प्रभु के चरणों में बैठ कर जिस तरह हम तल्लीन होकर एकाग्र होकर पूजा करते हैं। उसी तरह अपने कार्य को भी तल्लीन होकर पूर्ण ईमानदारी से करे तो वह किसी पूजा से कम नहीं होता। जिस तरह बेमन से पूजा करने से कोई फल प्राप्त नहीं होता है। उसी प्रकार बेमन से कोई कार्य करने से सफलता प्राप्त नहीं हो सकती है। सदकार्य करना, कार्य को पूर्ण मनोयोग से करना, कार्य के प्रति पूर्ण समर्पित होना ही श्रेष्ठ पूजा है। अपने जीवनकोपार्जन में सदा उचित लाभ प्राप्त करना ही ईश्वर की पूजा के समान है। हक का कमाना तथा हक से उसका उपयोग करना ही मानव का प्रथम कर्तव्य है। तरह-तरह के लोग तरह-तरह से काम करते हैं। कुछ लोग ऐसे मिलेंगे जो काम की उलझनों और परेशानियों को बिना समझे-बूझे काम शुरू कर देंगे और फिर बिना योजना बनाये काम हाथ में ले लेंगे। ऐसे भी लोग हैं जो एक साथ बहुत से कामों को अपने सिर पर लाद लेंगे और नतीजा यह होगा कि कोई भी काम संतोषजनक ढंग से नहीं हो पायेगा। कुछ लोग माथे का पसीना तक नहीं पोंछते और काम में लगे रहते हैं। अनेक ऐेसे भी लोग हैं जो आसान-आसान कामों को पहले चुन लेते हैं और पेचीदा कामों को अगले दिन के लिये छोड़ देते हैं।
तरीके अलग-अलग
काम करने के तरीके और विधियां भी अलग-अलग होती हैं। औजार एक ही तरह के होते हैं। लेकिन एक अकुशल बढ़ई एक रद्दी सी बैंच ही तैयार कर पायेगा और अर्ध्द-कुशल एक अच्छी कुर्सी। लेकिन एक कुशल बढ़ई खूबसूरत और चमकती हुई कैबिनेट तैयार कर डालता है जो ग्राहकों का मन मोह लेती है। अब जरा सोचिये कुशल मजदूर और अकुशल मजदूर में क्या अंतर है? जाहिर है कि काम करने की उत्तम कला कुशल मजदूर में निखर उठती है जबकि अकुशल मजदूर जोड़ तोड़ करके काम कर पाता है। हर काम करना एक कला है। नेतृत्व में एक कला है। विवाह में एक कला है। यहां तक कि वृध्द होने में भी एक कला है। तब फिर काम तो हमारे जीवन का स्थायी अंग है। उसमें कला का निखार क्यों न हो?
लक्ष्य तय करें
हमें अपना लक्ष्य पता होना चाहिए। बिना लक्ष्य के काम आगे नहीं बढ़ता। जब लक्ष्य सामने होता है तो हमारी तमाम शक्तियां उस लक्ष्य को प्राप्त करने में लग जाती हैं। काम अनेक तरह के होते हैं और उनकी समस्याएं भी अनेक होती हैं। इसलिए लक्ष्य को चुनाव करते समय हमें अल्पकालिक और दीर्घकालिक लक्ष्य अलग-अलग तय करने होंगे और इनको पूरा करने के लिये जो प्रयास हम करेंगे उनकी तरकीब भी यह होगी कि पहले अल्पकालिक लक्ष्य पूरे करें, इसके बाद दीर्घकालिक।
टालमटोल न करें
कई बार हम सोचते हैं कि किसी काम को अगले दिन पर टाल देने से हम उस काम से बच सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। अवचेतन मन अधूरे काम के लिये छटपटाता रहेगा और हमारा मन कभी भी शांत नहीं रह पायेगा। अगर इस तरह के बहुत से कामों की भीड़ इकट्ठी हो जाती है तो आपकी नींद भी हराम ही जायेगी। अधूरे कामों का दबाव आपके चेहरे की चमक भी समाप्त कर देगा। तनाव आपके व्यक्तित्व का स्थायी तत्व बन जायेगा। अपने काम को पूरा करने का सबसे बढ़िया तरीका यही है कि हमारे पास जो सबसे मुश्किल काम है उसे करें। एक बार वह काम पूरा हुआ नहीं कि मन हल्का हो जायेगा और उस काम के कारण जो तनाव हमारे मन पर होगा वह भी समाप्त हो जायेगा। अब आसान मूड के साथ हम अन्य बहुत से काम उत्साहपूर्वक और थोड़े समय में निपटा लेंगे।
समय को नियंत्रित करें
एक काम में एकाग्र होने के साथ समय को नियंत्रित करने की भी जरूरत है। अगर हम बारीकी से देखें कि हमने एक-एक मिनट का उपयोग किस तरह किया है तो हम इस नतीजे पर पहुंचे बिना नहीं रहेंगे कि हमारे समाज का एक चैथाई फिजूल के कामों में चला गया और वही समय अगर बच जाता तो हम शांति पूर्वक अधिक काम कर सकते थे। इसलिए काम की योजना बनाना और उसके बाद उस योजना के अनुसार पूरी तरह वफादारी से काम करना समय को बचाने का सबसे सुनिश्चित रास्ता है। हम जो भी कार्य करें उसमें उत्साह और प्रमोद का तत्व रहना चाहिए। यह तभी होगा जब आगे अपने काम को पसंद करेंगे। अगर हम किसी काम को पसंद करते तो उसके प्रति हमारा प्रेम भी नहीं होगा। जब आप काम को प्यार करते हैं तो यह व्यक्ति के लिये काम करते हैं जिसे आप प्यार करते हैं तो उस काम में आपको थकावट नहीं आयेगी। ऐसी स्थिति में आपके मन का प्यार कार्य के माध्यम से सजीव हो उठता है और फिर जो उपलब्धि सामने आती है उसका सौंदर्य और गुण बेजोड़ होगा। काम के प्रति यह प्यार तभी उपजेगा जबकि लक्ष्य हमारी पसंद का होगा। ऐसे काम को करना जो हमारी पसंद का नहीं है समय और शक्ति की ऐसी बर्बादी है जिसे टाला जा सकता है। इससे बोरियत भी पैदा होती है। हमें कार्य में अपनी आत्मा डालनी पड़ती है और उसके प्रति समर्पित होना पड़ता है। सारांश यही है कि अपना कार्य समय पर सही ढंग से पूरा करना ही पूजा के समान है।