हरी राम यादव
आओ कान्हा गांव हमारे
हर्षित हो होली में इस बार।
जमकर खेलेंगे होली कान्हा,
करेंगे ऊपर पानी की बौछार।
गऊ गोपाल गायब हो गये,
कौन दे कान्हा तुम्हें पुकार।
ढाख पलास के दुर्दिन आये,
उन पर करो जरा उपकार ।।
गांव गली सब सूनी हो रही,
छाया सब पर नशा पगार।
नव पीढ़ी गांव छोड़कर भागी,
जा पहुंची शहर के द्वार ।
बूढ़े बाबा के जीवन से गायब,
रंगों की रंगबिरंगी बहार।
कहां तक मैं तुम्हें बताऊं,
यशोदा नंदन नंद कुमार ।।
रंग गुलाल कुछ साथ न लाना,
बस तुम आ जाना मेरे द्वार।
रंग बेचारे बदरंग हो गये हैं,
उन पर राजनीति की बौछार ।
रंगों का अब काम रहा न,
लेंगे ऊपर लेजर लाइट मार।
क्या बतलाऊं तुझे कन्हैया,
तुम तो हो सबके जानकार।।
राख पात से हाथ साफ कर,
चलेंगे संग सभी दुकान ।
छक कर हम दूध पियेंगे,
खायेंगे गुझिया पकवान।
कान्हा इससे रुष्ट न होना,
बदली समाज की तान।
दूध दही गांव से गायब,
समय बना बड़ा बलवान।।
कान्हा होली के न हुड़दंग बचे,
न बचे भावज और कबीर।
न बेचारे रंग बिरंगे रंग बचे,
न बचे गुलाल और अबीर।
सबको राजनीति लील गयी,
बने रिश्ते सकल बे पीर ।
कान्हा हम तुम गले मिलेंगे,
जैसे मिले भरत और रघुवीर।।