-लालजी जायसवाल-
उत्तर प्रदेश में केंद्र सरकार की व्हीकल स्क्रैप पालिसी को पूरी तरह से लागू करने की तैयारी चल रही है। इसे देखते हुए उत्तर प्रदेश की सड़कों पर दौड़ने वाले 15 वर्ष से अधिक पुराने वाहनों को कबाड़ घोषित किया जाएगा। एक अप्रैल 2023 से 15 वर्ष से अधिक पुराने वाहनों को कबाड़ में भेजे जाने की तैयारी है। लिहाजा केंद्र सरकार के सड़क परिवहन मंत्रालय ने ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी किया है। नया नियम निगमों और परिवहन विभाग की बस एवं अन्य गाड़ियों के लिए भी अनिवार्य होगा। सड़क परिवहन मंत्रालय की मंशा के अनुरूप उत्तर प्रदेश सरकार 15 वर्ष से ऊपर के निजी वाहनों के साथ-साथ विभागों में लगे पुराने वाहनों को भी स्क्रैप में बदलने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
सरकार ने यह निर्णय निरंतर बढ़ते प्रदूषण को कम करने के लिए लिया है। पर्यावरणीय प्रदूषण को देखते हुए वित्त मंत्री ने आम बजट 2021-22 में पुराने वाहनों को सड़कों से हटाने के लिए ‘स्क्रैप पालिसी’ की घोषणा की थी। ध्यातव्य है कि देश में एक करोड़ से अधिक वाहन ऐसे हैं जो आम वाहनों की तुलना में 10 से 12 गुणा अधिक प्रदूषण फैलाते हैं। स्क्रैप पालिसी से गाड़ियों की वजह से होने वाले प्रदूषण में 25 से 30 प्रतिशत की कमी होगी। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय का कहना है कि स्क्रैप पालिसी से पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुंचाने वाले वाहनों की संख्या में कमी आएगी। अनुमान है कि वाणिज्यिक वाहन, जो कुल वाहन बेड़े का लगभग पांच प्रतिशत हैं, प्रदूषण में लगभग 65-70 प्रतिशत तक का योगदान देते हैं। वर्ष 2000 से पहले निर्मित वाहन कुल बेड़े का एक प्रतिशत हैं, लेकिन कुल वाहनों के प्रदूषण में इनका योगदान लगभग 15 प्रतिशत है। इनकी तुलना यदि आधुनिक वाहनों से करें तो पुराने वाहन 10 से 15 गुना अधिक प्रदूषण उत्सर्जित करते हैं।
सार्वजनिक परिवहन को प्रोत्साहन: उल्लेखनीय है कि ‘स्क्रैप पालिसी’ के पीछे सरकार की मंशा निजी वाहनों की बढ़ती संख्या को कम करना और सार्वजनिक परिवहन के अधिक से अधिक उपयोग पर बल देना है। आज स्थिति यह है कि देश में बड़ी संख्या उन लोगों की है जो अपने निजी वाहनों से चलना पसंद करती है। ऐसे लोग ट्रेन या बसों में यात्रा करने से परहेज करते हैं। कुल यात्रियों की तुलना में सार्वजनिक परिवहन के माध्यम से यात्रा करने वालों की संख्या निरंतर कम होती जा रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1994 में जहां भारत के सभी बड़े शहरों में 60 से 80 प्रतिशत नागरिक सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करते थे, वहीं यह संख्या 2019-20 में घटकर 25-35 प्रतिशत पर पहुंच गई थी। वर्तमान में यह संख्या और कम हुई होगी, क्योंकि कोरोना महामारी के बाद अधिकांश सक्षम लोगों ने निजी वाहन खरीदने को प्राथमिकता दी है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 10 किलोमीटर की यात्रा बस से करने में औसतन एक व्यक्ति द्वारा 0.01 ग्राम पर्टिकुलेंट मैटर (पीएम) उत्सर्जित होता है। जबकि उतनी ही दूरी यदि कार से तय की जाए तो उससे 0.08 ग्राम यानी आठ गुना और दोपहिया वाहन से 0.1 ग्राम यानी दस गुना अधिक पर्टिकुलेंट मैटर उत्सर्जित होता है। डीजल चलित ऑटो रिक्शा भी अत्यधिक प्रदूषण (.46 ग्राम पीएम प्रति 10 किमी) फैलाते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, एक साल में चंडीगढ़ में एक वाहन द्वारा औसतन 26.46 ग्राम पीएम और 250 ग्राम कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जित किया जाता है, जबकि दिल्ली में यह औसत 9.91 और 120 ग्राम है। चंडीगढ़ में निजी वाहनों के अधिक और सार्वजनिक परिवहन (बस, लोकल ट्रेन) आदि के कम प्रयोग के कारण ऐसा हो रहा है। चूंकि आज अधिकांश लोग निजी वाहन से यात्रा को प्राथमिकता दे रहे हैं, लिहाजा वाहनों की संख्या निरंतर बढ़ रही है।
सार्वजनिक वाहन की समुचित व्यवस्था: निजी वाहनों के बढ़ने का सबसे बड़ा कारण सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था का ढांचा लुंज-पुंज होने से जुड़ा है। सार्वजनिक परिवहन के नाम पर केवल बसें ही हैं और वह भी अपर्याप्त हैं। बसों के लिए कई बार लंबा इंतजार करना पड़ता है। दिल्ली-एनसीआर में वाहनों की संख्या एक करोड़ से अधिक हो चुकी है। प्रदूषण के बढ़ने के बड़े कारणों में यह शामिल है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) अदालत में दिल्ली पाल्यूशन कंट्रोल कमेटी (डीपीसीसी) के अधिकारियों ने बताया था कि दो-पहिया और डीजल गाड़ियां पेट्रोल की गाड़ियों से कहीं अधिक प्रदूषण फैलाती हैं। वायु प्रदूषण में दो-पहिया वाहनों का कुल 30 प्रतिशत तक का योगदान रहता है, जो सबसे ज्यादा हानिकारक गैस फैलाते हैं। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारें स्वयं जिम्मेदार नजर आती हैं। इसलिए जब तक सभी राज्य सरकारें शहरों के लिए समन्वित सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को विकसित करने के लिए समुचित योजना तैयार नहीं करेंगी, तब तक शहरों की परिवहन व्यवस्था में सुधार नहीं लाया जा सकता है।
केंद्र सरकार ने वर्ष 2021-22 के बजट में जोर देते हुए कहा था कि स्क्रैप पालिसी से प्रदूषण में भारी कमी आएगी। परंतु ऐसा तब होगा जब अधिक से अधिक लोग सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करेंगे, लेकिन चिंता की बात यह है कि उसकी व्यवस्था देश में अभी भी अपर्याप्त है। सरकार ‘स्क्रैप पालिसी’ से प्रदूषण की समस्या को कम करना तो चाहती है, परंतु सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त किए बिना ऐसा होना संभव नहीं है। देश का मध्यम वर्ग अधिकतर सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पर निर्भर रहता है, ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह इसका सुचारु रूप से प्रबंधन करे। यहां पर ध्यान देने वाली बात यह भी है कि वर्ष 2014 से 2017 के बीच दो-पहिया वाहनों और कार से चलने वाले यात्रियों की संख्या में हर साल आठ से 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वहीं सरकारी बसों की संख्या निरंतर घटती जा रही है। वहीं दूसरी ओर निजी बस मालियों या कंपनियों द्वारा संचालित बसों में अपेक्षाकृत अधिक किराया होने और सुविधाएं कम होने के कारण भी कई लोगों का सार्वजनिक परिवहन सेवाओं से मोहभंग हो रहा है।