नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में बुलडोजर की कार्रवाई रोकने के लिए जमीयत-उलमा-
ए-हिंद और अन्य की याचिकाओं पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने कहा कि अवैध निर्माण
हटाने में पूरी प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए। कोर्ट ने यूपी सरकार को तीन दिनों के अंदर जवाब दाखिल
करने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई 21 जून को होगी।
सुनवाई के दौरान जमीयत-उलमा-ए-हिंद की ओर से वकील सीयू सिंह ने कहा कि दिल्ली के जहांगीरपुरी में
बुलडोजर की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। इस मामले में यूपी सरकार को नोटिस दिया गया था
लेकिन यूपी में अंतरिम आदेश के अभाव में तोड़फोड़ की गई। सीयू सिंह ने कहा कि ये मामला दुर्भावना का है।
हिंसा फैलाने के आरोप में दर्ज एफआईआर में उल्लेखित नामों की संपत्तियों को चुन-चुनकर ध्वस्त किया गया है।
उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम की धारा 27 में देश भर में शहरी नियोजन अधिनियमों के
अनुरूप नोटिस देने का प्रावधान है। अवैध निर्माण को हटाने के लिए कम से कम 15 दिन का समय देना होगा,
40 दिन तक अवैध निर्माण न हटने पर ही उसे ध्वस्त किया जा सकता है। प्रावधान के मुताबिक़ पीड़ित पक्ष
नगरपालिका अध्यक्ष के समक्ष अपील कर सकते हैं, इसके अलावा और भी संवैधानिक उपाय हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार ने इन आरोपों को खारिज किया कि प्रयागराज और कानपुर में अवैध निर्माण गिराने के पहले
नोटिस नहीं दिया गया। राज्य सरकार के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि सभी प्रक्रिया का पालन किया गया है।
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हमने जहांगीरपुरी में पहले के आदेश के
बाद हलफनामा दायर किया है। किसी भी प्रभावित पक्ष ने याचिका दायर नहीं की है। जमीयत-उलमा-ए-हिंद ने
याचिका दायर की है जो प्रभावित पक्ष नहीं है। उन्होंने कहा कि साल्वे बताएंगे कि किस ढांचे को नोटिस दिया गया
और कानून का किस तरह पालन किया गया है।
कोर्ट ने कहा कि हमें ये पता है कि जिनका घर गिरा हो, वे कोर्ट आ सकने की स्थिति में नहीं होंगे। तब साल्वे ने
कहा कि हम हलफनामा दे सकते हैं कि प्रयागराज में नोटिस जारी किए गए। दंगे से पहले मई में ही नोटिस दिए
गए थे। 25 मई को डिमोलेशन का आदेश पारित किया गया था। इनकी मूल्यवान संपत्ति है इसलिए ये नहीं कहा
जा सकता है कि वे कोर्ट नहीं आ सकते हैं। साल्वे ने हलफनामा दाखिल करने के लिए तीन दिन का समय देने की
मांग की। तब जस्टिस बोपन्ना ने कहा कि इस दौरान सुरक्षा कैसे सुनिश्चित होगी। सुरक्षा हमारा कर्तव्य है। अगर
कोर्ट सुरक्षा नहीं देगी तो ये ठीक नहीं है। बिना नोटिस के डिमोलिशन कार्रवाई नहीं होगी।
जमीयत ने याचिका दायर करके यूपी में आगे कानून का पालन किए बगैर कोई भी तोड़फोड़ नहीं करने का दिशा-
निर्देश जारी करने की मांग की है। याचिका में मांग की गई है कि बिना किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए घरों
को गिरानेवाले अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। जमीयत-उलेमा-ए-हिंद की ये याचिका दिल्ली के जहांगीरपुरी
में दुकानों और घरों को गिराने के खिलाफ दायर याचिका के संदर्भ में दायर की गई है। सुप्रीम कोर्ट जहांगीरपुरी में
अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई पर रोक लगा चुकी है।
इसके अलावा वकील कबीर दीक्षित और सरीम नावेद की ओर से दाखिल एक नई याचिका में कहा गया है कि
कानपुर में आरोपितों के आवासीय और व्यावसायिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के लिए कानून से अलग कोई भी
कार्रवाई करने पर रोक लगाने का दिशा-निर्देश जारी किया जाए। याचिका में कहा गया है कि आरोपितों के घरों को
नोटिस दिए बिना और उनका पक्ष सुने बिना नहीं गिराया जा सकता है।