-नीलम सूद-
प्रदेश का यह चुनावी वर्ष है। इसलिए तपते मौसम के साथ-साथ राजनीतिक पारे का चढऩा भी लाजिमी है। रैलियों
और रोड शो के माध्यम से शक्ति प्रदर्शन का दौर आरंभ हो चुका है, परंतु फिल्मी अंदाज़ में तीसरे राजनीतिक
विकल्प की धमाकेदार एंट्री से राज करने वाली या राज करने की उम्मीद लगाए बैठी दोनों पार्टियों भाजपा और
कांग्रेस का सुख-चैन सब हवा हो चुका है। बारी-बारी राज करने वाली दशकों पुरानी पार्टियां नई नवेली पार्टी से इस
कदर परेशान हैं कि इन पार्टियों के छोटे-बड़े नेताओं सहित आईटी सैल ने अपनी तोप का मुंह सीधा केजरीवाल की
पार्टी की तरफ घुमा दिया है, बिना किसी आत्ममंथन के, कि आखिर आम आदमी पार्टी हिमाचल में अस्तित्व में
आई तो कैसे, और सरकार और विपक्ष की किन कमजोरियों की वजह से आज तीसरा फ्रंट इतना हावी हो गया?
केजरीवाल को न तो हिमाचल का भूगोल पता है, न ही वो यहां की स्थानीय समस्याओं से अवगत हैं। आम आदमी
पार्टी के पास न संगठन है, न ही चिरपरिचित कोई नेता। दूसरी तरफ जनता भी नहीं जानती कि केजरीवाल की
पार्टी की विचारधारा क्या है। फिर भी केजरीवाल के साथ भीड़ दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है।
कारण साफ है कि जनता भ्रष्टाचार से त्रस्त है, महंगाई से उसका जीना दुश्वार हो चुका है, युवा बेरोजगारी के जाल
में बुरी तरह फंस चुका है। बस यही मुद्दे हैं जिनको भुनाने में केजरीवाल कामयाब हो रहे हैं। मिशन रिपीट का
सपना देख रही भाजपा सरकार को हाल ही में हुए उपचुनावों से सबक लेने की जरूरत थी, परंतु मोदी के नाम से
अति आत्मविश्वास से भरे नेताओं ने एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों पर करारी हार पर मंथन तक करना
जरूरी नहीं समझा, तो दूसरी तरफ कांग्रेस को मिली इस अप्रत्याशित जीत से मानो कांग्रेसी नेताओं की तो लाटरी
ही निकल आई हो और बिना किसी मेहनत के अलादीन का चिराग हाथ लग गया हो, जिसकी बदौलत उसने
आगामी चुनावों में जीत के हरे-भरे सपने देखने भी शुरू कर दिए और मुख्यमंत्री के पद की दौड़ में लगभग सभी
नेताओं ने अपना-अपना हक दर्शाना और भाग्य आजमाना भी शुरू कर दिया। वीरभद्र सिंह के गुजर जाने से पहले
ही कमजोर हो चुकी कांग्रेस के नेताओं ने महत्त्वाकांक्षाओं की नाव पर सवार होकर न केवल सही मायने में विपक्ष
की भूमिका निभाई, बल्कि नेताओं की खुदगर्जी ने संगठन की नींव भी कमजोर कर दी। बस इसी बात का फायदा
केजरीवाल को मिला।
अत: जिन लोगों ने सरकार से क्षुब्ध होकर तीसरे विकल्प के अभाव में मजबूरी में ही सही, कांग्रेस को वोट डाला
था, उन्हें अब तीसरा विकल्प राज्य में मिल गया और वो उसी विकल्प की ओर मुखातिब हो गए। यह बात
केजरीवाल की रैलियों में उमड़ी भीड़ से तय हो रही है। प्रदेश में कभी भी चुनावों में भ्रष्टाचार मुद्दा नहीं रहा। जो
भी पार्टी आई, उसी पार्टी के लोगों, रिश्तेदारों और नजदीकियों ने राज्य को दोनों हाथों से केवल लूटने की ही
