नई दिल्ली।देश की राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर नरेगा मजदूरों का विरोध प्रदर्शन को आज 17 वां दिन हो गया है। धरने पर बैठे
पश्चिम बंगाल के मजदूरों ने (i) NMMS ऐप को तुरंत वापस लेने और (ii) ऐप को वापस लेने के अलावा एक साल से अधिक समय से लंबित अपनी मजदूरी के भुगतान की मांग की। दरअसल, आधार आधारित भुगतान प्रणाली (ABPS) के माध्यम से किए जाने वाले सभी नरेगा भुगतानों को अनिवार्य करते हुए 3 फरवरी, 2023 का आदेश। ऑल इंडिया एग्रीकल्चर रूरल लेबर एसोसिएशन की राधिका और ऐक्टू (दिल्ली) की महासचिव श्वेता भी आज जंतर-मंतर पर अपना विरोध दर्ज
कराने के लिए मौजूद थीं. दिसंबर 2021 से 3.4 करोड़ पंजीकृत नरेगा मज़दूरों को 2744 करोड़ रुपये की मजदूरी का भुगतान नहीं किया गया है। ऐसा इसलिए हुआ है, क्योंकि केंद्र सरकार ने राज्य में कार्यान्वयन अनियमितताओं और भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए पश्चिमबंगाल सरकार को 7500 करोड़ रुपये से अधिक की नरेगा निधि जारी करने से रोक दिया है। वहीं, संसद में ग्रामीण विकासराज्य मंत्री द्वारा बताया गए आंकड़ों के मुताबिक, केंद्र सरकार ने 2018 में नरेगा के तहत नौकरियों के आवंटन और धन का उपयोग करने के मामले में पश्चिम बंगाल के अन्य राज्यों की तुलन में सबसे ऊपर है। 2023 के मध्य में पश्चिम बंगाल में
पंचायती चुनाव होने वाले हैं। इसके चलते केंद्र और राज्य सरकार के बीच राजनीतिक विरोध शुरू होगया है। राज्य सरकार द्वारा बार-बार सुधारात्मक उपाय किए जाने के दावे के बावजूद केंद्र सरकार पंचायत चुनाव से पहले रोकी गई धनराशि को जारी करने में असफल रहा है। इस राजनीतिक घमासान में मजदूरों को उनका बकाया वेतन का भुगतान नहीं किया जा रहा है। इसके कारण नरेगा में काम करने वाले सभी मज़दूर भुखमरी की कगार पर आ गए हैं।इसके अलावा, केवल ऐसा नहीं कि
पश्चिम बंगाल के नरेगा में काम करने वाले मज़दूरों को वेतन का भुगतन नहीं किया जा रहा है बल्कि उन्हें नरेगा अधिनियम के तहत गारंटी के रूप में कोई नया काम भी नहीं दिया जा रहा है। बंगाल के हरिरामपुर जिले से आये एक नरेगा कार्यकर्ता अकाली ने बताया कि उन्हें 100 दिन का काम पूरा करने के बावजूद मजदूरी का एक रुपया नहीं मिला है। इसके कारण उनको अपने परिवार के चार सदस्यों का भरण-पोषण करने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि अपने गांव में केवल वह अकेले नहीं हैं जिनको काम के बदले पैसा नहीं मिला है बल्कि गांव में अन्य 223 मज़दूर ऐसे हैं जिनको बीते एक 13 महीनों से काम के बदले वेतन नहीं दिया गया है। हैरान करने वाली बात यह है कि मोदी सरकर ने वित्त वर्ष 2022-23 के श्रम बजट के तहत पश्चिम बंगाल के नरेगा
कार्यों के लिए कोई धनराशि का आबंटन नहीं किया था। इसी कारण मज़दूरों को नरगा में काम भी नहीं दिया जा रहा है और मज़दूरों को परिवार का लालनपालन करने में काफी कठिनाईओं का सामना कारण पड़ रहा है। ज्ञात हो कि वेतन का भुगतान न करना और काम से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मज़दूरों के जीवन और आजीविका के अधिकार का घोर उल्लंघन है। इसके अलावा, स्वराज अभियान बनाम भारत संघ (2015 का WP 857) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 18 मई 2018 के फैसले के उल्लंघन में काम और मजदूरी से इनकार करना है।बीते एक साल से पश्चिम बंगाल के नरेगा मज़दूरों को उनकी मेहनत का एक भी पैसा नहीं दिया गया है लेकिन केंद्र सरकार पर इस बात का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है।
आज 1 मार्च 2023 को पश्चिम बंगाल से प्रदर्शन का हिस्सा बने मज़दूरों के एक प्रतिनिधिमंडल ने संविधान द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पास शिकायत दर्ज की है। आप सभी धरने के लिए सादर आमंत्रित हैं और हम आपके समर्थन का अनुरोध करते हैं कि आप इस खबर को प्राथमिकता देते हुए प्रकाशित करेंगे और विरोध के लिए एकजुटता का समर्थन करेंगे।