आरिफ़ असास
ठहर जाओ कुछ पल
पलकों में मेरी
अब तो बदल जाओ
तुम सुन के बातें मेरी
खोल दो अब तो
ज़ुल्फ़े घनहरी
कर दो अब तो छावं
भरी दोपहरी
चली आओ अब तो
शाम है सिंदूरी
तुझ में हूं मुझ में तू है
फिर भी है तू क्यू अधूरी
बैठो जाओ पल दो पल
हमारी बातें है अधूरी
तेरी आदतों से
आरिफ़ की है कितनी मजबूरी..