राष्ट्रपति जो बाइडेन और प्रधानमंत्री मोदी के द्विपक्षीय संवाद के बाद भारत की लगभग तमाम मुरादें और अपेक्षाएं सम्पन्न हो गईं। साझा बयान और सहमति-पत्रों पर हस्ताक्षर से यह स्पष्ट है। लड़ाकू विमान के इंजन एफ-414, विनाशक ड्रोन, सेमीकंडक्टर, घातक मिसाइल, तोप, राइफल आदि अस्त्रों और रक्षा उपकरणों का उत्पादन अब भारत में होगा। हमारी कंपनियां उत्पादन करेंगी। अमरीका ने प्रौद्योगिकी साझा करने के करारों पर भी दस्तखत किए हैं। इसरो-नासा संयुक्त अंतरिक्ष मिशन के जरिए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तक जाएंगे। मानव को अंतरिक्ष में ले जाने की रणनीति पर भी दोनों संगठन विमर्श करेंगे। माइक्रोन कंपनी 22,500 करोड़ रुपए की लागत से प्लांट लगाएगी और सेमीकंडक्टर असेंबली पर 6500 करोड़ रुपए का निवेश करेगी। सेमीकंडक्टर से ही जुड़ी एक और विख्यात कंपनी देश में 60,000 इंजीनियरों को प्रशिक्षित करेगी और फिर रोजगार देगी। कमोबेश अब हमें सेमीकंडक्टर चिप्स के लिए चीन, सिंगापुर पर आश्रित नहीं रहना पड़ेगा। 5-जी और 6-जी प्रौद्योगिकी में भी अमरीकी सहयोग और क्वांटम समन्वय करार भी किया गया है। जिस अमरीका ने 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भारत को जीपीएफ डाटा देने से इंकार कर दिया था, वही अमरीका आज भारत के साथ विविध स्तर की साझेदारी के करार करने को उतावला है। जाहिर है कि भारत बहुत बदला है। वैसे अमरीकी राष्ट्रपति तब भी और आज भी डेमोक्रेटिक पार्टी के रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी के राजकीय प्रवास के दौरान भारत की झोली खूब भरी गई, लेकिन डेमोक्रेटिक पार्टी के ही पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक सवालिया तोहमत लगाते हुए कहा है कि राष्ट्रपति बाइडेन को प्रधानमंत्री मोदी से, भारत में अल्पसंख्यक मुसलमानों की सुरक्षा और आसन्न संकटों पर, सवाल जरूर करना चाहिए। बराक ने साक्षात्कार में यह भी साफ किया है कि यदि वह आज अमरीका के राष्ट्रपति होते, तो भारतीय प्रधानमंत्री से यह सवाल जरूर करते। बराक ओबामा राष्ट्रपति रहे हैं और बाइडेन 8 सालों तक उनके उपराष्ट्रपति थे। जब प्रधानमंत्री मोदी ने अमरीका का दौरा किया था और पहली बार अमरीकी संसद को संबोधित किया था, तब बराक ही राष्ट्रपति थे। प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति ओबामा को कई मौकों पर अपना ‘मित्र’ भी घोषित किया था। बराक ओबामा ने यह सवाल तब क्यों नहीं उठाया? यही नहीं, अमरीका के 75 सांसदों ने राष्ट्रपति बाइडेन को पत्र लिख कर आग्रह भी किया था कि प्रधानमंत्री मोदी से भारत में धार्मिक असहिष्णुता, राजनीतिक अंकुश, अभिव्यक्ति की कम आजादी, असुरक्षित अल्पसंख्यक, मानवाधिकार हनन, लोकतंत्र-संविधान पर संकट, इंटरनेट प्रतिबंध आदि पर सवाल पूछे जाने चाहिए।
इन्हीं मुद्दों को लेकर अमरीका के कुछ हिस्सों में विरोध-प्रदर्शन भी किए गए। बहरहाल साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक पत्रकार के सवाल पर प्रधानमंत्री मोदी ने यह जवाब दिया कि भारत और अमरीका के डीएनए में लोकतंत्र है। हमारी सरकार संविधान के आधार पर, लोकतंत्र के मूल्यों को लेकर, चलती है। हमने साबित किया है कि सरकार लोकतंत्र को लेकर जीती है। जब हम लोकतंत्र को लेकर जीते हैं, तब भेदभाव का सवाल ही नहीं उठता। अगर मानवाधिकार नहीं है, तो लोकतंत्र ही नहीं है। भारत में जो लोगों के अधिकार हैं, वे उन्हें मिलते हैं। कोई भेदभाव नहीं है। न धर्म के आधार पर और न ही जाति के आधार पर…। हमें बराक ओबामा सरीखों के परंपरागत सवाल ‘प्रायोजित’ लगते हैं। बहरहाल यह दौरा भारत-अमरीका की दोस्ती और दुनिया में शांति-स्थिरता के लिए निभाई जाने वाली भूमिका के मद्देनजर है।