध्यक्षता की, क्योंकि प्रधानमंत्री विदेशी प्रवास पर थे। बैठक के निष्कर्ष सार्वजनिक नहीं किए गए। अलबत्ता गृहमंत्री ने राज्य के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को हटाने से इंकार कर दिया। मुख्यमंत्री ने दिल्ली में गृहमंत्री शाह से मुलाकात कर मणिपुर के हालात का खुलासा किया। दावा किया जा रहा है कि 13 जून के बाद कोई भी हताहत नहीं हुआ। यह सरकारी कथन अपने आधार पर सही हो सकता है, लेकिन हकीकत देश के सामने है। मणिपुर में उग्रवाद का जो पुराना दौर लौट रहा है, वह किसी भी हताहत, अराजकता, आगजनी, अवैध हथियार और गोला-बारूद से ज्यादा खतरनाक है। करीब 1500 महिलाओं की भीड़, कथित सेना, ने जिन 12 उग्रवादियों को सरकारी हिरासत से छुड़वाया है, वह कोई बेहतर स्थिति नहीं है। यह प्रवृत्ति बड़ी भयावह है। मणिपुर के गली-मुहल्लों में कथित उग्रवादी भीड़ की ही हुकूमत है। मुक्त कराए गए उग्रवादी प्रतिबंधित संगठन ‘कंग्लेई यावोल कन्ना लुप’ (केवाईकेएल) के सदस्य हैं। यह संगठन मैतेई समुदाय से जुड़ा है।
उनमें एक ऐसा हत्यारा उग्रवादी भी था, जिस पर 18 सैनिकों की जान लेने के आरोप हैं। इस स्थिति पर सर्वदलीय बैठक में कोई चर्चा नहीं हुई, क्योंकि विपक्ष मुख्यमंत्री को ही ‘बलि का बकरा’ बनाने पर आमादा था। मुक्त कराए गए 12 उग्रवादियों से बड़ी संख्या में हथियार और गोला-बारूद भी बरामद किए गए। सेना की टुकड़ी उन्हें अपने साथ जरूर ले आई। मणिपुर में उग्रवाद का लंबा दौर रहा है। गनीमत है कि आज वहां संविधान, लोकतंत्र और न्यायपालिका पूरी तरह लागू हैं, लिहाजा सरकार और प्रशासन भी कार्यरत हैं। यह स्थिति विद्रूप हो सकती है, जैसा वर्ष 2000 से पहले था। यदि मणिपुर में उग्रवाद की वापसी होती है, तो वह एक बार फिर शेष देश से कट सकता है। मणिपुर भी भारत का अंतरंग हिस्सा है, लिहाजा सरकार के स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री शाह और जिम्मेदार अधिकारियों को ज्यादा चिंतित होकर हस्तक्षेप करना चाहिए और एक भरे-पूरे राज्य को ‘राख’ होने से बचाना चाहिए। मैतेई और कुकी, नगा आदि समुदाय मणिपुर के अस्तित्व से ही वहां के निवासी हैं। उनके विरोधाभास भी ‘सनातन’ हैं, लेकिन ‘भीड़तंत्र’ के जरिए उग्रवाद लौट रहा है। राज्य के आधा दर्जन जिलों-विष्णुपुर, इंफाल पूर्व, इंफाल पश्चिम, उखरुल, चूराचांदपुर, कंग्पोक्पी-में ‘भीड़तंत्र’ सेना, सुरक्षा बलों, पुलिस के ऑपरेशनों पर हावी है। हालांकि सुरक्षा बल और सेना ने अपने ऑपरेशनों के दौरान मणिपुरी जनता के प्रति धैर्य, संयम दिखाया है, लेकिन ‘भीड़तंत्र’ ने हमारे सैनिकों, जवानों को भी नहीं बख्शा है।
भीड़ ने राज्य के मंत्री सुशीन्द्रो का एक और गोदाम जलाकर खाक कर दिया है। बीती 23 जून को मंत्री का ही एक गोदाम जला दिया गया था। इस स्थिति को केंद्रीय गृहमंत्री और मुख्यमंत्री क्या कहेंगे? भाजपा के कार्यालय में भी आगजनी की गई है। हजारों लोग मणिपुर से विस्थापित हो चुके हैं। बेशक मरने वालों की संख्या सरकार कम बता रही है, लेकिन मणिपुर अशांत है, लगातार जल रहा है। प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा ‘डबल इंजन सरकार’ पर बहुत इतराते रहे हैं, लेकिन मणिपुर के जमीनी हालात देखकर कहा जा सकता है कि राज्य सरकार का इकबाल बिल्कुल खत्म हो चुका है। एक इंजन भी फेल हो चुका है। ‘भीड़तंत्र’ की आड़ में उग्रवादी, दंगई, अतिवादी सक्रिय हैं, जिनकी आज अपनी हुकूमत है। मैतेई और अन्य जनजातियों के विभाजन कोई जातीय नहीं, राजनीतिक मुद्दा हैं। यह सामाजिक समस्या भी नहीं है, लिहाजा केंद्र सरकार को दखल देकर राज्य सरकार और प्रशासन का ‘इकबाल’ बहाल करना होगा। राज्य में नागरिकों का भरोसा जीतना होगा। दिल्ली में जंतर-मंतर पर बैठे मणिपुरियों को यह कहने की नौबत नहीं आनी चाहिए कि मुख्यमंत्री ने उन्हें अलग कर दिया है, लिहाजा उन्हें अपनी सरकार, अपना प्रशासन दिया जाना चाहिए। एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल मणिपुर भेजने के कोई फायदे नहीं हैं। हरसंभव कोशिश की जानी चाहिए कि मणिपुर में उग्रवाद की वापसी न हो।