भारत को जब स्वतंत्रता प्राप्ति हुई उसी वक़्त से कई चीजों को राष्ट्र द्वारा चिन्हित कर दिया गया था। ऐसी ही एक चीज है जो राष्ट्र के सम्मान के प्रतीक के रूप में पहचानी जाती है। वह है “जन गण मन” जिसे भारत के राष्ट्रगान का दर्जा प्राप्त है। रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित यह राष्ट्रगान बंगाली भाषा मे लिखा गया है जिसका बाद में हिंदी अनुवाद हुआ और उसे भारत के राष्ट्रगान का दर्जा दिया गया। आज यह 52 सेकेंड का राष्ट्रगान चर्चा का विषय बना हुआ है। हालांकि राष्ट्रगान का चर्चा में बने रहना अच्छी बात है लेकिन अगर राष्ट्रगान विवादों में रहे तो यह सही नहीं है।
इसको एक सन्दर्भ से समझने की कोशिश करें तो कुछ दिनों पहले एक फ़िल्म ‘दंगल’ रिलीज हुई थी। उस फिल्म के एक सीन में राष्ट्रगान फिल्माया गया था। तो वहां सिनेमाघर में जितने भी लोग फ़िल्म देख रहे थे वह उठ खड़े हो गए। फिर जब सुप्रीम कोर्ट का इस पर आदेश सुना तो वह यह था कि फिल्मों के बीच में अगर राष्ट्रगान फिल्माया जाता है तो आपका राष्ट्रगान के लिए खड़े होना अनिवार्य नहीं है। लेकिन अगर फ़िल्म शुरू करने से पहले राष्ट्रगान सिनेमाघर में बजता है तो आपका खड़े होना अनिवार्य है।
अब कुछ लोगों ने इस मुद्दे को यहां खत्म ही नहीं होने दिया। कुछ लोगों का कहना था कि राष्ट्रगान के लिए लोगों को खड़े होने पर सरकार बाध्य नहीं कर सकती। तो अगर लोगों के इस तर्क पर भी विचार करें तो एक बात जहन में उठती है कि राष्ट्रगान के लिए शायद वही व्यक्ति उठ न पाए जो निःशक्त है या जो असमर्थ है किसी कारणवश खड़े होने में। जो 52 सेकेंड के राष्ट्रगान को समय नहीं दे सकते वह शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं लेकिन मानसिक रूप से अस्वस्थ हो चुके हैं। तो ऐसे लोगों से तो दिव्यांग लोग ही बेहतर हैं कम से कम उनके पास जो भी है उसे राष्ट्रहित में देने का प्रयास तो करते हैं।
अभी हाल ही में अभिनेत्री विद्या बालन ने इस मुद्दे पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि लोगों पर राष्ट्रगान थोपा नहीं जा सकता, उन्हें बाध्य नहीं किया जा सकता। देश के लिए ऐसा बयान क्या उचित है? भले ही उनके लिए ये उचित हो पर अगर कोई फ़िल्म जो भारत में रिलीज होने वाली हो जैसे उदाहरण के तौर पर पद्मावती फ़िल्म को ही ले लें। वह फ़िल्म इतिहास के पन्नों से जुड़ी थी और इस कारण लोगों ने उसका बहिष्कार किया क्योंकि यह फ़िल्म लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचा रही थी। जहां लोगों के मन में एक फ़िल्म को लेकर इतना आक्रोश आ जाता है वहीं एक राष्ट्रगान को लेकर इस प्रकार के तर्क!
