-पीके खुराना-
मन क्या है? मन कुछ नहीं है और मन सब कुछ है। है न गड़बड़ घोटाला। दरअसल सचमुच गड़बड़ घोटाला ही है। जिसे हम मन कहते हैं वो दरअसल हमारा अर्धचेतन मस्तिष्क है, हमारा सबकांशस मांइड है। मोटी-मोटी बात करें तो हमारे दिमाग के तीन हिस्से हैं, चेतन मस्तिष्क, अर्धचेतन मस्तिष्क, यानी सबकांशस माइंड और अचेतन मस्तिष्क यानी अनकांशस मांइड, पर हिंदुस्तान में ज्यादातर लोग अर्धचेतन मस्तिष्क और अचेतन मस्तिष्क का फर्क नहीं जानते, और अर्धचेतन मस्तिष्क को भी अवचेतन मन के रूप में पहचानते हैं। यानी, हम हिंदुस्तानी लोग जिसे अवचेतन मन या सबकांशस माइंड कहते हैं, वह असल में हमारा अर्धचेतन मस्तिष्क है। हमारा दिमाग एक तीन मंजिले मकान के समान है जिसकी एक मंजिल तो जमीन पर है, दिखाई देती है और इसमें हवा और रोशनी का प्रवेश संभव है। सूर्य भगवान की किरणों से यह प्रकाशित होता है, वरुण देवता इस पर बारिश करते हैं और पवन देवता अपनी शीतल बयार से इसे तरोताजा बनाते हैं। यह हमारे दिमाग की वो मंजिल है जो जमीन की सतह पर है, और सबको दिखाई पड़ती है। इसे हम चेतन मस्तिष्क या कांशस माइंड कहते हैं। बाकी दो मंजिलें जमीन के नीचे हैं। जो जमीन के नीचे की पहली मंजिल, पहली बेसमेंट, पहला तहखाना है उसे विज्ञान अर्धचेतन मस्तिष्क या सबकांशस माइंड के नाम से पुकारता है, और जो इसके भी नीचे की मंजिल है, वह अचेतन मस्तिष्क या अनकांशस मांइड है। यह तीन मंजिला मकान हमारा दिमाग है, हमारा मस्तिष्क है, और ज्यादातर लोग अपना पूरा जीवन सिर्फ सबसे ऊपरी मंजिल, यानी कांशस माइंड तक ही सीमित रखते हैं, वे इससे आगे नहीं जाते।
ऊपर की मंजिल, जमीन पर की मंजिल, बहुत छोटी है। नीचे की मंजिलें बहुत बड़ी हैं और जो सबसे नीचे की मंजिल है, वो सबसे बड़ी है, वही आधार है सबका। हमारे मनीषियों ने सत्य ही कहा है कि हमें अगर सत्य की खोज करनी है तो हमें नीचे की इन दो मंजिलों में जाना होगा। सत्य की यात्रा ऊध्र्वगामी नहीं है, ऊपर की ओर की यात्रा नहीं है, आकाश में उडऩे की यात्रा नहीं है, बल्कि गहरे नीचे उतरने की यात्रा है, अपने ही मन में गहरे उतरने की यात्रा है। अगर कभी हम किसी जंगल में जाएं तो हमारे चारों ओर वृक्ष ही वृक्ष होंगे। वृक्षों का एक हिस्सा तो वे पत्ते हैं जिन पर भगवान भास्कर की किरणें पहुंच सकती हैं, इन पत्तों के नीचे उन वृक्षों की शाखाएं और तना हैं, जहां किरणें कहीं-कहीं इन पर भी पड़ती हैं। वृक्षों का तीसरा हिस्सा उनकी जड़ें हैं जो जमीन के भीतर छुपी हुई हैं। इन पर सूरज की रोशनी कभी नहीं पड़ती, लेकिन वृक्ष के प्राण अपनी जड़ों में हैं। जो वृक्ष को पूरा जानना चाहता हो उसे वृक्ष की जड़ों को जानना ही पड़ेगा। जो वृक्ष के पत्तों तक ही रह जाएगा वह वृक्ष को नहीं समझ पाएगा। इसी तरह हमारा चेतन मस्तिष्क, अर्धचेतन मस्तिष्क और अचेतन मस्तिष्क है। खुद को समझने के लिए हमें अर्धचेतन मस्तिष्क और अचेतन मस्तिष्क तक जाना होता है। नीचे की दोनों मंजिलों में जाए बिना, यानी अर्धचेतन और अचेतन में जाए बिना हमारी सत्य की खोज, खुद की खोज अधूरी रहेगी। चेतन मस्तिष्क में चेतना सर्वाधिक है। खुद चेतन मस्तिष्क भी दो भागों में बंटा हुआ है, जिनमें से पहला है तर्कशील मस्तिष्क, यानी लॉजिकल माइंड और दूसरा है रचनात्मक मस्तिष्क, यानी क्रिएटिव माइंड।
