-नरेंद्र कुमार शर्मा-
दुनिया में हर वर्ष लगभग 93 करोड़ टन भोजन बर्बाद हो जाता है जो कि बहुत बड़ी बर्बादी है। इस मामले में भारत
में हर साल लगभग 6.8 करोड़ टन भोजन बर्बाद किया जाता है। यदि इसे प्रति व्यक्ति के हिसाब से देखें तो हर
वर्ष हर व्यक्ति 40 किलोग्राम भोजन बर्बाद कर देता है। अन्य देशों की तुलना में भारत की जनसंख्या के हिसाब से
यह स्थिति बेहतर है, लेकिन फिर भी हमें इस बर्बादी को रोकना होगा। पूरी तरह से नहीं तो इसे कम तो कर ही
सकते हैं। सबसे ज्यादा भोजन घरों में बर्बाद किया जाता है। उसके पश्चात रेस्त्रां, होटल, विवाह-शादियों और दूसरे
कार्यक्रमों में भोजन की बहुत बर्बादी होती है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स के आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 19
करोड़ लोग भूख से सोने को मजबूर हैं और यहां प्रतिदिन लगभग 3000 बच्चे भूख से मर जाते हैं। भारत एक
तेज़ी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था है और महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है जो कि एक अच्छी बात है, लेकिन एक
ओर जहां हमारी आर्थिकी सुदृढ़ हो रही है, वहीं दूसरी ओर अमीरी और गरीबी में गहरी खाई उत्पन्न हो रही है।
यदि हम भोजन की बर्बादी को रोकें तो निश्चित तौर पर भूख पर लगाम लगाई जा सकती है।
इसके लिए हमें भोजन इतना ही बनाना होगा जितनी आवश्यकता है। पैसे वाले लोग बिना सोचे-समझे भोजन बना
देते हैं और जब यह बच जाता है तो उसे कूड़ेदान में फेंक दिया करते हैं। यदि ऐसे लोग नपा तुला भोजन बनाएंगे
तो अनाज और सब्जियों की जो बचत होगी, उसे गरीबों में बांटा जा सकता है। आजकल जब भी किसी रेस्तरां,
होटल या विवाह-शादियों में जो भोजन बचता है, उसे कई समाजसेवी संस्थाएं डिब्बों में पैक करके भूखे लोगों को
उनके घर तक पहुंचाकर उनकी भूख मिटाकर पुण्य का काम करती हैं। केवल समाजसेवी संस्थाएं ही इस काम को
अकेले क्यों करें। इस पुण्य कार्य को करने के लिए हम सभी को आगे आना होगा। यदि हम सब मिलकर बचे हुए
भोजन को गरीब और भूखे लोगों को बांट दें तो निश्चित तौर पर इस भुखमरी को बहुत अधिक हद तक कम कर
सकते हैं। हमारे देश में न तो अनाज की कमी है और न ही सब्जियों की। खराब सप्लाई चेन के कारण हमारे देश
में 40 फीसदी फल और सब्जियां तथा 20 फीसदी अनाज बर्बाद हो जाता है। गोदामों में रखे अनाज में से हजारों
टन खाद्यान्न चूहे खा जाते हैं। इसे भी हम बड़ी आसानी से बचा सकते हैं। इसके लिए हमें अपने देश में अनाज
का उचित भंडारण और वितरण सुनिश्चित करना होगा।
इसके लिए भारत सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए लोगों को सस्ता राशन मुहैया करवा रही है। लेकिन
देखना यह होगा कि यह सस्ता राशन जरूरतमंदों तक पहुंच रहा है या नहीं। लोगों को सस्ता राशन देने के साथ-
साथ यह भी सुनिश्चित करना होगा कि बांटे जाने वाला राशन गुणवत्तापूर्ण है या नहीं। यदि राशन गुणवत्तापूर्ण नहीं
होगा तो हम, विशेषकर हमारे बच्चे कुपोषण का शिकार हो जाएंगे। वैसे भी हमारे देश भारत में कुपोषण एक बहुत
बड़ी समस्या है। भुखमरी और कुपोषण एक-दूसरे के कारक हैं। यदि भुखमरी नहीं होगी तो कुपोषण भी नहीं होगा।
भुखमरी और कुपोषण के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार अमीरी और गरीबी के बीच की खाई है। अमीर लोग अपने
