अनिल कुमार शर्मा
दुनियाँ का हिसाब
संजोती किताब
किताब का मौन
समझा कौन
जिसने भी पढ़ा, अपनी तरह गढ़ा !
शब्दों की तात्विक शक्ति पर
अपना विवेक मढ़ा
किताबों का दर्द
समझने वाला
क्या है कोई हमदर्द !
सालों-साल बंद अलमारियों में
जीती हुई धूल भरी ज़िंदगी
झेलती हुई उपेक्षा की दीमकों के आक्रमण
बचाती हुई लाज
उन अनपढ रखवालों से
जिन्होंने जलाकर भस्म कर दिया उनको
उन बेक़सूर औरतों की तरह
जो अपनी ज़बान न खोल सकीं
लिंग भेदभाव और अत्याचार के विरूद्ध
रूढ़िप्रधान दूषित मानसिकता की संकुचित सोच के चूहों ने कुतर दिये
उनके स्वतंत्रता के पर
फिर भी
किताबें जीवित रहीं
अपनी जीवनी शक्ति के दम पर
किताबें ऊर्जित करती रहीं मानवता को
आधुनिकीकरण में सहयोग करती रहीं
वैज्ञानिक प्रणालियों से
उस मॉं की तरह
जो संतान की उपेक्षा के बाद भी
उसकी प्रगति की मंगल-कामना करती है