एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने दिल्ली में धुंध की स्थिति की तुलना लंदन में 1952 के ग्रेट स्मॉग से की। लंदन में उस समय वायु प्रदूषण के कारण 4,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। सफदरजंग अस्पताल में श्वसन संबंधी औषधि विभाग के प्रमुख जे.सी सूरी ने कहा कि पिछले दो दिनों में मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि धुंध का तत्काल प्रभाव खांसी, गले में संक्रमण और न्यूमोनिया है, लेकिन दीर्कालिक प्रभाव बहुत खतरनाक हो सकते हैं और इससे फेफड़े का कैंसर भी हो सकता है।
बीजिंग से 10 गुना ज्यादा जहरीली है दिल्ली की हवा
राजधानी दिल्ली में प्रदूषण का प्रकोप लगातार दूसरे दिन भी जारी रहा, सड़कों पर काली धुंध का पर्दा चढ़ा रहा। प्रदूषण का स्तर बीजिंग के मुकाबले 10 गुना ज्यादा रिकॉर्ड किया गया। गौरतलब है कि बीजिंग दुनिया भर में अपने प्रदूषण के लिए सुर्खियों में बना रहता है। दिल्ली में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंचने के साथ ही सांस संबंधी समस्याओं के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। चिकित्सकों का कहना है कि कई लोगों में सांस संबंधी समस्या जानलेवा स्थिति में भी पहुंच सकती है।
एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने बताया, सांस लेने में दिक्कत, खांसी, छींकने, सीने में जकड़न और एलर्जी एवं दम फूलने की शिकायतों के साथ मरीज ओपीडी में आ रहे हैं। सांस और हृदय संबंधी समस्याओं का उपचार कराने के लिए आने वाले मरीजों की संख्या में करीब 20 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। बहरहाल, उन्होंने कहा कि एन95 मॉस्क और एयर प्यूरीफायर से पूर्णकालिक राहत नहीं मिलने वाली है और इस बात पर जोर दिया कि इस संकट से निपटने के लिए दीर्कालिक कदमों की जरूरत है।