कोशिश की। अब केजरीवाल ने भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया है तो आम जनमानस को केजरीवाल की पार्टी में उम्मीद
की किरण नजऱ आने लगी है। भ्रष्टाचार ही महंगाई व बेरोजगारी की जननी है। प्रदेश का खजाना खाली है, कज़ऱ्
पर कज़ऱ् लेकर सरकारें चलती रही हैं और चल रही हैं। प्रदेश की आय को बढ़ाने में सरकारें विफल रही हैं।
प्रदेश की आर्थिकी में टूरिज्म का मात्र सात प्रतिशत योगदान है, जो पर्यटकों के लिए सही कानून व नियम न होने
के कारण सरकार एवं स्थानीय निवासियों के लिए आय की अपेक्षा सिरदर्दी अधिक है। प्रदेश में बनने वाला सीमेंट
प्रदेश वासियों को अन्य राज्यों की अपेक्षा महंगा मिलना तथा उद्यमियों द्वारा खनिजों के दोहन की एवज में
सरकार को रायल्टी न देना एक बहुत बड़ी पहेली है जिस पर कभी भी किसी भी सरकार ने मुंह नहीं खोला। पर्यटन
एव उद्योगों से पर्यावरण को हो रहे नुकसान पर सरकारों का उदासीन रवैया भी संदेह पैदा करता है। प्रदेश में
बिगड़ती कानून व्यवस्था, अवैध शराब कांड, अवैध पटाखा फैक्टरी कांड पर जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई न
होना या सरकार द्वारा उनकी जिम्मेदारी तय न करना तथा संबंधित विभागों के मंत्रियों द्वारा प्रदेश में पहली बार
घटित त्रासदियों की जिम्मेदारी न लेना ही सरकार की नाकामियों में शुमार है जिसका फायदा तीसरे मोर्चे को
मिलना लाजिमी है।
अगर उड़ीसा में नवीन पटनायक की सरकार बार-बार सत्ता पर काबिज हो सकती है तो किसी भी सरकार के लिए
साफ-सुथरा शासन और प्रशासन देकर दोबारा सत्ता हासिल करना मुश्किल नहीं है, परंतु जहां मुख्य सचिव पर
भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हों और मुख्यमंत्री गोलमटोल जवाब दें तो सरकार कैसे रिपीट होगी? जिस प्रदेश के
मुख्यमंत्री मामूली खांसी-जुकाम के लिए प्रदेश से बाहर एम्स में रैफर कर दिए जाएं, उस प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाएं
कैसी होंगी? जिस शांतप्रिय प्रदेश में नशाखोरी से अभिभावक परेशान हों, जहां नशीले पदार्थों की तस्करी चरम पर
हो, जहां अवैध खनन जोरों पर हो, जहां के पहाड़, नदियां और जंगल चीख-चीखकर कह रहे हों कि विकास के नाम
पर भ्रष्टाचार हो रहा है, परंतु शासन-प्रशासन खामोश हो तो सरकार कैसे रिपीट होगी? सरकार द्वारा योजनाएं
बनाने, उन्हें कार्यान्वित करने के लिए ईमानदार, योग्य अधिकारियों की टीम की जरूरत होती है जो केंद्र के सम्मुख
अपनी योजनाओं को सही तरीके से पेश कर धन का जुगाड़ कर सके, परंतु यदि सरकार योग्य और ईमानदार
अधिकारियों की अपेक्षा निकम्मे, चापलूस और भ्रष्ट अधिकारियों को तरजीह दे तो खामियाजा जनता को भुगतना
पड़ता है और उसका मौजूदा सरकार से मोहभंग होकर तीसरे विकल्प की ओर झुकाव लाजिमी है। इसका फायदा
अरविंद केजरीवाल को भरपूर मिल रहा है। अभी भी समय है सरकार को आत्ममंथन कर इन तमाम मुद्दों पर
विचार करना चाहिए। किसी भी कुतर्क द्वारा सामने वाली राजनीतिक पार्टी पर उंगली उठा कर स्वयं को हंसी का
पात्र बनाने से यही बेहतर होगा।