सन् 1956 में मध्य प्रदेश के गठन के बाद विधानसभा का पहला अध्यक्ष पंडित कुंजीलाल दुबे को बनाया गया। वे सरल-सहज व्यक्ति थे। प्रदेश गठन के कुछ समय बाद भोपाल में एक विशेष सम्मेलन आयोजित किया गया। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को इसमें बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया गया।
चूंकि प्रधानमंत्री आने वाले थे, इसलिए इस सम्मेलन पर पूरे प्रदेश की जनता की नजर थी। पंडित कुंजीलाल दुबे को इस सम्मेलन का अध्यक्ष बनाया गया था, इसलिए तय हुआ कि नेहरू जी के साथ-साथ मंच से पंडित जी का भी उद्बोधन होगा। मगर दुबे जी के साथ दिक्कत ये थी कि वे छोटी-मोटी बात तो ठीक, बड़ी बातें भी अक्सर भूल जाया करते थे। सबको डर था कि कहीं वे भूलवश अंट-शंट न बोल दें, इसलिए उन्हें एक-एक तथ्य लिखकर दिया गया।
अंततः सम्मेलन वाला दिन आया और दुबे जी बोलने खड़े हुए। जिसका डर था, वही हुआ। उन्होंने शुरू में ही बहुत बड़ी गलती कर दी। उन्हें बोलना था ‘स्वर्गीय मोतीलालजी नेहरू के सुपुत्र जवाहरलाल नेहरू’ और वे बोल गए ‘स्वर्गीय जवाहरलाल नेहरू’!
उनके इतना बोलते ही सभा में सन्नाटाछा गया क्योंकि जवाहरलाल नेहरू तो स्वयं मंच पर जीवंत विराजमान थे। सब सकते में आ गए कि कहीं नेहरू नाराज न हो जाएं! मगर नेहरू मंद-मंद मुस्करा दिए। तभी सम्मेलन के महामंत्री रामगोपाल माहेश्वरी ने पंडित कुंजीलाल दुबे का कुर्ता पीछे से खींचा और उन्हें बताया कि वे गलत बोल गए हैं। पता लगते ही दुबे जी ने मंच से तुरंत माफी मांगी और फिर पूरे भाषण में माफी मांगते रहे।
अंततः गलती के प्रायश्चित के लिए उन्होंने 48 घंटे तक जल की एक बूंद भी नहीं पीने का संकल्प ले लिया। और वास्तव में मंच से उतरने के बाद से 48 घंटे तक वे निर्जल उपवास पर ही रहे।