ऐशो आराम के लिए पानी की तरह पैसा बहाते हैं और जरूरत से ज्यादा चीजों को फैंक दिया करते हैं। यदि इन्हीं
फालतू की वस्तुओं को गरीबों में बांट दिया जाए तो गरीबों का भला हो जाए। हमारे देश में गिनती के ही कुछ लोग
हैं जो गरीबों का दर्द समझते हैं और उनकी मदद करते हैं। विकसित देशों में अमीर और गरीब के बीच में बहुत
कम खाई है। भारत एक बहुत बड़ा लोकतंत्र है।
लोकतंत्र में हमारे संविधान द्वारा सबको समानता का अधिकार दिया गया है, तो फिर अमीरी और गरीबी की इतनी
असमानता क्यों? यह सही है किसी भी देश में सभी लोग पूरी तरह से अमीर नहीं हो सकते, लेकिन कम से कम
अच्छा भोजन, कपड़ा और मकान तो उन्हें मुहैया कराया ही जा सकता है। यह सत्य है कि पिछले कुछ वर्षों की
तुलना में हमारे देश में गरीबी की दर कम हुई है और हर वर्ष लाखों लोग गरीबी रेखा से बाहर निकल रहे हैं और
वह दिन दूर नहीं जब हमारे देश में विकसित देशों की तरह गरीबी खत्म हो जाएगी, लेकिन यह जल्दी हो उतना
देश के लिए अच्छा है। इससे पूरे विश्व में हमारी साख और बढ़ेगी। कोरोना काल में पूरे विश्व में बेरोजगारी बढ़ी,
हमारा देश भारत भी इससे अछूता नहीं रहा और लोगों को भोजन की समस्या का सामना करना पड़ा। हमारे देश
की सरकार ने करोड़ों लोगों को मुफ्त राशन मुहैया कराया। आज भी करोड़ो लोगों को मुफ्त राशन दिया जा रहा है।
सरकार केवल चुने हुए प्रतिनिधियों की ही नहीं होती बल्कि सरकार में देश के हर व्यक्ति की भागीदारी होती है।
अतः हम सब का कर्त्तव्य है कि हम भोजन की बर्बादी को रोकें और गरीबों की मदद करें।
सरकार को चाहिए कि जो लोग अपने घरों में, रेस्तरां, होटल और विवाह-शादियों में बचे हुए भोजन को फैंक दिया
करते हैं, उन पर जुर्माना लगाया जाए। तभी भोजन की बर्बादी पर लगाम लगाई जा सकती है। पंडित जवाहरलाल
लाल नेहरू की मृत्यु के बाद जब लाल बहादुर शास्त्री जी हमारे देश के प्रधानमंत्री बने तो देश में अनाज की कमी
थी। अमेरिका ने कुछ शर्तों के साथ भारत को अनाज देने की पेशकश की। यह बात लाल बहादुर शास्त्री जी को
नागवार गुजरी क्योंकि इससे देश के स्वाभिमान को ठेस पहुंचती। इसके लिए उन्होने अपने पूरे परिवार सहित एक
दिन का उपवास रखा। इसके पश्चात उन्होंने देशवासियों से आह्वान किया कि सभी देशवासी सप्ताह में एक दिन
उपवास रखें, ताकि हम अपने देश में उपलब्ध अनाज से ही गुजारा कर सकें। उनकी यह अपील रंग लाई और सभी
देशवासी इसके लिए तैयार हो गए। उन्होंने सप्ताह में एक दिन उपवास करना शुरू कर दिया। बहुत से अमीर लोगों,
जो अपने विवाह-शादियों में अरबों रुपए पानी की तरह बहाते हैं, उन्हें भी इतना पैसा खर्च नहीं करना चाहिए। यह
केवल एक दिखावा है और कुछ नहीं। इस पैसे को बचाकर मुख्यमंत्री राहत कोष या प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा
करवा देना चाहिए। इस धन से गरीबों की भूख मिट सकती है और यह देशहित का कार्य भी होगा। गरीब और
जरूरतमंद की सहायता करना ही हमारा कर्त्तव्य बनता है। हमारे देश भारत में अनेकता में एकता है। इसको आज
तक कोई नहीं तोड़ पाया और आगे भी नहीं तोड़ पाएगा। इसी बात को ध्यान में रखकर हमें एक-दूसरे की मदद
करनी चाहिए। ‘सर्वे भवन्तु सुखिन…’ ही हमारे देश भारत का मूल मंत्र है।