नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आजादी के अमृत महोत्सव के बीच आपातकाल जैसे देश की आजादी को खतरे में डालने वाले ऐसे अपराधों की चर्चा करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए आज कहा कि इससे आज की युवा पीढ़ी को लोकतंत्र के मायने और उसकी अहमियत समझने में ज्यादा आसानी होगी।
श्री मोदी ने आकाशवाणी पर अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 102वें संस्करण में कहा कि भारत लोकतंत्र की जननी है। हम अपने लोकतांत्रिक आदर्शों और अपने संविधान को सर्वोपरि मानते हैं। इसलिए हम 25 जून को भी कभी भुला नहीं सकते। यह वही दिन है जब हमारे देश पर आपातकाल थोपा गया था।
उन्होंने कहा कि यह भारत के इतिहास का काला दौर था। लाखों लोगों ने आपातकाल का पूरी ताकत से विरोध किया था। लोकतंत्र के समर्थकों पर उस दौरान इतना अत्याचार किया गया, इतनी यातनाएं दी गईं कि आज भी, मन, सिहर उठता है।
श्री मोदी ने कहा कि इन अत्याचारों पर पुलिस और प्रशासन द्वारा दी गई सजाओं पर बहुत सी पुस्तकें लिखी गई हैं। उन्हें भी ‘संघर्ष में गुजरात’ नाम से एक किताब लिखने का उस समय मौका मिला था। कुछ दिनों पहले ही आपातकाल पर लिखी एक और किताब आई जिसका शीर्षक है – भारत में राजनीतिक कैदियों की प्रताड़ना। आपातकाल के दौरान छपी इस पुस्तक में वर्णन किया गया है, कि कैसे, उस समय की सरकार, लोकतंत्र के रखवालों से क्रूरतम व्यवहार कर रही थी। इस किताब में ढ़ेर सारे शोध अध्ययन हैं, बहुत सारे चित्र हैं।
उन्होंने कहा, “मैं चाहूँगा कि, आज, जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, तो, देश की आजादी को खतरे में डालने वाले ऐसे अपराधों का भी जरुर अवलोकन करें। इससे आज की युवा पीढ़ी को लोकतंत्र के मायने और उसकी अहमियत समझने में और ज्यादा आसानी होगी।”
श्री मोदी ने विभिन्न प्रदेशों के राजभवनों में हुए दिलचस्प आयोजनों का उल्लेख किया कि अब देश में राजभवनों की पहचान, सामाजिक और विकास कार्यों से होने लगी है। आज, हमारे राजभवन, टी.बी. मुक्त भारत अभियान के, प्राकृतिक खेती से जुड़े अभियान के, ध्वजवाहक बन रहे हैं। बीते समय में गुजरात हो, गोवा हो, तेलंगाना हो, महाराष्ट्र हो, सिक्किम हो, इनके स्थापना दिवस को, अलग-अलग राजभवनों ने जिस उत्साह के साथ मनाया, वह अपने आप में एक मिसाल है। यह एक बेहतरीन पहल है जो ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ की भावना को सशक्त बनाती है।