देश में इस बार एन्टीआक्सीडेंट और रोग प्रतिरोधक क्षमता से भरपूर लीची की फसल न केवल अच्छी हुई है बल्कि बेहतर गुणवत्ता और मिठास से भरपूर है। पेड़ से तोड़ने के बाद जल्दी खराब होने वाली लीची इस बार अधिक तापमान के कारण रोगमुक्त और मिठास से भरपूर है। कैंसर और मधुमेह की रोकथाम में कारगर लीची का फल इस बार न केवल सुर्ख लाल है बल्कि कीड़े से अछूती भी है। लीची के बाग की नियमित अंतराल पर सिंचाई करने वाले किसानों ने 20 टन प्रति हेक्टेयर तक इसकी फसल ली है।
लीची में सुक्रोज, फ्रूक्टोज और ग्लूकोज तीनों ही तत्व पाए जाते हैं। पाचनतंत्र और रक्त संचार को बेहतर बनाने वाली लीची के 100 ग्राम गूदे में 70 मिलीग्राम विटामिन सी होता है। इसमें वसा और सोडियम नाम मात्र के लिए होता है।
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र मुजफ्फरपुर के निदेशक विशाल नाथ ने बताया कि देश में सालाना लगभग छह लाख टन लीची की पैदावार होती है जिसमें बिहार की हिस्सेदारी करीब 45 प्रतिशत है। तेज धूप तथा वर्षा नहीं होने की वजह से इस बार लीची के फल में कीड़ा नहीं लगा है। लीची का रंग भी काफी आकर्षक है और मिठास से भरपूर है।
डा. विशाल नाथ ने मुजफफरपुर, समस्तीपुर, वैशाली और कई अन्य जिले के लीची के बागों का जायजा लेने के बाद बताया कि जिन जागरुक किसानों ने समय समय पर लीची के पौधों की सिंचाई की है उनकी फसल बहुत अच्छी है और लीची मिठास से भरपूर है। ऐसे किसानों ने प्रति हेक्टेयर 16 से 18 टन की पैदावार ली है। कुछ किसानों ने वैज्ञानिकों की सलाह और उनकी देखरेख में प्रति हेक्टेयर 20 टन तक लीची की पैदावार ली है।
उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में 25 मई के बाद पेड़ से लीची तोड़ने वाले किसानों को प्रतिकिलो 70 रुपए का मूल्य मिला है। इससे पहले जिन किसानों ने लीची को बाजार में उतार दिया था उसमें मिठास कम था। आम तौर पर किसान प्रति हेक्टेयर आठ टन लीची की पैदावार लेते हैं। देश में 84000 हेक्टेयर में लीची के बाग हैं।
बिहार लीची उत्पादन में देश का अग्रणी राज्य है, अभी बिहार में 32 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल से लगभग 300 हजार मीट्रिक टन लीची का उत्पादन हो रहा है। बिहार का देश के लीची के क्षेत्रफल एवं उत्पादन में लगभग 40 प्रतिशत का योगदान है। लीची के महत्व को देखते हुए वर्ष 2001 को राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र की स्थापना की गई।
इसको अधिक से अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सके इसके लिए भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र एवं राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने लीची फल को उपचारित करके और कम तापमान पर 60 दिनों तक भंडारित करके रखने में सफलता पाई हैं। इसका एक प्रसंस्करण संयंत्र भी विकसित किया गया है।
अब 10 राज्यों में इसका दायरा बढ़ा है। पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू, उत्तराखंड, केरल, छत्तीसगढ़, झारखंड में लीची की पैदावार होने लगी है। देश में लीची की खेती बढ़ सके इसके लिए राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र प्रत्येक साल लगभग 35-40 हजार पौधे देश के विभिन्न संस्थानों और राज्यों को उपलब्ध करा रहा है।
इसके अलावा यह केन्द्र आईसीएआर के अन्य संस्थानों, राज्यों के कृषि विष्वविद्यालयों एवं केन्द्र, राज्य सरकारों के विकास प्रतिष्ठानों जैसे राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड, एपीडा और राष्ट्रीय बागवानी मिशन के साथ मिलकर कार्य कर रहा है।
दुनियाभर में मशहूर लीची की देश के अन्य हिस्सों में भी पहचान स्थापित करने के लिए इसे को-आर्डिनेटेड हॉर्टिकल्चर असेसमेंट एंड मैनेजमेंट (चमन) परियोजना से जोड़ा गया है । इसे लीची की पैदावार में नई क्रांति के रूप में देखा जा रहा। उपग्रह के माध्यम से वैज्ञानिक पद्धति से इसपर काम शुरू हो गया है।
दूर संवेदी प्रौद्योगिकी का उपयोग कर लीची में होने वाली बीमारी, इसके रोकथाम के उपाय, फसल की स्थिति आदि की समय से पहले जानकारी हासिल की जा सकेगी। इसके साथ ही लीची की फसल के लिए कौन कौन से क्षेत्र अनुकूल हैं इसकी भी जानकारी मिल सकेगी।
देश से कनाडा, फ्रांस, कतर, कुवैत, नार्वे, बहरीन, नेपाल, संयुक्त अरब अमीरात, सउदी अरब तथा कुछ अन्य देशों को लीची का निर्यात भी किया जाता है। चीन, थाईलैंड, वियतनाम, बांग्लादेश, नेपाल, फिलीपींस, इंडोनेशिया, आस्ट्रेलिया, अमरीका और इजराइल में लीची के बाग हैं।