-प्रो. मनोज डोगरा-
भारत एक ऐसा देश है जहां देश की भूमि की कल्पना ही एक नारी अर्थात भारत मां के रूप में की जाती है और भारत माता के रूप में ही पूजा भी जाता है। ऐसा राष्ट्र व समाज जहां प्राचीन समय से ही नारी की देवी के रूप में पूजा की जाती है तथा नारी को देवतुल्य समझा जाता है, लेकिन जैसे-जैसे वक्त का पहिया घूमा, समाज में देवी रूपी महिलाओं को हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया, चाहे वो महिलाओं के प्रति अत्याचार हो, अपराध हो या दहेज के लिए शोषण हो। इन धारणाओं से समाज में महिला सशक्तिकरण की आवाज आज बुलंद हुई है। इसमें सबसे विशेष तो यह है कि सशक्तिकरण तो महिलाओं का होना है, लेकिन इसमें अहम भूमिका पुरुषों ने निभानी है। यह भूमिका एक पुरुष बतौर पिता, पुत्र, भाई, पति व मित्र इत्यादि के रूप में निभाएंगे। अगर पुरुष इन भूमिकाओं की अदायगी एक आदर्श रूप में करें तो स्वत: ही महिलाओं के जीवन स्तर में उत्थान व विकास तीव्र गति से होगा। लेकिन महिलाओं को भी अपने लिए सशक्त होने की आवश्यकता है। कुछ महिलाएं अपने घर तक ही सीमित रहती हैं, लेकिन जब एक पुरुष उस महिला को शक्ति प्रदान कर उसके साथ चलता है तो स्थिति में बदलाव आता है। इस स्थिति को सही मायने में सशक्तिकरण का नाम दिया जाता है। महिलाएं परिस्थितियों के आगे नतमस्तक होकर अपने सम्मान, स्वाभिमान, शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार तक को त्यागने लग जाती हैं, लेकिन इन परिस्थितियों में भी उसका साथ देने के लिए कोई खड़ा होता है तो एक पिता होता है व एक पुत्र होता है या फिर एक शिक्षक होता है।
समाज में रूढि़वादी सोच का पिटारा सिर पर लिए घूमते बहुत लोग नजर आएंगे, लेकिन उसी समाज में ऐसे भी लोग हैं जो महिलाओं के प्रति सम्मान और बराबरी की सोच रखते हैं। आज हर जगह चाहे वह गांव हो या शहर, प्रत्येक जगह महिला सशक्तिकरण की चर्चा होती है, लेकिन जिस गति से सुधार की परिकल्पना की जाती है, वैसा सुधार अभी तक देखने को नहीं मिलता। महिलाएं सामाजिक परिवेश में विभिन्न भूमिकाएं निभाती हैं। आज हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। लेकिन अक्सर देखा जाता है कि समाज उन्हें नजरअंदाज करता है। लेकिन समाज में साथ देने वाले लोग होंगे तो भारतीय समाज पर सकारात्मक प्रभाव पडऩा तय है, जिससे नारी सशक्तिकरण अवश्य होगा। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में कुल आबादी की 48.1 फीसदी आबादी महिला आबादी है। जब देश की आधी आबादी संकट में हो तो शेष आबादी का यह कर्तव्य बनता है कि वे चुप न बैठकर इनके उत्थान व विकास में अपना योगदान दें। पुरुषों के महिला सशक्तिकरण के प्रति दृष्टिकोण को उदार बनाना अत्यंत आवश्यक है। समाज के अधिकांश पुरुष महिलाओं के विकास हेतु अपना शत-प्रतिशत योगदान दे रहे हैं तथा पहले भी दिया है। इनमें राजा राममोहन राय, दयानंद सरस्वती, महात्मा गांधी इत्यादि महान पुरुष हैं जिन्होंने महिलाओं के उत्थान के लिए कार्य किया है। इसी श्रेणी में स्वामी विवेकानंद व गुरु नानक देव जी का भी नाम शामिल है। इन्होंने महिला समानता जैसे विषयों को समाज के समक्ष उजागर किया था तथा महिला व पुरुष को एक बराबर अधिकार देने की बात कही थी। महिला सशक्तिकरण की बात तो की जाती है, लेकिन इसी के साथ महिलाओं की सुरक्षा की व्यवस्था सामने उजागर हो जाती है कि महिलाएं देश में आज कितनी सुरक्षित हैं।
