लू से बचने के लिए अपनाये ये उपाय

asiakhabar.com | April 21, 2023 | 6:27 pm IST
View Details

गरमियां आते ही सभी के मन में लू लगने का डर समाने लगता है। लेकिन क्यों करें चिलचिलाती गरमी में लू का सामना जब हैं इस से बचने के उपाय। लू से जुड़ी महत्त्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं डाॅ. जकी खान।
भारत गरम जलवायु वाला देश है। विशेषकर मध्य भारत और उत्तर भारत में तो मई और जून के महीनों में ज्यादा ही गरमी पड़ती है। सूरज की गरम धूप के साथ तेज हवाएं व्यक्ति को घर के अंदर रहने पर विवश करती हैं। लेकिन आवश्यक कार्यवश या औफिस आनेजाने के लिए लोगों को इस भीषण गरमी में भी निकलना पड़ता है और ऐसे वक्त ही लू यानी हीट स्ट्रोक का खतरा रहता है। देश में प्रतिवर्ष हजारों लोग लू का शिकार हो कर जान गंवा बैठते हैं। इन में से कई तो अज्ञानता या असावधानियों की वजह से इस के प्रकोप से बच नहीं पाते जबकि लू से बचने के उपाय बहुत कठिन नहीं हैं।
क्या है हीट स्ट्रोक
मनुष्य के शरीर का तापक्रम सामान्य 97 डिगरी से 99 डिगरी सैंटीग्रेड के बीच होता है। सामान्य परिस्थितियों में शरीर पर आसपास के तापमान की घटबढ़ का विशेष असर नहीं होता। मानव मस्तिष्क में स्थित एक भाग हाइपोथैलेमस विभिन्न प्रक्रियाओं के माध्यम से शरीर के तापक्रम को स्थिर रखने में सहायक होता है। जब गरमी बढ़ती है तो शरीर का तापक्रम कुछ बढ़ता है लेकिन पसीना निकलने से वह फिर सामान्य हो जाता है।
जब बाहरी वातावरण का तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है तो शरीर भी बहुत तेजी से पसीना निकालना शुरू कर देता है। यहां तक कि 6 से 8 लिटर तक पानी, शरीर से पसीने के रूप में निकल सकता है। इस पसीने के साथ ही प्रति लिटर, 2 ग्राम सोडियम लवण भी बाहर निकल जाता है और फिर एक स्थिति ऐसी आती है कि शरीर से पसीना निकलना कम हो जाता है। शरीर के ताप को नियंत्रित करने वाली इस स्थिति में शरीर का तापमान बहुत बढ़ जाता है और पानी की कमी हो जाती है। अत्यंत तेज बुखार (110 डिगरी या इस से ऊपर) के साथ रोगी में अन्य लक्षण भी उत्पन्न हो जाते हैं। इस बीमारी को लू लगना यानी हीट स्ट्रोक कहते हैं।
रोग के लक्षण
रोगी को तेज बुखार आता है और जब वह 110 डिगरी फौरेनहाइट के पास या इस से ऊपर पहुंचता है तो नाक, कान या मुंह से रक्त निकलना शुरू हो जाता है और व्यक्ति गहरी बेहोशी यानी कोमा में पहुंच जाता है। इस से रक्तचाप भी कम हो जाता है। इस स्थिति में तुरंत इलाज न मिला तो रोगी की मृत्यु भी हो सकती है। यह उल्लेखनीय है कि इलाज द्वारा ऐसे 60 प्रतिशत रोगियों को बचाया जा सकता है जबकि 110 फौरेनहाइट से कम तापक्रम वाले 90 प्रतिशत मरीजों को इलाज से बचाया जा सकता है।
उपचार
डाक्टर के आने से पहले मरीज को ऐसी छायादार ठंडी जगह में लिटाना चाहिए जहां पर्याप्त हवा आती हो। उस के शरीर से कपड़े अलग कर देने चाहिए।
सर्वप्रथम रोगी के शरीर के बढ़े हुए तापक्रम को कम करने का प्रयास करते रहें। इस के लिए यदि बर्फ उपलब्ध हो तो उसे पानी में डाल कर उस में तौलिए को भिगो कर शरीर को गीला करते हुए रगड़ना चाहिए। यदि शरीर का तापक्रम बहुत अधिक बढ़ा हो (105 फौरेनहाइट) तो रोगी को बर्फ मिले पानी के टब में भी कुछ समय बिठाया जा सकता है। जब तापक्रम 102 डिगरी फौरेनहाइट से नीचे आ जाए तो यह प्रक्रिया बंद कर देनी चाहिए।
यदि रोगी पानी पी सकता हो तो उसे इलैक्ट्रौल या नमक मिला पानी पिलाना चाहिए। इस के अलावा फलों का रस, लस्सी आदि भी दे सकते हैं। यदि संभव हो तो ऐसे मरीज को अस्पताल में तुरंत भरती करवा देना चाहिए क्योंकि बेहोश मरीज की देखभाल अस्पताल में ही ठीक ढंग से हो सकती है। कुछ मामलों में रोगी को रक्त देने की भी आवश्यकता पड़ सकती है।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *