-इष्ट देव सांकृत्यायन-
रिश्तों का जुड़ना जितना मुश्किल होता है, उन्हें सहेजना उससे भी ज्यादा कठिन। इसके विपरीत तोड़ने के लिए एक झटका ही काफी है। यह झटका कुछ भी हो सकता है- कोई कड़वी बात, किसी मसले पर उपेक्षा, कोई मामूली गलती, गलतफहमियां या कुछ और। मुश्किल यह है कि ऐसा जब भी होता है तो इसका पहले से कोई एहसास नहीं होता। पता ही तब चलता है, जब घटना घट चुकी होती है।
अगर समय से पता चल जाए कि जो हम कहने या करने जा रहे हैं, वह हमारे संबंधों पर क्या असर डालेगा तो अधिकतर संबंध बिगड़ने ही न पाएं। कई बार ऐसा भी होता भी है कि गलती के बाद तुरंत एहसास हो जाता है। ऐसी स्थिति में समझदार लोग बात को संभालने की कोशिश भी करते हैं। कई बार बात बन भी जाती है, लेकिन कई बार यह कोशिश बेकार साबित होती है। इसीलिए कवि रहीम ने कहा है-
रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय
टूटे से फिर ना जुडे, जुडे तो गांठ पड़ जाय।
अक्सर देखा जाता है कि ऐसे रिश्तों में जुड़ने के बाद भी कुछ कसक-सी रह जाती है। हालांकि आधुनिक मनोविज्ञान का मानना है कि यह मुश्किल ही है, असंभव नहीं। अगर रिश्ते में आई दरार की वजह को समझते हुए ठीक तरह से प्रयास किए जाएं तो उस कसक का मिटना भी असंभव नहीं है। इसके पहले कि किसी टूटे हुए रिश्ते को नए सिरे से सहेजने की कोशिश शुरू की जाए, सबसे जरूरी है कि उसके वास्तविक कारण की तलाश की जाए।
देखें अपनी ओर
यह जरूरी नहीं कि संबंध टूटने के मामले में गलती हर बार आपकी ही हो, पर ऐसे मामले में देखना सबसे पहले अपनी ओर ही चाहिए। अधिकतर होता यह है कि हम स्थितियों को समझे बिना ही दूसरे पक्ष को जिम्मेदार मान लेते हैं। यह सोचे बगैर कि उसने ऐसा कुछ किया भी तो किन हालात में। यह गौर करना चाहिए कि अगले व्यक्ति ने जो कुछ भी किया, उस पर हमारी प्रतिक्रिया क्या थी। हमने जो किया, क्या वह सही था! ऐसा तो नहीं कि हमने उसकी बात को समझे बिना ही प्रतिक्रिया दी और उसका दिल दुखाया! ऐसा कुछ लगे तो अपनी गलती स्वीकार कर, माफी मांग लेने में कोई हर्ज नहीं है।
स्वीकारें दूसरों को
दूसरों में ही गलती ढूंढने का एक कारण यह है कि अधिकतर लोग दूसरे के व्यक्तित्व को स्वीकार नहीं पाते। हर व्यक्ति दूसरों से अपनी अपेक्षाओं पर खरा उतरने की उम्मीद करता है। खासकर रिश्तों के मामले में हर किसी के मन में एक फ्रेम होता है। सभी चाहते हैं कि संबंधित व्यक्ति उसी फ्रेम में फिट बैठे। कुछ लोग किसी का भी इस फ्रेम से बाहर जाना बर्दाश्त नहीं कर पाते। लेकिन, दुनिया में सब कुछ किसी की अपेक्षा के अनुरूप ही हो, यह कैसे संभव है? हमें यह बात समझनी चाहिए कि हर किसी का अपना व्यक्तित्व है। किसी से अपने जैसा बनने की अपेक्षा या उसे अपने अनुरूप ढालने की कोशिश खतरनाक हो सकती है। बेहतर होगा कि जो जैसा है, उसे वैसा ही स्वीकार करें।
व्यक्ति का सम्मान
रिश्ता कोई भी हो, टूटने का कारण अधिकतर अहं का टकराव होता है। क्या आपने कभी सोचा है कि यह होता क्यों है? इसकी एक वजह तो यही होती है कि हम दूसरे के व्यक्तित्व को वैसे ही स्वीकार नहीं कर पाते, जैसा वह है। दूसरी यह कि किसी पर अपने व्यक्तित्व और अपनी अपेक्षाओं को थोपने की कोशिश करने लगते हैं। ऐसी स्थिति में अगर दूसरा व्यक्ति हमसे मजबूत हुआ तो वह खुद को साबित करने में लग जाता है और अगर कमजोर हुआ तो समर्पण जैसी अवस्था में आ जाता है। ये दोनों ही स्थितियां सही नहीं हैं। दोनों ही स्थितियों में अहं का टकराव तय है। अगर आपकी ऐसी किसी प्रवृत्ति के कारण कोई संबंध टूटने की ओर बढ़ रहा है, सचेत हो जाएं। पहले तो दूसरों पर अपनी अपेक्षाएं और अपना व्यक्तित्व थोपना बंद कर दें। धीरे-धीरे यह एहसास कराएं कि आपने खुद को बदलना शुरू किया है।
प्रशंसा है जरूरी
रिश्ते चाहे निजी हों या प्रोफेशनल, सभी पौधों की तरह होते हैं। वे फूलते-फलते रहें, इसके लिए उन्हें सींचना अनिवार्य है और रिश्तों की सिंचाई के लिए अच्छे कार्यों की प्रशंसा से बेहतर जल नहीं हो सकता। कोई जब अच्छा कार्य करता है तो वह प्रशंसा चाहता है। होता अक्सर उल्टा है। किसी से कोई गलती हो जाने पर तो हम उसे दस बातें सुना देते हैं, लेकिन अच्छे काम को उसका कर्तव्य मानकर टाल देते हैं। इसके विपरीत अगर अच्छा काम करने पर किसी की प्रशंसा की जाए तो गलतियों पर टोके जाने से भी उसे पर बुरा नहीं लगता।
आभार जताएं
जिस तरह अपेक्षाएं स्वाभाविक हैं, वैसे ही उनके पूरे होने पर आभार जताना भी। कई बार रिश्ते इसलिए टूट जाते हैं कि हम अपना काम हो जाने के बाद संबंधित व्यक्ति को धन्यवाद तक नहीं बोलते। रिश्ते बने रहें, इसके लिए उन्हें सहेजना जरूरी है।
जारी रहे संवाद
बेशक कई बार गलती आपकी नहीं होती, दूसरा पक्ष ही गलत होता है और यह बात जाहिर होती है। यदि यह बात बार-बार की है तो स्थिति अलग है, लेकिन अगर पहली-दूसरी बार की बात है तो क्षमा कर देना बेहतर है। ध्यान रहे, ऐसी स्थिति में संवाद नहीं टूटना चाहिए। क्योंकि किसी भी रिश्ते को बनाए रखने के लिए सबसे जरूरी तत्व है संवाद। संवाद टूट जाने की स्थिति में बने-बनाए रिश्ते भी बेजान होने लगते हैं और टूटे रिश्तों को फिर से जोड़ने में तो सबसे महत्वपूर्ण भूमिका ही संवाद की होती है।