लंबे समय से समाज के अधिकांश पुरुष महिलाओं के विकास हेतु अपना शत-प्रतिशत योगदान दे रहे हैं। वे महिलाओं के लिए एक ऐसा स्वछंद माहौल प्रदान कर रहे हैं जिसमें महिलाएं अपने पंखों को खोल सकें और ऊंची उड़ान भर सकें। वर्तमान की बात करें तो प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा अनेक ऐसी योजनाओं का शुभारंभ किया गया है जिनसे महिलाओं में खुशी की लहर व एक नई उमंग व सुरक्षा का भाव देखने को मिलता है। चाहे वो तीन तलाक जैसे विषय पर कानून बनाना हो, सुकन्या समृद्धि योजना हो, उज्ज्वला योजना हो, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी महत्वपूर्ण योजनाएं हैं, जिनसे राष्ट्र की महिलाओं के जीवन स्तर में अनेक सकारात्मक बदलाव देखने को मिलते हैं। आधुनिक समय में फिल्मों के जरिए भी महिलाओं के विषयों पर चर्चा हो रही है। पिंक टॉयलेट, बेगम जान, गुलाबी गैंग व बैंडिट क्वीन जैसी फिल्मों ने भारतीय समाज को आईना दिखाया है तथा महिलाओं के हितों व समस्याओं को समाज के समक्ष रखा है। वर्तमान का समय एक ऐसा समय है जिसमें महिलाएं हर क्षेत्र में अपना शत-प्रतिशत योगदान दे रही हैं, चाहे वह सेना का क्षेत्र हो, प्रशासनिक सेवा में सेवाएं देना हो, ग्रामीण विकास हो, शिक्षा क्षेत्र हो या फिर राजनीति का क्षेत्र हो। एक सुई बनाने से लेकर हवाई जहाज निर्माण तक का कार्य महिलाएं कर रही हैं। यहां तक कि हवाई जहाज भी आज की महिलाएं उड़ा रही हैं। देश के सर्वोच्च पद पर महामहिम राष्ट्रपति जी एक महिला हैं। साथ ही देश की आर्थिकी को एक महिला संभाल रही है। इसके बावजूद कहना होगा कि समाज द्वारा तब भी उन्हें कमजोर समझा जाता है।
उन्हें नजरअंदाज किया जाता है। उन्हें उपयोग की वस्तु समझा जाता है, जो कि सरासर गलत है। समाज के प्रत्येक पुरुष को अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए महिलाओं के उत्थान व विकास में अपनी भूमिका सिद्ध करनी चाहिए तथा अपना शत-प्रतिशत योगदान महिलाओं के विकास व उत्थान में देना चाहिए ताकि महिलाएं स्वयं को अकेला महसूस न करें और खुद को समाज का हिस्सा समझें। समाज के प्रत्येक व्यक्ति की ऐसी विचारधारा होगी तो महिलाओं के उत्थान व विकास की बातें करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, बल्कि यह स्वत: ही संभव हो जाएगा। केवल 8 मार्च को महिला दिवस आयोजित करके नारी का सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता है। नारी परिवार का वो दर्पण है जो सैकड़ों पीढिय़ों को शिक्षा प्रदान करती है। लेकिन आज वर्तमान परिवेश में नारी के महत्व को कम समझा जाता है। भले ही नारी सुरक्षा हेतु देश में अनेक कानून हों, लेकिन श्रद्धा कांड, निर्भया कांड, गुडिय़ा कांड, हाथरस की घटना जैसे घिनौने अपराध समाज में महिलाओं के प्रति देखने को मिलते हैं। इस स्थिति को सुधार कर ही महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।