यह है हमारे दुखी रहने का कारण, इससे ऐसे बचें

asiakhabar.com | April 28, 2023 | 5:59 pm IST
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-सीमा झा-
हम अपेक्षा के सागर में डूबते-उतराते रहते हैं, यही हमारे दुखी रहने का कारण है। यदि हम दूसरों से अपेक्षाएं न लगाकर, दूसरों को बदलने के बजाय खुद को बदलें, तभी हम अपेक्षाओं के सागर के पार उतर सकेंगे। एक अरसे बाद मुलाकात में एक मित्र बातों ही बातों में पते बात कह गए, हर व्यक्ति अलग है, इसलिए जो जैसा है, उसे उसी रूप में स्वीकार करें। अपने अनुसार किसी को ढालने का प्रयास न करें, अन्यथा वह रिश्ता ही कुंद हो जाता है। वास्तव में रिश्तों की दुनिया को अपेक्षाओं के कारण हम पेचीदा बना देते हैं।
ज्यादातर लोग दूसरों की मदद इसलिए करते हैं, ताकि वह भी वक्त पड़ने पर काम आए। जब ऐसा नहीं होता, तो वे उसे अहसान फरामोश ठहरा देते हैं। अमेरिकी लेखक जिम रॉन के मुताबिक दूसरों को बदलने की बात बेमानी है। उन्हें उनके हाल पर छोड़ दें, वे खुद बदल जाएंगे, हम बस अपनी चिंता करें।
यह गलती पुरानी है
आमतौर पर बच्चों को अभिभावकों से शिकायत रहती है कि वे उनके फैसलों को महत्व नहीं देते। वहीं अभिभावक को शिकायत रहती है कि बच्चे उनकी नहीं सुनते। रिश्तों में असंतुष्ट होने का एक मुख्य कारण है कि हम पर एक-दूसरे को खुश करने का दबाव होता है। रोम के राजनीतिज्ञ और वक्ता तुलियस सिसरो इसे इंसान की सबसे पुरानी गलती कहते हैं, इंसान सदियों से दूसरों पर अपने विचार थोपने की गलती करता रहा है।
अपेक्षा का समंदर
गौतम बुद्ध ने आत्मदीपो भव के जरिए हर व्यक्ति पर स्वयं की जिम्मेदारी डाली है, पर हम कंधों पर दुनिया का बोझ उठाए घूमते रहते हैं। यह भूल जाते हैं कि जब हम खुद के प्रति जिम्मेदार बनते हैं, तो सुव्यवस्था का सृजन खुद-ब-खुद होता है। इसके बाद दूसरे क्या कर रहे हैं, क्या कह रहे हैं, इन बातों को सरोकार नहीं रह जाता है।
बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान के अनुसार, यदि आपने दूसरों की मांगों-अपेक्षाओं पर खरा उतरने की भूल की तो आप इस समंदर में डूब जाएंगें। दरअसल, अपेक्षाओं का कोई अंत नहीं होता। इस समंदर से पार पाना असंभव है, इसलिए अच्छा होगा कि हम इसमें डूबने के बजाय अपने काम को डूब कर करें। हम अपनी अपेक्षाओं पर खरें उतरें।
जैसे हम, वैसी दुनिया
मैं जो कर रहा हूं, उसे बेहतर बनाना ज्यादा सही समझता हूं। इसलिए कभी शिकायत करने की स्थिति पैदा ही नहीं हुई। मशहूर फुटबॉलर डेविड बेकहम शिकायतों को निरर्थक बताते हैं। फिर भी हम बार-बार शिकायतों का पुलिंदा लेकर बैठ जाते हैं। अपनों से खफा रहते हैं कि उन्होंने बात नहीं मानी। दरअसल, शिकायतें भीतर की निराशा से उपजती हैं। यह अपेक्षा न करें कि दूसरे खुद को बदलें, बल्कि हम अपने भीतर बदलाव लाएं।


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