पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी और फिर उनकी रिहाई के बाद हालात बेकाबू हो रहे हैं। इसके बाद भी उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी हुई है, क्योंकि पाकिस्तान की सर्वोच्च अदालत ने उनको प्रकरण में बरी नहीं किया है, केवल जिस स्थान से गिरफ्तार किया, वह तरीका गलत बताया है। इस दौरान पाकिस्तान में जो चला या चल रहा है, उसे किसी भी प्रकार से पाकिस्तान के लिए हितकारी नहीं माना जा सकता। तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के कार्यकर्ताओं ने एक प्रकार से पाकिस्तान को राजनीतिक आतंक की आग में झोंकने का काम किया है। पिछले कई वर्षों से बेहद दयनीय स्थिति का सामना कर रहे पाकिस्तान में इस प्रकार के हालात उत्पन्न करना अपने स्वयं के पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा ही कहा जाएगा। इसी कारण पाकिस्तान की स्थिति दिनों दिन और ज्यादा विकराल होती जा रही है। ऐसी स्थिति में सरकार के विरोध में खतरनाक ढंग से प्रदर्शन करना कहीं न कहीं पाकिस्तान के लिए खतरे की घंटी निरूपित होता जा रहा है। इससे पाकिस्तान की स्थिति और ज्यादा खराब ही होती जाएगी।
पाकिस्तान की विसंगति यही है कि वहां आतंकवाद को खुले तौर पर आश्रय दिया जाता है। आतंकी आकाओं को संरक्षण प्रदान करने वाली सरकार न चाहते हुए भी उनके संकेत पर कार्य करने के लिए विवश रहती है। इतना ही नहीं पाकिस्तान की सेना भी दूसरे देश के लिए आतंकियों जैसा ही व्यवहार करती है। आज पाकिस्तान की स्थिति को देखते हुए यह सहज ही कहा जा सकता है कि आतंक केवल आतंकवादी ही नहीं फैलाते, बल्कि हर स्तर पर आतंक का सहारा लिया जाता है। अभी जिस प्रकार से राजनीतिक प्रदर्शन किया गया, वह प्रदर्शन कम आतंक फैलाने वाला ज्यादा दिखाई दे रहा है। हालांकि पाकिस्तान के लिए किसी बड़े नेता की गिरफ्तारी कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी नेताओं पर भ्रष्टाचार के मामले चले हैं। जब कोई नई सरकार बनती है कि पूर्ववर्ती सरकार के मुखिया को राजनीतिक विद्वेष का शिकार होना पड़ा है। वर्तमान प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के भाई नवाज शरीफ भी इसके शिकार हो चुके हैं। स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो यही कहना तर्कसंगत होगा कि पूरा पाकिस्तान राजनीतिक विद्वेष की अवधारणा को लेकर ही राजनीति कर रहा है।जहां तक पाकिस्तान की सेना की बात है तो यह सर्वविदित है कि सेना के संरक्षण में ही पाकिस्तान की सरकार बनती है, जैसे ही सरकार सेना के विरोध में आती है, तब पाकिस्तान की सरकार का या तो तख्तापलट हो जाता है या फिर सेना किसी दूसरे दलों को समर्थन देकर नई सरकार बनवा देती है। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान में जब इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ सत्ता में आई थी, तब इमरान खान की पार्टी को कुछ दलों के साथ स्पष्ट बहुमत मिला था, इस समय सेना का पूरा समर्थन इमरान को प्राप्त था। आज से एक साल पूर्व पाकिस्तान की इमरान खान सरकार को सत्ता से बेदखल कर शहबाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने। इमरान खान के समर्थन में इस बार का प्रदर्शन खतरनाक स्थिति में है। इस बात का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि आगजनी की घटनाओं के बाद पूरे पाकिस्तान में इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं। वहां सरकारी वाहनों पर खतरनाक ढंग से पत्थरबाजी की जा रही है। जिससे जहां एक ओर आठ से ज्यादा नागरिक और कार्यकर्ता मारे गए हैं, वहीं कई घायल भी हुए हैं। इन घटनाओं से इस बात के साफ संकेत मिल रहे हैं कि पाकिस्तान बहुत बड़े गृह युद्ध की ओर कदम बढ़ा रहा है। स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो यह कहना समीचीन होगा कि पाकिस्तान में उसके ही नागरिक एक दूसरे की जान के दुश्मन बन चुके हैं। यानी आतंक भरा वातावरण तैयार करके एक दूसरे के खून के प्यासे बनते जा रहे हैं। पाकिस्तान जैसे बदहाल देश के लिए इस प्रकार की स्थिति किसी भी प्रकार से ठीक नहीं कही जा सकती, क्योंकि इस प्रकार की आपसी लड़ाई में पाकिस्तान कभी उबर नहीं सकता। वैसे यह कहा जाना तर्कसंगत ही होगा कि विरोध प्रदर्शन के नाम पर हिंसा, आगजनी और पत्थरबाजी करना किसी भी समस्या का हल नहीं है, बल्कि उस समस्या को और ज्यादा विकराल बना देने जैसा ही है। उल्लेखनीय है कि विरोध प्रदर्शन में आगजनी करके शासन, प्रशासन और सेना को ही निशाना बनाने का काम किया गया है। जो यह संकेत करता है कि यह प्रदर्शन सरकार और सेना के विरोध में है। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के कार्यकर्ता बेकाबू हैं, इन्हें न तो प्रशासन रोक पाने का सामर्थ्य जुटा पा रहा है और न ही पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के कार्यकर्ता रुकने की स्थिति में दिखाई दे रहे हैं। इसलिए ऐसा लग रहा है कि यह अस्तित्व की लड़ाई अभी और लम्बी चलेगी। जो वर्तमान सरकार के लिए एक चुनौती बनेगी ही, साथ ही पाकिस्तान के रास्ते में बड़ा अवरोध भी बन सकती है।
अपने जन्म काल के समय से पाकिस्तान अपने हुक्मरानों की गलत नीतियों का खामियाजा भुगत रहा है। वर्तमान की स्थिति और भी ज्यादा खतरनाक है। पाकिस्तान की जनता महंगाई के दलदल में फंसती जा रही है। पाकिस्तान को जिन देशों से आस थी, वह आस भी अब टूटने लगी है। चीन ने पाकिस्तान को ऐसी जगह छोड़ दिया है, जिसकी एक ओर कुआँ है तो दूसरी तरफ खाई है। यानी पाकिस्तान जिधर भी जाएगा, उस तरफ उसकी दुर्गति ही होनी है। दूसरा एक नया संकट पाकिस्तान में यह भी उभर रहा है कि उसके राज्यों में स्वायत्त देश बनाने की मांग भी उठ रही है। अगर ऐसा होता है तो स्वाभाविक रूप से पाकिस्तान चार हिस्सों में बंट जाएगा। इसमें से सिंध, पंजाब और बलूचिस्तान में भारत के प्रति सकारात्मक आवाजें आ रही हैं। इससे यह भी संकेत मिलता है कि पाकिस्तान ने 75 साल पूर्व जो भूल की थी, आज उस भूल को सुधारने का प्रयत्न करने की ओर अग्रसर हो रहा है। पाकिस्तान के कई नागरिक पहले भी खुले तौर पर कह चुके हैं कि आज पाकिस्तान की दुर्गति को देखकर यही लगता है कि हम हिन्दुस्तान के साथ ही रहते।