नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को कहा कि भारत की धरती पर कई ऐसे
उदाहरण हैं जहां संतों ने अपनी जीवन यात्रा में बीना संसाधनों के शिखर जैसे संकल्पों को पूरा किया। जब भारत
का एक व्यक्ति, एक साधु, इतना कुछ कर सकता है, तो कोई भी लक्ष्य ऐसा नहीं है जिसे 130 करोड़ देशवासी
सामूहिक संकल्प से पूरा नहीं कर सकते।
प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को एक वीडियो संदेश के माध्यम से स्वामी आत्मस्थानानन्द के जन्म शताब्दी समारोह
में अपने विचार व्यक्त किए। प्रधानमंत्री ने स्वामीजी के साथ बिताए समय को याद करते हुए उनको श्रद्धांजलि
अर्पित की। प्रधानमंत्री ने डिजिटल इंडिया का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में विश्व
का नेतृत्व कर रहा है। उन्होंने भारत के लोगों को 200 करोड़ वैक्सीन खुराक देने की उपलब्धी पर भी प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा कि ये उदाहरण इस बात के प्रतीक हैं कि जब विचार शुद्ध होते हैं तो प्रयास पूरा होने में देर नहीं
लगती और बाधाएं हमें राह दिखाती हैं।
प्रधानमंत्री ने पूज्य संतों की सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आजादी का अमृत महोत्सव के तहत हर जिले में
75 अमृत सरोवर बनाए जा रहे हैं। मोदी ने सभी से लोगों को प्रेरित करने और मानव सेवा के नेक कार्य में शामिल
होने का आग्रह किया। मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि शताब्दी वर्ष नई ऊर्जा और नई प्रेरणा का वर्ष बनता
जा रहा है और कामना की कि आजादी का अमृत महोत्सव देश में कर्तव्य की भावना को जगाने में सफल हो।
प्रधानमंत्री ने आग्रह किया कि हम सभी का सामूहिक योगदान बड़ा बदलाव ला सकता है।
प्रधानमंत्री ने स्वामी आत्मस्थानानन्द के मिशन को जन-जन तक ले जाने के लिए एक फोटो जीवनी और वृत्तचित्र
के विमोचन पर प्रसन्नता व्यक्त की। मोदी ने इस कार्य के लिए रामकृष्ण मिशन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी
स्मरणानंद जी महाराज को हृदय से बधाई दी। प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि स्वामी
आत्मस्थानानन्द ने स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शिष्य पूज्य स्वामी विज्ञानानंद जी से दीक्षा प्राप्त की। उन्होंने
टिप्पणी की कि स्वामी रामकृष्ण परमहंस की जागृत अवस्था और आध्यात्मिक ऊर्जा उनमें स्पष्ट रूप से दिखाई दे
रही थी। प्रधानमंत्री ने देश में त्याग की महान परंपरा का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि वानप्रस्थ आश्रम भी
संन्यास की ओर एक कदम है। उन्होंने कहा, ‘‘संन्यास का अर्थ है स्वयं से ऊपर उठकर समाज के लिए काम करना
और समाज के लिए जीना। समुदाय के लिए स्वयं को विस्तार देना। संन्यासी के लिए जीवों की सेवा ही भगवान
की सेवा है, जीव में शिव को देखना सर्वोपरि है।’’