विजय कनौजिया
हमें कोई दे दे खुशी पहले जैसी
हमें कोई दे दे हंसी पहले जैसी
मेरी आंखें नम हों उन्हें देखकर फिर
हो सावन की बरसात फिर पहले जैसी..।।
अरमानों की सूची फिर से बनाऊं
रूठें अगर तो पुनः मैं मनाऊं
प्रतीक्षा आंखों में झलके वही फिर
हो कदमों की आहट मधुर पहले जैसी..।।
हों शिकवे शिकायत गिला वाली बातें
निभाने की ज़िद हो वही रिश्ते-नाते
मिटे फिर से मन भेद जो भी हैं उपजे
हो मिलने की चाहत पुनः पहले जैसी..।।
तकती रहें आंखें रस्ता गली का
जिधर से हो आना पुनः आज उनका
विरह वेदना आज मिट जाएं सारे
हो उनसे हमारी लगन पहले जैसी..।।
मन का बगीचा हो फिर से सुहावन
हों पुष्पों की खुश्बू पुनः फिर लुभावन
मन का मयूरा हो मदमस्त झूमें
हो भौरों की गुंजन पुनः पहले जैसी..।।
हो भौरों की गुंजन पुनः पहले जैसी..।।