रियाद। एक तरफ जहां इस्लाम धर्म के नाम पर दुनिया भर में बहस छिड़ी हुई है। इसे आतंक से जोड़ा जा रहा है। उस वक्त सऊदी अरब के इस्लामिक विद्वान ने इस्लाम की सही परिभाषा को दुनिया तक पहुंचाने के लिए एक फतवा जारी किया है।
ये फतवा इस्लाम धर्म की खूबसूरती, उसमें बसे दया, करुणा की भावना बताने के लिए जारी किया गया है। ये इस्लामिक स्कॉलर हैं, अब्दुल्ला बिन सुलेमान एल-मना।
अपने फतवे के जरिए इस इस्लामिक स्कॉलर ने मुसलमानों से अपील की है कि वो इस्लाम धर्म में मौजूद सहनशीलता, दया और सहिष्णुता के मूल्यों को दूसरों तक पहुंचाए। कुवैती अखबार अल-अन्बा में छपी खबर की मानें तो इस स्कॉलर ने अपने फतवे में मुस्लिमों को संबोधित करते हुए कहा है कि वो सूफी संतों की दरगाहों, चर्च और दूसरे धर्मस्थलों पर जाकर प्रार्थना कर सकते हैं।
इतना ही नहीं अब्दुल्ला बिन सुलेमान नाम के इस्लामिक विद्वान ने हजरत पैगबंर मुहम्मद साहब का जिक्र करते हुए कहा कि ये पूरी धरती अल्लाह की है और “धरती को मेरे लिए शुद्धि का एक स्थान दिया गया है।” इस्लामिक स्कॉलर अब्दुल्ला सुलेमान ने कहा कि इस्लाम सहनशीलता का धर्म है और इसके मूल तत्वों को लेकर मुसलमानों में किसी तरह के मतभेद नहीं हो सकते हैं। लेकिन इस्लाम की अलग-अलग शाखाओं को मानने वालों में जरुर अंतर हो सकता है।
इस्लाम की रुमानियत बताने के लिए इस स्कॉलर ने हजरत पैगबंर मुहम्मद साहब से जुड़ा एक किस्सा भी बताया है, जिसमें मुहम्मद साहब ने सऊदी अरब के नजरान शहर में ईसाईयों के एक दल का स्वागत किया था। उन्होंने केवल इस दल का स्वागत ही नहीं किया, बल्कि प्रार्थना करने के लिए उन्हें मस्जिद में जगह दी। ये कहानी बताती है कि इस्लाम कैसे दूसरे धर्मों के लोगों की भावनाओं और उनकी धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करता है।
इस्लामी स्कॉलर ने इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों में इस्लाम के पनपने का हवाला देते हुए कहा कि मुस्लिम व्यापारियों के अच्छे बर्ताव की वजह से इन मुल्कों में इस्लाम ने अपनी जड़ें जमाईं।
ये कोई पहला मौका नहीं है जब अबदुल्ला सुलेमान नाम के इस इस्लामी विद्वान ने ऐसा कोई फतवा जारी किया है। दस साल पहले भी उन्होंने मुसलमानों को चर्च जाने के लिए बयान जारी किया था, ताकि वो इस धर्म के बारे में जानकारी इकठ्ठा कर सकें और चर्च में प्रार्थना के तौर-तरीकों को करीब से समझ सकें।