इस बात को हुए करीब पचास साल बीत चुके हैं लेकिन आज भी नानाजी इस बात को उतने ही मजे से बताते हैं। मेरे नानाजी तब चैथी कक्षा में पढ़ा करते थे। उनका छोटा-सा गांव था और पूरे गांव में सिर्फ एक ही स्कूल था। उन्हें स्कूल जाना कोई खास पसंद नहीं था। उनके मास्टरजी थे, कन्हैया लाल। कहने को वो गणित पढ़ाते थे लेकिन जब कोई उनसे कठिन सवाल पूछता तो गोल-गोल बातें करके उसे टाल जाते थे।
ऐसा अक्सर ही हुआ करता था, फिर क्लास के सारे बच्चों ने मिलकर मास्टरजी को स्कूल से निकलवाने की योजना बनाई। हुआ यूं कि मास्टर जी क्लास में थोड़े लेट पहुंचे,थोड़े थके हुए भी नजर आ रहे थे। नानाजी का सबसे अच्छा फ्रेंड था शंभू, वह गणित में एक्सपर्ट था। मास्टरजी के आने से पहले ही सारे बच्चों ने पास के गांव से स्कूल के हेडमास्टर बालकृष्ण राय को बुला लिया था और वो छुपकर दूसरे कमरे में बैठे थे।
शंभू गणित का सवाल लेकर मास्टरजी की टेबल के सामने खड़ा हो गया, सवाल देखते ही उन्होंने बहाने बनाना शुरू कर दिए। ये सारी बातें हेडमास्टर जी चुपके से सुन रहे थे और मास्टरजी की बात सुनते ही वो भी शंभू के साथ टेबल के सामने आकर खड़े हो गए। फिर तो मानो शब्द मास्टरजी के मुंह में ही अटक गए थे, वो हड़बड़ा कर खड़े हो गए।
हेडमास्टरजी ने क्लास के सारे बच्चों से मास्टरजी के बारे में पूछा और सबने थोड़ा डरते हुए यही बताया कि मास्टरजी से गणित के सवाल हल ही नहीं होते। अब तो मास्टरजी के पास कोई जवाब नहीं था, वो सिर झुकाए चुपचाप क्लास से बाहर चले गए और सारे बच्चे उन्हें जाते हुए देखते रहे।