तना का सर्वाधिक अंश यहां होने के बावजूद यह हमारे कुल मस्तिष्क का सबसे छोटा भाग है। इसके दोनों हिस्से मिलकर भी पूरे मस्तिष्क के 10 प्रतिशत के बराबर ही होते हैं। अगर हम सत्य की खोज करना चाहें, खुद को जानना-समझना चाहें, परमात्मा की खोज में आगे बढऩा चाहें तो हमें चेतन मस्तिष्क तक ही सीमित रहने के बजाय भीतर की यात्रा करनी होगी। जीवन की जड़ें अचेतन मस्तिष्क में हैं, ब्रह्मांड से और परमात्मा से संबंध वहीं से जुड़ सकता है, अन्यथा कोई और साधन नहीं है। हमारी पूजा, हमारी अर्चना, हमारे कर्मकांड सब जमीनी स्तर की बातें हैं। सत्य की जो खोज है, खुद की जो खोज है, या प्रभु की जो खोज है उसका संबंध अचेतन मस्तिष्क से है। चेतन मस्तिष्क का निर्माण हमारा समाज करता है, हमारा परिवार, हमारे शिक्षा संस्थान और हमारा समाज मिलकर हमें जो संस्कार देते हैं, वो हमारे चेतन मस्तिष्क में बस जाते हैं। अर्धचेतन मस्तिष्क और अचेतन मस्तिष्क इससे बिल्कुल अलग हैं।
माज के विचार अलग हैं, अचेतन मस्तिष्क की जड़ें अलग हैं। अगर इन दोनों में सामंजस्य न हो तो आदमी खुद के भीतर ही विभाजित हो जाता है। यही कारण है कि अक्सर चेतन मस्तिष्क और अचेतन मस्तिष्क में रस्साकशी होती रहती है जो हमारे दुखों का कारण बन जाती है और हम खुशियों से महरूम हो जाते हैं। हमारे मस्तिष्क के इन तीन हिस्सों के बीच सामंजस्य होने का नाम ही योग है, यही साधना है। अगर तीनों मस्तिष्क के बीच में खाइयां बन गई हैं और ये एक-दूसरे के विरोधी हो गए हों तो दिन भर में हम जो देखते हैं या सोचते हैं, वह अलग है और रात में जब हम सो जाते हैं तो हमारे सपने दिन के विचारों से अलग होते हैं। दिन में हम काम करते हों, व्यापार करते हों तो भी हो सकता है कि रात में हम जो सपना देखें उसमें हम कुछ चोरी कर रहे हों। ऐसे में हम हैरान होते हैं कि मैंने तो कभी चोरी की नहीं, मैंने तो कभी चोरी करने की सोची ही नहीं, फिर यह सपना क्यों आया? उत्तर यही है कि तब हमारा अर्धचेतन मन ड्राइविंग सीट पर है, तब कमान उसके हाथ में है और अगर गहरे कोई वेदना छुपी है, कोई कमी है जो हमें खटक रही है तो वह सपने में उभर आएगी और हमें हैरान-परेशान करेगी। इस द्वंद्व से बचने का एक ही रास्ता है कि हम भीतर की यात्रा करें, अपनी असली अवेयरनेस, अपनी असली रोशनी से परिचित हों।
अचेतन मस्तिष्क हमारे कंप्यूटर की हार्ड डिस्क की तरह है जहां सभी जन्मों की याद छुपी है। एक स्पिरिचुअल हीलर के रूप में जब मैं अपने पास आए लोगों की काउंसिलिंग करता हूं तो मैं उनके लिए उनके अर्धचेतन मस्तिष्क और अचेतन मस्तिष्क के द्वार खोल देता हूं। वहां उनकी हर समस्या का समाधान मौजूद है। वे अपनी समस्या का समाधान खुद ही खोज लेते हैं और स्वस्थ हो जाते हैं। डीप रिलैक्सेशन और ब्रेन-वेव ऐक्टीवेशन विधियों के सामंजस्य से ऐसा संभव है। यह एक पुरातन विद्या है, इसका प्रसार बहुत नहीं है, पर हो रहा है और जब इस विद्या का परिचय ज्यादा लोगों से हो जाएगा तो स्वास्थ्य की समस्याएं तो हल हो ही जाएंगी, बहुत से लड़ाई-झगड़े भी खत्म हो जाएंगे। मैं नहीं जानता कि मेरे जीवन काल में यह संभव हो पाएगा या नहीं, पर कहा जाता है न कि उम्मीद पर दुनिया कायम है, सो मैं इसी उम्मीद से यह काम करता जा रहा हूं कि वो सुबह कभी तो आएगी, उस सुबह का इंतजार है।