-सनत जैन-
पिछले डेढ़ माह से मणिपुर में कुकी और मेतई समुदाय के बीच आरक्षण को लेकर जो जातीय हिंसा शुरू हुई है। वह थमने का नाम नहीं ले रही है। भाजपा के एक सांसद और केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री राजकुमार रंजन के घर में भीड़ द्वारा आग लगा दी गई। मणिपुर के मंत्रियों और कई विधायकों के घर जला दिए गए। मणिपुर राज्य में 65000 से अधिक सैन्य बल तैनात है। कर्फ्यू कई बार लगाया गया। कई बार इंटरनेट बंद किया जा चुका है, अभी भी बंद है। मणिपुर के कई थानों एवं सुरक्षा बलों के ठिकाने से बड़ी मात्रा में हथियार लूट लिए गए। दोनों ही पक्ष के उन्मादी भीड़ एक दूसरे समुदाय के ऊपर हमले कर रहे हैं। एंबुलेंस में 3 घायलों को पुलिस अभिरक्षा में जिंदा जला दिया गया। दोनों ही समुदायों के लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर सैन्य बलों की तैनाती होते हुए भी, बड़े पैमाने पर हिंसा की जा रही है। राज्य के मुख्यमंत्री भड़काऊ बयान दे रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मणिपुर दौरे में गए थे। उन्होंने स्थिति पर काबू करने के लिए हरसंभव कोशिश की। पिछले 3 वर्षों में जिस तरह से बहुसंख्यक मैतई समुदाय और वहां की सरकार द्वारा कुकी नगा समुदाय की अनदेखी कर उसे प्रताड़ित किया जा रहा है। जिससे नाराज होकर मणिपुर में दोनों समुदायों के बीच अस्तित्व को लेकर आर पार की लड़ाई शुरू हो गई है। सत्ता पक्ष के ऊपर किसी का विश्वास नहीं रहा। दोनों ही समुदाय के लोग बड़ी संख्या में मारे जा रहे हैं। अभी तक 100 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। सत्तापक्ष, बहुसंख्यक वर्ग को भी सुरक्षित नहीं रख पा रहा है। डबल और ट्रिपल एंजिन की सरकार होते हुए भी, केंद्र और राज्य सरकार स्थिति पर नियंत्रण नहीं कर पा रही है। सबसे बड़े आश्चर्य की बात है कि मणिपुर के मुख्यमंत्री वीरेन सिंह दावा कर रहे हैं, कि इस गड़बड़ी में विदेशी घुसपैठियों का हाथ है। मेतई समुदाय मणिपुर में बहुसंख्यक है बहुसंख्यक समाज का समर्थन पाने के लिए सरकार द्वारा आरक्षण का लॉलीपॉप दिया गया। मेतई समुदाय के लोग कई जातियों में बंटे हुए हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी वहां पिछले दो-तीन वर्षों से अति-सक्रिय है। दोनों समुदाय के बीच हिन्दु और ईसाई का ध्रुवीकरण किया गया। सैकड़ों चर्च जला दिये गए। विभिन्न जातियों के बीच में सुनियोजित रूप से वैमनस्य फैलाया गया। वोटों की राजनीति ने मणिपुर को, सीरिया और लीबिया जैसा बना दिया है। एल. निशीकांत सिंह लेफ्टिनेंट जनरल के पद से रिटायर हुए हैं। उनका कहना है कि मेरे राज्य में आज अराजकता का जो माहौल है। उसमें कोई भी व्यक्ति किसी की भी जान ले सकता है। किसी की भी संपत्ति को नुकसान पहुंचा सकता है। जैसे लीबिया, नाइजीरिया और सीरिया के हालात हैं। वैसे ही हालात मणिपुर के हो गए हैं। केंद्र और राज्य सरकार यहां के लोगों की बात नहीं सुन रही है। हमें यहां पर, अपने ही हाल में छोड़ दिया गया है। मणिपुर राज्य में केंद्र सरकार और राज्य सरकार के ऊपर, दोनों ही समुदाय के लोगों को विश्वास नहीं रहा। केंद्रीय मंत्री अमित शाह का दौरा भी काम में नहीं आया। मणिपुर से जानकारी मिल रहा है। उसके अनुसार यदि शांति स्थापित करना है, तो वहां के लोगों को भरोसा दिलाना पड़ेगा। दोनों समुदायों के उनके हितों की रक्षा करनी होगी। वर्तमान स्थिति में केंद्र सरकार यदि सभी राजनीतिक दलों को साथ लेकर इस समस्या के समाधान के लिए आगे आना होगा। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो मणिपुर की स्थिति आने वाले दिनों में और भी विस्फोटक होगी। याद रखना होगा, कि बंदूक के बल पर शासन संभव नहीं है। एक मच्छर को मारना भी बड़ा मुश्किल होता है। 65 हजार से अधिक सैन्य बल तैनात होने के बाद भी लाखों की आवादी वाले राज्य को स्थिति पर काबू नहीं कर पा रहे हैं। केंद्र और राज्य सरकार को अपना हठ छोड़कर, विपक्षी दलों के साथ-साथ वहां के सभी समुदायों के बीच में विश्वास कायम करने की कोशिश करनी होगी। समय रहते समस्या नहीं सुलझाया गया तो इसका असर पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी पड़ना तय है।