-देवेन्द्रराज सुथार-
पिछले दशकों में पर्यावरण का तेज़ी से क्षरण हुआ है और प्लास्टिक ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई है. ख़ासकर सिंगल यूज प्लास्टिक ने हरी-भरी धरती को बंजर करने के साथ-साथ समूचे जलीय और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भयानक संकट खड़ा कर दिया है. कई अध्ययनों में इस बात की पुष्टि हुई है कि सिंगल यूज प्लास्टिक मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है. लेकिन फिर भी सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग हमारी रोज़मर्रा की जीवनशैली में बेरोकटोक जारी है. चूंकि किसी भी तरह का प्लास्टिक प्रकृति के लिए हानिकारक होता है. लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार एक बार इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक सबसे ख़तरनाक है. प्लास्टिक कचरे में अधिकांश सिंगल यूज प्लास्टिक होता है. इस सिंगल यूज प्लास्टिक में सबसे ज़्यादा पॉलिथीन बैग का इस्तेमाल किया जाता है. सरकार के सॉलिड वेस्ट प्रिवेंशन एक्ट के तहत 40 माइक्रोन से कम मानक वाले पॉलिथीन बैग पर्यावरण को बुरी तरह प्रदूषित करते हैं. वहीं, इन थैलियों को जलाने के बाद उठने वाला धुआं पर्यावरण और जन स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है.
पॉलिथीन बैग के बाद सबसे ज़्यादा डिस्पोजेबल पानी की बोतलें इस्तेमाल में ली जाती हैं, जो सुविधाजनक मानी जाती हैं. लेकिन इन बोतलों में बीपीए जैसे हानिकारक रसायन होते हैं, जो स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं. साथ ही पर्यावरण पर भी उनका अत्यधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. कंटेनर रीसाइक्लिंग इंस्टीट्यूट (सीआरआई) के अनुसार, उपयोग की जाने वाली 86 प्रतिशत डिस्पोजेबल पानी की बोतलें कचरे का रूप ले लेती हैं. पानी की बॉटलिंग प्रक्रिया सालाना 2.5 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में छोड़ती है. डिस्पोजेबल पानी की बोतल का कचरा समुद्र में बहने से हर साल 1.1 मिलियन समुद्री जीव मर जाते हैं. हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के अकादमिक थिंक टैंक ने कहा कि वैश्विक स्तर पर बोतलबंद पानी की खपत में वृद्धि सार्वजनिक जल आपूर्ति में सुधार करने में सरकारों की विफलता को दर्शाती है, जो 2030 तक सुरक्षित पेयजल के संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य को ख़तरे में डाल रही है.
संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय के जल, पर्यावरण और स्वास्थ्य संस्थान के अनुसार, बोतलबंद पानी की बाज़ार में 2010 से 2020 तक 73 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई और इनकी खपत बढ़कर 2030 तक 460 बिलियन लीटर हो जाएगी. केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव के अनुसार, भारत सालाना 3.5 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा पैदा कर रहा है और पिछले पांच वर्षों में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक कचरा उत्पादन लगभग दोगुना हो गया है. भारत हर दिन 6000 टन प्लास्टिक उत्पन्न करता है, जिसमें से लगभग 10000 टन एकत्र नहीं हो पाता है. प्लास्टिक बोतलबंद पानी के सेवन से स्तन कैंसर, मधुमेह, मोटापा, प्रजनन संबंधी कई समस्याएं हो सकती हैं. जब हम प्लास्टिक की बोतल में पानी पीते हैं, तो प्लास्टिक की बोतलों से निकलने वाले केमिकल्स शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और इम्यून सिस्टम को ख़राब कर देते हैं. स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क के एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि बोतलबंद पानी के लोकप्रिय ब्रांडों में 93 प्रतिशत से अधिक माइक्रोप्लास्टिक पाया जाता है. ऐसे कई चौंकाने वाले आंकड़े हैं, जो हमें सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पादों के बारे में सोचने पर विवश करते हैं, लेकिन हक़ीक़त यह है कि इसका इस्तेमाल घटने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है.
