नई दिल्ली।दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि ज्ञान को क्लोज सिस्टम में नहीं अपितु ओपन सिस्टम में होना चाहिए, तभी यह सबके लिए सर्वसुलभ हो सकता है। प्रो. योगेश सिंह अकादमिक पुस्तकालयों पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कान्फ्रेंस (आईसीएएल-2023) के उद्घाटन अवसर पर डीयू के वाइसरीगल लॉज में आयोजित उद्घाटन समारोह में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे। इस अवसर पर रसियन स्टेट लाइब्रेरी के डीजी डॉ. वादिम दुदा मुख्य वक्ता के तौर पर उपस्थित रहे। गौरतलब है कि “ट्रांसफॉर्मिंग एकेडमिक लाइब्रेरीज: इवोल्यूशन, इनोवेशन, क्वालिटी, ट्रांसफिगरेशन” विषय पर आयोजित इस कॉन्फ्रेंस का आयोजन दिल्ली विश्वविद्यालय लाइब्रेरी सिस्टम (डीयूएलएस) द्वारा 5 से 8 अप्रैल तक दिल्ली विश्वविद्यालय में किया जा रहा है।
कॉन्फ्रेंस के पैटर्न एवं उद्घाटन समारोह के मुख्यातिथि प्रो. योगेश सिंह ने अपने संबोधन में आगे कहा कि ज्ञान को पकड़ कर नहीं रखा जाना चाहिए बल्कि इसे शेयर किया जाना चाहिए। उन्होने एमएस विश्वविद्यालय, बड़ौदा में अपने कुलपति के रूप में कार्यकाल के दौरान वहां के पुस्तकालय में मौजूद संस्कृत, प्राची और प्राकृत भाषाओं में उपलब्ध पाण्डुलिपियों के अनुवाद करवाने का उदाहरण देते हुए कहा कि ज्ञान को पूरे विश्व के लिए उपलब्ध होना चाहिए। कुलपति ने कॉन्फ्रेंस के विषय में प्रयोग किए गए शब्दों इवोल्यूशन, इनोवेशन, क्वालिटी, ट्रांसफीग्रेशन का जिक्र करते हुए कहा कि बिना आधुनिक सिस्टम को अपनाएं यह संभव नहीं है।
प्रो. सिंह ने कहा की यदि इतिहास और सभ्यता को नष्ट करना चाहते हैं तो पुस्तकालयों को नष्ट करना काफी है। उन्होंने भारत के नालंदा जैसे विश्वविद्यालयों के पुस्तकालयों के जलाए जाने के उदाहरण देते हुए कहा कि भारत ने इस त्रासदी को भोगा है। कुलपति ने कहा कि सौभाग्य से भारत में उस दौर में ज्ञान को कंठस्थ करने की परंपरा थी जिसने उस ज्ञान और ज्ञान के स्रोत को जिंदा रखा। उन्होंने कहा कि आज हमारे पास ज्ञान के लिखित भंडारण के आधुनिक सिस्टम हैं और उनके संरक्षण की उचित व्यवस्था भी हैं। आज हमारे ज्ञान और ज्ञान के स्रोत को कोई जला कर नष्ट नहीं कर सकता। कुलपति ने बताया कि भारत सरकार ने नैशनल डिजिटल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया स्थापित की है। जल्द ही देश के सभी पुस्तकालय आपस में जुड़ जाएंगे। इससे जुडने के बहुत से फायदे होंगे। कुलपति ने कांफ्रेंस के आयोजकों को सुझाव दिया कि इस कॉन्फ्रेंस के दौरान विचार, प्रयोग और परिणाम पर एक अलग से सेक्शन होना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने आशा जताई कि यह कान्फ्रेंस अगले 25 वर्षों के लिए पुस्तकालयों को नई दिशा में चलने के लिए मानक तय करेगी।
कान्फ्रेंस के मुख्य वक्ता, रसियन स्टेट लाइब्रेरी के डीजी डॉ. वादिम दुदा ने अपने संबोधन में कहा कि बौद्धिक संपदा सबसे बड़ी संपदा है। हमें आपसी प्रयासों के द्वारा पुस्तकालयों के माध्यम संपदा के इस इतिहास को संजोना है। उन्होने कहा कि डिजिटल का अर्थ पुस्तकों और पेपरों को मात्र पीडीएफ़ रूप में ही बदलना ही नहीं है, अपितु उसे पूर्ण रूप से डिजिटल फोरम में ढालना है। उन्होने बताया कि आज के समय में 98% सूचनाएं डिजिटल फोरम में उपलब्ध हैं। दुदा ने कहा कि आगामी पीढ़ियों के लिए ज्ञान संपदा को सहेजने के लिए हमें पुस्तकालयों के सिस्टम हेतु नए मानक स्थापित करने होंगे।
कान्फ्रेंस के अध्यक्ष एवं दक्षिणी दिल्ली परिसर के निदेशक प्रो. श्री प्रकाश सिंह ने समारोह के आरंभ में अतिथियों का स्वागत किया। उनके पश्चात कान्फ्रेंस के निदेशक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार ने कॉन्फ्रेंस के विषयों और प्रतियोगिता के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उद्घाटन समारोह के अंत में आयोजन के ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी एवं विश्वविद्यालय के पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ. राजेश सिंह ने धन्यवाद प्रस्ताव ज्ञापित किया। इस दौरान कॉन्फ्रेंस के सोवेनियर और कान्फ्रेंस की सार पुस्तिका का विमोचन भी किया गया। इस अवसर पर डीयू शताब्दी समारोह समिति की संयोजक प्रो. नीरा अग्निमित्रा व डीयू कुलसचिव डॉ. विकास गुप्ता सहित अनेकों प्रतिभागी, डींस, विभागाध्यक्षा व शिक्षक आदि उपस्थित रहे।