संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की ताजा रपट के मुताबिक, भारत सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है। चीन को पीछे छोड़ दिया गया है। फरवरी, 2023 तक के आंकड़ों के अनुसार, भारत की आबादी 142.86 करोड़ और चीन की 142.57 करोड़ है। भारतीय चीनियों की तुलना में 29 लाख अधिक हो गए हैं। यह सिलसिला अब जारी रहेगा, क्योंकि हमारी औसत प्रजनन दर करीब 2 फीसदी है, लिहाजा आबादी लगातार बढ़ती रहती है। जब भारत अपनी आजादी का शतक पूरा कर चुका होगा, उसके बाद 2050 में हमारी आबादी 166.8 करोड़ से ज्यादा होगी। चीन से तुलना बंद कर देनी चाहिए, क्योंकि 2100 आने तक उसकी आबादी सिकुड़ कर 76 करोड़ के करीब रह सकती है। भारत दुनिया का सबसे ‘युवा देश’ है। करीब 66 फीसदी आबादी 35 साल की उम्र से कम है। भारत में 15-64 आयु-वर्ग की आबादी करीब 68 फीसदी है। इस आयु-वर्ग को ‘कामकाजी’ माना जाता है। 19-40 के आयु-वर्ग के 53 करोड़ हिंदुस्तानी हैं, जो अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं और उन्हीं के दम पर भारत ‘मैन्यूफैक्चरिंग हब’ बनेगा। युवा आबादी हमारे लिए ‘शक्ति-पुंज’ है।
दुनिया का सबसे बड़ा बाजार, सबसे युवा कार्य-बल और सबसे सस्ता श्रम-बल भारत में उपलब्ध है, लिहाजा हम दुनिया के ‘बाजार-बादशाह’ हैं। दुनिया के उदाहरण सामने हैं कि यदि अमरीका, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया सरीखे देशों ने असीम सफलताएं हासिल की हैं, तो सिर्फ अपनी युवा आबादी के बल पर ही…। चूंकि अब उनकी आबादी बुढिय़ाने लगी है, तो काम के संकट भी पैदा हो रहे हैं। सामूहिक ताकत, ऊर्जा, कौशल, कारोबार, उत्पादन आदि के संदर्भ में ‘सबसे ज्यादा हिंदुस्तानी’ होने की खबर सुखद है। उम्मीद और संभावनाओं के व्यापक आसमान खोलती है, लेकिन चिंताएं और चुनौतियां भी मौजूद हैं। दुनिया की 800 करोड़ से ज्यादा की आबादी में भारत की हिस्सेदारी 17.77 फीसदी है, लेकिन हमारा भू-भाग मात्र 2.5 फीसदी है। संसाधन भी सीमित हैं। हालांकि भारत की इतनी आबादी होने के बावजूद हमारे सामने भुखमरी और सूखा-अकाल के हालात नहीं हैं, लेकिन देश के रेलवे स्टेशन, बस अड्डों, मेट्रो स्टेशनों, अस्पताल, स्कूल, बाजारों, राशन के डिपो से लेकर 5 किलो मुफ़्त अनाज के वितरण-केंद्रों आदि तक पर जब जन-सैलाब देखते हैं, तो असंतुलन का खौफ पैदा होने लगता है।
असंख्य चेहरे आंदोलित होते हैं, किसान अपनी फसल को जलाने को विवश होते हैं और बेरोजगार युवा आक्रोश में आकर तोड़-फोड़ करने लगते हैं, तो आबादी का ‘शक्ति-पुंज’ ही देश को जलाता हुआ लगता है। सब कुछ सवालिया हो जाता है। बेशक भारत में बहुत कुछ बदल चुका है। देश में करीब 50 करोड़ कामगार हैं। यदि 15 साल से अधिक उम्र के कामगारों को भी जोड़ लिया जाए, तो यह आंकड़ा 100 करोड़ को छू सकता है। इतने कामगार दुनिया के किसी भी देश में नहीं हैं। चीन को छोड़ दें, तो अमरीका, यूरोप, अफ्रीका की इतनी आबादी भी नहीं है। देश की तकनीकी कंपनियों में करीब 54 लाख लोग कार्यरत हैं। 2022-23 के दौरान इन कंपनियों ने 2.90 लाख लोगों को नौकरियां दी हैं। मार्च तिमाही में रोजगार दर करीब 37 फीसदी थी। हमारे देश में महिला कामगारों की संख्या भी काफी है, हालांकि इस संदर्भ में अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। भारत में दक्ष कामगारों की बदौलत हम 2030 तक 7 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकते हैं। विशाल और व्यापक आबादी हम पर बोझ नहीं है, अलबत्ता योजनाओं का सार्थक क्रियान्वयन करना बेहद जरूरी है। भारत साबित कर सकता है कि सबसे ज्यादा आबादी भी सकारात्मक हो सकती है।