केवल शहरों में ही नहीं, बल्कि देश के दूर दराज़ गांवों में भी सिंगल यूज़ प्लास्टिक ने जन जीवन पर अपनी पकड़ मज़बूत बना ली है. राजस्थान के जालोर जिले से 20 किलोमीटर दूर स्थित बागरा कस्बे में प्रतिबंध के बावजूद सिंगल यूज प्लास्टिक का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा हैं. दुकानदारों और ग्राहकों पर प्रशासनिक ढिलाई के कारण पॉलीथिन प्रतिबंध का कोई ख़ास असर नहीं दिख रहा है. सब्जी मंडी में आम दिनों की तरह आज भी सब्जियों को पॉलीथिन में भरकर ग्राहकों को दिया जा रहा है. सब्जी विक्रेता किशन राणा का कहना है कि, ‘बिना पॉलीथिन के ग्राहक सब्जी लेने को तैयार नहीं है. किसी में जुर्माने का डर नहीं है. अगर हम सब्जियों के साथ पॉलीथिन की थैलियां नहीं देंगे, तो हमसे कोई सब्जी नहीं ख़रीदेगा. बाज़ार प्रतिस्पर्धा के कारण हम पॉलीथिन बैग रखने को मजबूर हैं. यह कम कीमत में आसानी से उपलब्ध हो जाता है, इसलिए इसका इस्तेमाल किया जा रहा है.’ अन्य दुकानदार सुरेश कुमार कहते हैं, ‘हम छोटे व्यापारियों पर कार्यवाही करने से क्या होगा? ऐसे कितने व्यापारियों को सजा देगी सरकार? असल कारण वे फैक्ट्रियां और कंपनियां हैं, जो प्रतिबंध के बावजूद प्लास्टिक की थैलियों की बाज़ार में आपूर्ति कर रही हैं. अगर उन्हें दंडित किया जाए, तो सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पाद बाज़ार में नहीं आएंगे और हम उनका इस्तेमाल नहीं करेंगे.’
उल्लेखनीय है कि देश में 1 जुलाई 2022 से सिंगल यूज प्लास्टिक से बने 19 तरह के उत्पाद प्रतिबंधित हैं. इन उत्पादों में प्लास्टिक की डंडियों वाले ईयर बड, बलून स्टिक, प्लास्टिक के झंडे, लॉलीपॉप की डंडी, आइसक्रीम की डंडी, थर्माकोल के सजावटी सामान, प्लेट्स, कप, गिलास, कांटे, चम्मच, चाकू, स्ट्रा, ट्रे, मिठाई के डिब्बे पर लगने वाली पन्नी, निमंत्रण पत्र, सिगरेट पैकेट, 100 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक, प्लास्टिक कैरी बैग, पॉलीथिन (75 माइक्रोन से कम मोटाई वाले), 100 माइक्रोन से कम के प्लास्टिक या पीवीसी बैनर आदि है. इन वस्तुओं का इस्तेमाल करने पर जुर्माना का प्रावधान है. आम लोगों पर प्रतिबंधित उत्पादों का इस्तेमाल करने पर 500 से 2000 रुपए तक का जुर्माना है. वहीं, औद्योगिक स्तर पर इसका उत्पादन, आयात, भंडारण और बिक्री करने वालों पर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 15 के तहत सजा का प्रावधान है. ऐसे लोगों पर 20 हज़ार रुपए से लेकर एक लाख रुपए तक का जुर्माना या 5 साल की जेल या दोनों हो सकते हैं. इसके अलावा उत्पादों को जब्त करने, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने पर जुर्माना लगाने, उनके उत्पादन से जुड़े उद्योगों को बंद करने जैसी कार्यवाही का भी प्रावधान है. हालांकि अभी भी इन वस्तुओं में प्लास्टिक की बोतलों को शामिल नहीं किया गया है.
कस्बे में धड़ल्ले से हो रहा सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग के बारे में जब थानाधिकारी भगाराम मीणा से पूछा, तो उन्होंने बताया कि, ‘सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध को लेकर समय-समय पर तहसील व जिला स्तर पर कमेटी कार्यवाही करती है. अभियान चलाए जाते हैं. अगर प्रशासन की ओर से इस संबंध में कोई क़दम उठाया जाता है, तो हम इसमें ज़रूर शामिल होते हैं.’ क्या सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध इसके विकल्प के अभाव में अप्रभावी है? इस सवाल के जवाब में पर्यावरणविद् रामचंद्र पाटलिया कहते हैं कि, ‘यह सामुदायिक चेतना से जुड़ा विषय है. कुछ साल पहले गांवों में जब भी महिलाएं और पुरुष बाज़ार में खरीदारी करने जाते, तो अपने साथ कपड़े का थैला लेकर जाते थे. इसी तरह पहले चाय की दुकानों पर प्लास्टिक के कपों की जगह कुल्हड़ों का इस्तेमाल होता था. आज भी कहीं-कहीं कुल्हड़ में चाय परोसी जाती है. प्लास्टिक की बोतलों की जगह स्टील के थर्मो का इस्तेमाल किया जाता था. लेकिन धीरे-धीरे पर्यावरण के प्रति लोक के व्यवहार में बदलाव आता गया. चूंकि सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं करने वालों के पास कई ऐसे विकल्प हैं, जो पर्यावरण के अनुकूल हैं. बशर्ते इसके लिए संकल्प लेने की ज़रूरत है, तभी हम प्लास्टिक को ‘ना’ कह पाएंगे