-सिद्धार्थ शंकर-
इंटरनेशनल एजेंसी फार रिसर्च ऑन कैंसर (आईएआरसी) का अनुमान है कि आने वाले वक्त में कैंसर के मरीजों की
संख्या में और तेजी से बढ़ोतरी होगी। मोटा अनुमान है कि 2025 तक हर पांच में से एक पुरुष और छह महिलाओं
में से एक महिला कैंसर से पीड़ित होगी और पीड़ित महिलाओं में से एक की मौत इस बीमारी से होगी। गौरतलब है
कि भारत में हर दो मिनट में तीन लोगों की मौत कैंसर से होती है। कैंसर संस्थान के अनुमान के मुताबिक आने
वाले वक्त में हर साल बीस लाख से ज्यादा लोगों की जान केवल इस बीमारी से जाएगी और सक्रिय मामलों की
संख्या में भी खासा इजाफा देखने को मिलेगा। कैंसर को लेकर आंकड़ों की जो तस्वीर देखने को मिल रही है, वह
बेहद डरावनी है। नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020 में कैंसर के 13 लाख 90 हजार
मामले सामने आए थे। चिंता की बात यह है कि 2025 तक यह आंकड़ा 15 लाख को पार कर सकता है। सर्वेक्षण
के मुताबिक कुल कैंसर मरीजों में 13.5 फीसद मौतें स्तन कैंसर से, 10.3 फीसद मुंह के कैंसर से, 9.4 फीसद
गर्भाशय के कैंसर से और साढ़े पांच फीसद फेफड़े के कैंसर से होती हैं। इसी तरह कैंसर पीडि़त महिलाओं में 26.3
फीसद स्तन कैंसर, 6.7 फीसद गर्भाशय कैंसर और 4.6 फीसद महिलाएं मुंह के कैंसर से मर जाती हैं। भारत में
कैंसर से पीड़ित पुरुषों में 16.3 फीसद मुंह, आठ फीसद फेफड़े और 6.8 फीसद पेट के कैंसर से मरते हैं। गौरतलब
है पिछले कुछ सालों में पुरुषों में मुंह के कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं। यह तंबाकू के सेवन की वजह से ज्यादा
बढ़ रहे हैं। गौरतलब है पिछले दस सालों में कैंसर से होने वाली मौतों की दर दोगुनी हुई है। जाहिर है, इस बीमारी
से निपटने के लिए सरकारी तंत्र के पास वैसा मजबूत तंत्र नहीं है जिसकी आज दरकार है। अमीर लोग तो विदेशों
में या महंगे निजी अस्पतालों में इलाज करवा लेने में सक्षम होते हैं, लेकिन कैंसर का इलाज आम आदमी के बूते
के बाहर ही है। भारत में बढ़ते कैंसर मरीजों और ज्यादा मौतों की वजह चिकित्सकों की भारी कमी भी है। भारत में
दो हजार कैंसर मरीजों पर महज एक चिकित्सक है, जबकि अमेरिका में अनुपात सौ मरीजों पर एक चिकित्सक का
है यानी भारत से बीस गुना ज्यादा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी है कि कैंसर की रोकथाम के लिए यदि
वक्त रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो यह एक महामारी का रूप धारण कर सकता है। संगठन ने कैंसर के प्रति
विश्व स्तर पर और अधिक जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया है। भारत की आधी आबादी जो मुख्यत: मजदूरी,
नौकरी, खेती या घर पर रह कर काम करती है, उसमें कैंसर के मामले ज्यादा पाए जा रहे हैं। इस बीमारी से
ग्रसित होने के तमाम कारण हैं। इसके प्रमुख कारणों में गुणसूत्रों की असमानता और आंतरिक बदलाव और जीन
उत्परिवर्तन के अलावा हार्मोन में भी असमय बदलाव जैसे कारण हैं। महिलाओं में पैपीलोमा वायरस से ग्रीवा व
गर्भाशय के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। एचआईवी के संक्रमण भी कई बार कैंसर का कारण बन जाता है। इसी
तरह हेलियो बेक्टर जीवाणु के कारण आमाशय कैंसर और पेप्टिक अल्सर का होने का खतरा अधिक रहता है। आज
तनाव, आधुनिक खान पान और आहार-विहार के कारण भी यह बीमारी खासकर शहरों में तेजी के साथ बढ़ रही है।
भारत में गरीब मजदूरों-किसानों में कैंसर के मामले ज्यादा मिलना चिंता पैदा करता है। बिहार, ओडिशा, पश्चिम
बंगाल और झारखंड में लाखों मजदूर कोयला खदानों, सीमेंट कारखानों, पत्थर तोडऩे वाली मशीनों और चमड़े
उद्योग में लगे हैं। इसी प्रकार सीमेंट उद्योग, बीड़ी पत्ते उद्योगों, धूल और धुंए वाले अन्य कारखानें में काम करने
वाले मजदूर, चूड़ी उद्योग, ईंट भट्ठों, सड़कों, रासायनिक कारखानों आदि उद्योगों में लगे मजदूरों की स्थिति भी
ऐसी है कि वे इस खतरनाक बीमारी के खतरे से बाहर नहीं हैं।