लोगों का राष्ट्रगान के लिए खड़े होना यह साबित नहीं करता है कि सरकार उन पर उसे थोप रही है, या सरकार उन्हें बाध्य कर रही है। यह सिर्फ इस बात का प्रयास है कि लोगों के मन मे राष्ट्रगान किसी न किसी तरीके से जिंदा रहे। इस राष्ट्रगान में भारत का इतिहास सिमटा हुआ है। मात्र 5 पदों का यह गान जब भी कोई व्यक्ति सम्मानपूर्वक सुनता है या गाता है तो यही 52 सेकेंड का राष्ट्रगान कहीं न कहीं व्यक्ति के मानसिक स्तर पर प्रभाव डालता है। और कहीं न कहीं 1 प्रतिशत ही सही लोगों में राष्ट्रीयता की भावना उतपन्न कर ही जाता है। तो ऐसे राष्ट्रगान का अनादर कोई कैसे कर सकता है। जो लोग यह कहते हुए फिरते हैं कि राष्ट्रगान को किसी पर थोप नहीं सकते उन लोगों की सोच पर सबसे ज्यादा दुख होता है।
प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट्स टू नेशनल ऑनर एक्ट 1971 की धारा 3 के मुताबिक अगर कोई राष्ट्रगान में बाधा उतपन्न करता है या किसी को राष्ट्रगान गाने से रोकने की कोशिश करता है तो उसे ज्यादा से ज्यादा 3 साल कैद की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। हालांकि इसमें इस बात का जिक्र नहीं है कि किसी भी व्यक्ति को इसे गाने के लिए बाध्य किया जाए लेकिन भारतीयों से यह उम्मीद की जाती है कि वह राष्ट्रगान के समय सावधान की मुद्रा में खड़े रहें। और खड़े रहना या न रहना भी लोगों की स्वयं की इच्छा है लेकिन इतनी नैतिकता तो सभी के मन में होनी चाहिए कि हम अपने राष्ट्रगान को सम्मान दे सकें।
राष्ट्रगान देशहित व देशप्रेम से परिपूर्ण वह कृति है, वह संगीत रचना है जो देश के इतिहास की गाथा, सभ्यता, संस्कृति तथा लोगों के संघर्षमय जीवन का बखान करता है। श्याम नारायण चौकसे एक ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी बात यहाँ करना बेहद जरूरी है, चौकसे जो मूलतः मध्य प्रदेश के निवासी हैं और करीब 13 साल पहले मध्य प्रदेश हाइकोर्ट में इन्होंने एक याचिका दायर की थी। उनका कहना था कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजने के दौरान सभी व्यक्तियों का खड़ा होना अनिवार्य किया जाए और सुप्रीम कोर्ट ने भी अपना फैसला चौकसे जी के पक्ष में सुनाया।
यह चौकसे जी का तत्काल कदम उठाने का परिणाम था। इसके पीछे उनकी कई सालों की मेहनत थी वह भी राष्ट्रगान के लिए। अब लोगों को यह अवश्य सोचना चाहिए कि जब एक व्यक्ति अपनी जिंदगी के 13 साल उस राष्ट्रगान को दे सकता है तो फिर हम क्यों मात्र 52 सेकेंड नहीं दे सकते। एक और व्यक्ति का उदाहरण ले लें जो कि एक लघु फिल्मकार हैं जिनका नाम है उल्हास पीआर। इनका राष्ट्रगान के प्रति इतना सम्मान था कि इन्होंने अमिताभ बच्चन को भी नहीं बख्शा। अमिताभ जी ने एक बार भारत पाकिस्तान के टी20 विश्वकप के दौरान 52 सेकेंड का राष्ट्रगान 1 मिनट 10 सेकेंड में गाया था जिसके चलते उल्हास जी ने बच्चन जी के खिलाफ शिकायत दर्ज करा दी थी।
इन सभी घटनाओं का जिक्र यहां करना इसलिए भी जरूरी है कि भारत मे कुछ लोग जहां राष्ट्रगान के प्रति इतना सम्मान रखते हैं वहीं कुछ लोग इसके सम्मान में खड़ा होना भी नहीं चाहते। अपने अंदर की उस आवाज से पूछिए जो कहीं न कहीं देशहित के प्रति आपको जरूर बाध्य कर रही हैं। आप इस देशभक्ति की आवाज को सुनें। तभी आप भारत से जुड़ी हर छोटी से छोटी चीज में भी देशभक्ति का भाव देख पाएंगे।