संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की रपट के मुताबिक, यूक्रेन के 10 में से 9 लोग भुखमरी के शिकार हो चुके हैं।
करीब 99 फीसदी लोग अत्यंत गरीबी की कगार पर पहुंच चुके हैं। वहां की गरीबी-दर इतनी बढ़ चुकी है कि यूक्रेन
को दो दशक पीछे धकेल दिया गया है। वहां के 50 फीसदी व्यवसाय पूरी तरह बंद हो चुके हैं। यूक्रेन में बीते 18
सालों का विकास ध्वस्त हो चुका है। युद्ध की विभीषिका के कारण 30 लाख से ज्यादा यूक्रेनी पलायन कर, अंततः,
शरणार्थी बन चुके हैं। हर सेकंड एक बच्चा शरणार्थी बनने को विवश है। कितनी भयावह स्थिति है? जो लोग
विस्थापित होकर शरणार्थी बने हैं, उनमें 14 लाख से अधिक बच्चे भी शामिल हैं। करीब 100 बच्चों की मौत हो
चुकी है। कई बेहद त्रासद दृश्य टीवी चैनलों पर आंखों के सामने से गुजरे हैं। कोई इनसान, नेता के तौर पर, इतना
‘राक्षस’ भी हो सकता है, यह सवाल हमारे मन को मथता रहा है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद शरणार्थियों की यह
संख्या सर्वाधिक है। अभी तो सिलसिला जारी है, क्योंकि युद्ध अभी लड़ा जा रहा है। हालांकि रूस के विदेश मंत्री
सर्गेई लावरोव ने समझौते और युद्धविराम के संकेत दिए हैं। ऐसा उनका बयान भी नहीं है। यह अमरीका के
‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ की ख़बर का दावा है। यूक्रेन के तटस्थ रुख की गंभीरता और सच्चाई का आकलन किया जा रहा
है। नाटो के साथ मिलने की संभावनाओं की भी पड़ताल की जा रही है। इस दौरान अमरीकी कांग्रेस (संसद) ने रूस
के राष्ट्रपति पुतिन के खिलाफ युद्ध-अपराध की सम्यक जांच को मंजूरी दे दी है। आर्थिक पाबंदियों को और भी
सख्त और व्यापक किया जा रहा है। रूस पर करीब 320 अरब डॉलर का कर्ज़ है। उसके ब्याज के तौर पर 11.70
करोड़ डॉलर का भुगतान रूस को करना है। उसके सभी रास्ते अवरुद्ध हैं।
डॉलर में लेन-देन करने पर भी प्रतिबंध है। यदि रूस यह ब्याज नहीं दे पाया, तो उसे ‘डिफॉल्टर’ घोषित किया जा
सकता है। कुल मिलाकर रूस-यूक्रेन युद्ध के 21 दिन की भीषणता और विध्वंसों की परिणति यही है। अमरीका का
दावा है कि रूस अभी तक 1000 से ज्यादा मिसाइलें दाग कर यूक्रेन के खूबसूरत शहरों, रिहायशी इमारतों,
स्मारकों, स्कूल, अस्पतालों, तेल डिपो, खाद्यान्न भंडारों आदि को तबाह कर चुका है। अमरीकी कांग्रेस को वर्चुअल
माध्यम से संबोधित करते हुए यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भी ऐसे ही खुलासे किए और विभीषिका का वीडियो
भी सांसदों को दिखाया। उन्होंने 1941 के दूसरे विश्व युद्ध के दौरान और 9/11 को न्यूयॉर्क के विश्व व्यापार सेंटर
पर हमलों की याद अमरीका को दिलाई और यूक्रेन के लिए मदद की गुहार की। युद्धविराम के संकेतों के बावजूद
रूसी सेना के हमले मद्धिम भी नहीं पड़े हैं। विध्वंस का दौर अनवरत जारी है। यह कौन-सी संस्कृति, सभ्यता और
आधुनिक युग की साझा सोच है कि एक महाशक्ति एक छोटे देश को कुचल-मसल कर ‘मिट्टी’ बनाने पर आमादा
है। हम एक बार फिर दोहराना चाहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र सरीखे अंतरराष्ट्रीय मंचों का औचित्य क्या है कि एक
जबरन विनाशकारी युद्ध को रोकना संभव न हो? वैसे अंतरराष्ट्रीय अदालत ने फैसला दिया है कि रूस तुरंत युद्ध
को रोके। सवाल है कि यदि रूस इस फैसले पर भी अमल नहीं करता है और ऐसी अदालत का भी उल्लंघन करता
है, तो क्या होगा? हमारा मानना है कि कुछ भी नहीं होगा, क्योंकि रूस अंतरराष्ट्रीय अदालत को मान्यता ही नहीं
देता। यह पेंच भी क्यों है? अदालत भी स्वैच्छिक क्यों है? ढेरों सवाल हैं, जो दुनिया के सामने अब आ रहे हैं।