महाराष्ट्र के महानाटक का मंच पर पूरी तरह से खुलना अभी शेष है, लेकिन जो दृश्य देखे गए हैं, उनमें मुख्यमंत्री
उद्धव ठाकरे का पराजय-बोध स्पष्ट है। इसका ठोस प्रमाण यह है कि वह और उनका परिवार मुख्यमंत्री आवास
‘वर्षा’ से बोरिया-बिस्तर बांध कर अपने पैतृक घर ‘मातोश्री’ लौट आए हैं। मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम के दो
फलितार्थ स्पष्ट हैं। एक, महाविकास अघाड़ी सरकार का पतन अपरिहार्य है। दूसरे, शिवसेना में अभूतपूर्व दोफाड़
विभाजन होना भी लगभग तय है। इतने बड़े विभाजन की कल्पना किसी ने नहीं की थी। चूंकि अपने पराजित और
भावुक संबोधन में उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे की बात कह चुके हैं। वह इतना व्यग्र और कुंठित लग
रहे थे कि उन्होंने शिवसेना प्रमुख का पद भी छोड़ने का ऐलान किया है। अब यदि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में सभी
बागी विधायक लामबंद रहते हैं, तो सदन के भीतर की लड़ाई तो वे जीत सकते हैं। शिवसेना प्रमुख के पद पर भी
पहली बार गैर-ठाकरे चेहरा आसीन हो सकता है।
यह इसलिए संभव लगता है, क्योंकि उद्धव ठाकरे सरकार के अल्पमत में आने और पार्टी के भीतर विधायकों की
बग़ावत के बावजूद शिवसेना का आक्रामक काडर सड़कों पर उग्र नहीं है। मुट्ठी भर चेहरों ने ही प्रदर्शन किया है।
एक बड़ा कारण यह भी है कि विधायकों के आह्वान पर ही शिवसेना कार्यकर्ता सड़कों पर बिखरते रहे हैं। अब वे
विधायक ही नाराज़ और विद्रोही हैं। कार्यकर्ता अपने नेताओं के खिलाफ सड़कों पर आक्रामक कैसे हो सकते हैं? शिंदे
के इलाके और उनके घर के आसपास कार्यकर्ताओं ने उनकी प्रशंसा में पोस्टर तक चिपका दिए हैं और उन्हें ‘बाघ
राजा’ करार दिया है। यह शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की ही संगठनात्मक हार है। शिवसेना का काडर मान रहा है
कि असली और बाल ठाकरे की विरासत वाले शिवसैनिकों ने विद्रोह किया है। वे ही असली शिवसेना हैं। यदि शिंदे
सेना ने यह मोर्चा भी जीत लिया, तो बाल ठाकरे की विरासत जरूर कायम रहेगी, लेकिन उद्धव का राजनीतिक
भविष्य सवालिया होगा। चूंकि बागियों के नेता एकनाथ शिंदे मौजूदा मुख्यमंत्री ठाकरे से आग्रह कर चुके हैं कि वह
अविलंब महाविकास अघाड़ी से बाहर आ जाएं, क्योंकि सरकार के अढाई सालों के दौरान शिवसेना का बहुत नुकसान
हुआ है। कई विधायक एनसीपी और कांग्रेस उम्मीदवार को हरा कर, चुनाव जीत कर, आए हैं। जनता के बीच ऐसे
विधायकों की जवाबदेही भी सवालिया हो रही है। हिंदुत्व की विचारधारा सर्वोपरि है, जिसे हाशिए पर रख दिया गया
है। महाविकास अघाड़ी से बाहर आने के आग्रह का अर्थ है कि ठाकरे मुख्यमंत्री पद से तुरंत इस्तीफा दें। क्या
उद्धव ठाकरे अपने अंतिम संबोधन की गरिमा रखेंगे? बाल ठाकरे की सही विरासत के लिए कौन लड़ाई लड़ रहा है,
अब यह सवाल लंबा नहीं खिंचना चाहिए।
एकनाथ शिंदे के पक्ष में जितने विधायक हैं, कमोबेश वे दलबदल कानून की परिधि में नहीं आएंगे। टूट अभी जारी
है। यह संपादकीय लिखने तक शिंदे को 42 विधायकों का समर्थन था। कुल मिलाकर शिवसेना की पूंछ, 15-16
विधायक ही, उद्धव ठाकरे के साथ बचे हैं। उनके प्रवक्ता संजय राउत कुछ भी बोलते रहें, वह बेमानी है, क्योंकि
हम पहले भी कुछ मौकों पर यह अनुभव कर चुके हैं। बहरहाल जो भी किया जाए, लेकिन शिवसेना का बुनियादी
ढांचा कमज़ोर नहीं होना चाहिए, क्योंकि बाल ठाकरे ने अनथक संघर्षों और विरोधाभासों से लड़कर शिवसेना को
स्थापित किया था। अब बहुमत का अंतिम निर्णय विधानसभा में ही होगा। राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी
मुख्यमंत्री को सदन में बहुमत साबित करने के निर्देश दे सकते हैं। जो भी निर्णायक कार्यवाही होगी, वह सदन के
भीतर ही होगी, क्योंकि सर्वोच्च अदालत ने ऐसे दो महत्त्वपूर्ण फैसले सुना रखे हैं कि बहुमत की सत्यता सदन में
ही तय होगी। जाहिर है कि यह लड़ाई लंबी चल सकती है। फिलहाल मुख्यमंत्री के इस्तीफे की प्रतीक्षा है। उद्धव
ठाकरे ने कहा है कि अगर शिंदे कहेंगे तो वह मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे देंगे। साथ ही उन्होंने यह भी कहा है
कि अगर कोई शिवसैनिक मुख्यमंत्री बनना चाहता है तो वह पद से हटने के लिए तैयार हैं। अब देखना यह है कि
शिंदे कांग्रेस-एनसीपी के साथ जाकर सरकार बनाना पसंद करेंगे या भाजपा के साथ ही सरकार बनाएंगे। वैसे पहले
उन्होंने यह कहा था कि वह सत्ता के लिए विचारधारा से छेड़छाड़ नहीं करेंगे तथा भाजपा के साथ शिवसेना का
गठबंधन प्राकृतिक है। संभावना यही है कि वह भाजपा के साथ ही सरकार बनाना चाहेंगे।