आज जबकि सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती पर उन्हें पूरा देश याद कर रहा है, तो उनसे जुड़ा ये किस्सा जानना लाजिमी है।
स्पष्ट, सख्त व परिणामवादी निर्णयों के कारण पहचाने जाने वाले पटेल ने देश का गृह मंत्री रहते हुए एक ऐसा निर्णय लिया था, जिसकी तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तक को भनक नहीं लगी थी। यदि पटेल तब नेहरू से सहमति लेने में वक्त बर्बाद कर देते तो देश का इतिहास दूसरा होता।
किस्सा हैदराबाद के भारत में विलय का है। जब अंग्रेज गए, तो उन्होंने 500 से ज्यादा रियासतों के सामने तीन विकल्प रख दिए, पहला- भारत में विलय, दूसरा- पाकिस्तान में विलय और तीसरा- स्वतंत्र रहें। इस तरह अंग्रेजों ने पूरे भारत को खंड-खंड तोड़ने की पूरी साजिश रची थी। मगर सरदार पटेल ने साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाकर एक-एक करके रियासतों को भारत में मिलाना शुरू किया।
उसी दौर में हैदराबाद का निजाम पाकिस्तान में शामिल होने की जिद कर बैठा। भौगोलिक रूप से यह संभव नहीं था, क्योंकि हैदराबाद पाकिस्तान से कहीं दूर और सघन दक्षिण भारत का हिस्सा था। मगर पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की शह पाकर और नेहरू की लचर नीतियों का लाभ उठाते हुए निजाम जिद पर अड़ गया।
नेहरू तब यही कहते रहे कि – ‘निजाम का अड़ियल रुख दुनिया देखेगी।’ मगर, सरदार पटेल ने देर नहीं की। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ, पाकिस्तान, अमेरिका या अन्य किसी की आपत्तियों की परवाह किए बिना ‘ऑपरेशन पोलो’ लॉन्च कर दिया।
आदेश मिलते ही भारतीय सेना की एक टुकड़ी हैदराबाद में घुसी और महज पांच दिन में निजाम सहित पूरे हैदराबाद को घुटनों पर ला दिया। यह पटेल की ही सूझबूझ थी कि आज हैदराबाद भारत में है, अन्यथा भारत के बीचों बीच बची यह रियासत पाकिस्तान में होती।