गोपाल बघेल ‘मधु’
टोरोंटो, ओन्टारियो, कनाडा
आओ उर में गाओ सुर में,
स्पंदित कर हर हृद भव में;
प्रति प्राण प्रफुल्लित नर्तन कर,
भर जाए सुधा वसुधा सुधि में!
आए वसंत नव फाग लिए,
हर मानव मन अनुराग दिए;
चहके कुहके पाखी जीवन,
हर वनस्पति पुलके त्रिभुवन!
साधना ध्यान सब कर पाएँ,
कर योग स्वास्थ्य सौजन्य वरें;
आत्मा उज्ज्वल चैतन्य रहे,
परमात्म चरण में अर्पित हो!
द्योतित दीप्तित हर दृष्टि रहे,
क्षिति सलिल अनल औ अनिल बहे;
हो गगन सूक्ष्म प्रणवित प्रभवित,
चित अहं महत में हो थिरकित!
कोशिका चक्र गुरु गति पाएँ,
नाड़ी नारायण को भाए;
‘मधु’ मानवता को मर्म दिए,
हों धर्म परायण धरिणी में!