कर्नाटक में कांग्रेस की प्रचंड जीत विपक्षी एकता की राह में बाधा बन गयी है

asiakhabar.com | May 23, 2023 | 12:26 pm IST

योगेंद्र योगी
कर्नाटक के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को करारी शिकस्त देकर जोरदार झटका दे चुकी कांग्रेस से विपक्षी दल भी सतर्क हो गए हैं। विपक्षी दलों की एकता में कांग्रेस की कर्नाटक में हुई प्रचंड जीत बाधा बन गई है। पहले हिमाचल प्रदेश और उसके बाद कर्नाटक में सत्ता में वापसी से कांग्रेस जिस तरह से नए सिरे से उठ खड़ी हुई है, उससे न सिर्फ भाजपा भौंचक्की है बल्कि विपक्षी एकता की कवायद करने वाले गैर भाजपा दलों मे खलबली मची हुई है। कांग्रेस की जीत का यह सिलसिला इस बात के संकेत भी हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस कोई बड़ा कारनामा करने की फिराक में है। यही वजह है कि कुछ दिनों पहले तक कांग्रेस को साथ लेने की कवायद करने वाले क्षेत्रीय दलों के नेताओं को अब अपने राज्यों में कांग्रेस से ही खतरा मंडराता हुआ नजर आ रहा है।
विपक्षी दलों को दरअसल दोहरा डर सता रहा है। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के तौर पर भाजपा पहले से ही मौजूद है किन्तु भाजपा विरोधी के तौर पर कांग्रेस दूसरा बड़ा खतरा बन गई है। भाजपा चूंकि सभी विपक्षी दलों की खुले तौर पर एक नम्बर की प्रतिद्वन्द्वी है, इसलिए उसके नुकसान-फायदों और ताकत का अंदाजा सभी को है, किन्तु कांग्रेस ने लंबे समय बाद सत्ता में जिस तरह जोरदार वापसी की है, उससे क्षेत्रीय दलों के समक्ष नई परेशानी खड़ी हो गई है।
विपक्षी दलों के कर्ताधर्ताओं को इस बात का अंदाजा भी बखूबी है कि कांग्रेस को साथ लिए बगैर विपक्षी एकता का ख्वाब धरातल पर नहीं उतर सकता। विपक्षी दल कांग्रेस को साथ लेना तो चाहते हैं किन्तु सतर्कता बरतते हुए समान दूरी बनाए रख कर। यही वजह है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सुर बदल गए। बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के विपक्षी एकता के लिए किए जा रहे प्रयासों की पुनर्समीक्षा करनी पड़ी है। ममता बनर्जी कांग्रेस को विपक्षी एकता में शामिल करने को बेशक राजी हो गई हों किन्तु उससे समान दूरी बनाए रखने पर भी जोर दे रही हैं। ममता ने जो फार्मूला दिया है उसके तहत उन्होंने कहा कि वे कांग्रेस का समर्थन करने के लिए तैयार हैं, बशर्ते वे पश्चिम बंगाल उनका समर्थन करें। उन्होंने कहा, ‘जहां भी कांग्रेस अपनी-अपनी सीटों पर मजबूत है, वह वहीं चुनाव लड़े। हम उनका समर्थन करेंगे, लेकिन उन्हें दूसरे राज्यों में प्रभावी क्षेत्रीय दलों का भी समर्थन करना होगा।यह निश्चित है कि कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों की शर्तें किसी भी सूरत में मंजूर नहीं होंगी। कांग्रेस ऐसा करके अपने पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मारेगी। कांग्रेस का राजनीतिक नेटवर्क पूरे देश में हैं। ऐसे में जिन राज्यों में क्षेत्रीय दलों की सत्ता है, उनमें भी सीटों पर बंटवारा किए जाने पर ही कांग्रेस का विपक्षी दलों से गठबंधन संभव है। जबकि विपक्षी दल चाहते हैं कि जिन राज्यों में उनका संगठन नाममात्र का है और कांग्रेस वहां प्रभावी भूमिका में है, कांग्रेस सिर्फ वहीं तक सीमित रहे। यदि विपक्षी दलों की यह दलील कांग्रेस को स्वीकार होती तो कर्नाटक में भी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल सेक्युलर से समझौता करती, क्योंकि कांग्रेस ने करीब दो दशक बाद सत्ता में वापसी की है। इसलिए कांग्रेस विपक्षी दलों की एकता के लिए अपनी कुर्बानी किसी भी हालत में नहीं देगी। यह भी निश्चित है कि क्षेत्रीय दलों के प्रभाव वाले राज्यों में कांग्रेस के प्रत्याशी खड़े होने से वोटों का बंटवारा होगा, इससे कहीं न कहीं फायदा भाजपा को मिल सकता है। ऐसे में वोटों के ध्रुवीकरण के कारण समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे क्षेत्रीय दलों की सत्ता की वापसी की उम्मीदों पर पानी फिरना तय है। मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य से यह भी स्पष्ट है कि क्षेत्रीय दल कितना ही प्रयास कर लें, कांग्रेस को साथ लिए बगैर भाजपा को हराने के उनके मंसूबे आसानी से पूरे नहीं होंगे।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *