-पूरन सरमा-
कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ वातावरण फिर गरमाने लगा है। अनशन-उपवास के कार्यक्रम होने लगे हैं। सुबह-सुबह मेरे गरीबखाने पर एक सरकारी नुमाइंदा आया और बोला -‘सरकार ने आपको दिल्ली बुलाया है।’ मैने पूछा -‘क्यों क्या बात है? मेरा दिल्ली में क्या काम।’ सरकारी नुमाइंदा बोला -‘आपसे सलाह-मशविरा करना है। सरकार बहुत परेशान है।’ मैं बोला -‘परेशान तो मैं भी कम नही हूँ। भ्रष्टाचार से मुझे कोई परेशानी नहीं है, लेकिन महंगाई ने मार दिया भाई।’ वह बोला -‘आप अभी चलिये। मुझे हुक्म की तामील करनी है। देर हो गई तो मेरा एक्सप्लेनेशन हो जायेगा।’ मैंने कहा – ‘पाँच मिनट बैठो, कपड़े बदलकर आता हूँ।’ मंैने अंदर जाकर पत्नी को बताया तो वह लापरवाही से बोली -‘जा आइये। आपकी सलाह से सरकार की कोई समस्या हल हो जाये।’ मैं कपड़े बदलकर उसके साथ एयरपोर्ट रवाना हो गया। एक घण्टे बाद तो मैं दिल्ली में सरकार के सामने था।
सरकार उदास और अनमनी थी। मैंने ही कहा – ‘सर, मैं आ गया।’ सरकार का चेहरा थोड़ा खिला और बोली -‘वह क्या था? आप तो विचारक हैं। हमें बताइये भ्रष्टाचार को लेकर हम क्या करें? आपको कष्ट इसीलिये दिया है कि हम निर्विघ्न शासन कर सकें।’ मैं बोला -‘भ्रष्टाचार के मामले में कुछ नहीं करें और इसे कन्टीन्यू करें। अभी आपने इसे मिटाने का कोई कदम उठा लिया तो आने वाले चुनाव में बुरी तरह हार जायेंगे। सत्ता हाथ से चली जायेगी। ये जो मजबूत लोकपाल लाने और कालाधन बाहर लाने की मांग कर रहे हैं, वह मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। आजादी के बाद से इसी का बोलबाला रहा है। किस दल ने इनके खिलाफ कदम उठाया है? सभी इनको लेकर चुप रहे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने वाले ढोंगी हैं। इस विद्या में आकर आपने इसे मिटा दिया तो यह आत्मघाती होगा। विरोधियों को विरोध करने को कुछ चाहिये, यह सब उसी का पार्ट है।’ ‘तो फिर आप इन्हें समझाओ न, आप एकदम प्रेक्टिकल हैं। हमारा भी यही सोचना है।
जमाना बदल गया है। यह मूल्यों का युग नहीं है। अब तो जो हो जाये कम है। बिना इनके न सरकार चल सकती है और न आदमी का जीवन।’ सरकार के आदेशानुसार मैं भ्रष्टाचार विरोधियों के पास पहुँचा। वहाँ मुझे पहचानने वाला कोई नहीं था। मैंने गन्ना जी को पकड़ा और अपना परिचय और मन्तव्य बताया तो वे बोले – ‘क्या करना है?’ मै बोला -‘सर, आप बुजुर्ग हैं। जो भी कर रहे हैं, वह राष्ट्रहित में है। आप इसे कन्टीन्यू करें।’ गन्ना जी बोले -‘अरे भाई बिचौलिये बनकर आये हो तो कोई समाधान लाये हो क्या? हम कब तक करते रहेंगे? मेरा मतलब मजबूत लोकपाल आयेगा क्या?’ मैं बोला -‘आयेगा क्यों नही। पूरी संसद इसके पक्ष में है। यह तो चक्र है, ऐसे ही चलेगा। उन्हें उनका काम करने दें, आप अपना करें।’ गन्ना जी ने अपना सिर पकड़ लिया और बोले -‘मेरे बाप, तुम आये क्यों थे?’ मैं बोला -‘सर, मैं तो बिचौलिया हूँ। यही भाषा जानता हूँ। आप अपनी टीम को जागृत रखें।’ यह कहकर मैं भीड़ से बाहर आ गया। सरकारी नुमाइंदा साथ में था, उसके हाथ में गाँधी छाप नोट रखकर बोला -‘जाओ, आराम की नींद सोवो। मैं अपने शहर वापस जा रहा हूँ। सरकार पूछे तो कोई नया बिचौलिया ला खड़ा करना। वैसे तो जो हो रहा है, वही कन्टीन्यू करें।’ मुझ विचारक ने यही विचार उपयुक्त समझा और घर आकर लिहाफ तानकर सो गया।