डॉक्टर बनने का सपना

asiakhabar.com | March 9, 2022 | 4:05 pm IST
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-सिद्वार्थ शंकर-
देश में मेडिकल की पढ़ाई करना बहुत महंगा है। स्थिति यह है कि देश के 80 फीसदी लोग प्राइवेट मेडिकल
कॉलेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकते हैं। देश में मेडिकल की पढ़ाई पर बेतहाशा खर्च को लेकर
अक्सर चर्चा होती है। इधर रूस के यूक्रेन पर हमले के बीच एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाले छात्रों
के जरिये मेडिकल की पढ़ाई के खर्च पर फिर बहस तेज हो गई है। देश में प्राइवेट कॉलेज से मेडिकल पढ़ाई की
फीस इतनी ज्यादा है कि यह खर्च एक करोड़ तक पहुंच जाता है। यूक्रेन संकट और महंगी पढ़ाई को देखते हुए
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की फीस सरकारी मेडिकल कॉलेजों जितनी करने की
सरकार की योजना के बारे में बताया। प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार ने तय किया है कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों
में आधी सीटों पर सरकारी मेडिकल कॉलेजों के बराबर ही फीस लगेगी। नेशनल मेडिकल कमीशन ने गाइडलाइन
तैयार कर ली है। बताया जा रहा है कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में 50 फीसदी सीटों पर सरकारी मेडिकल कॉलेजों
जितनी फीस को लेकर एनएमसी की नई गाइडलाइन अगले शैक्षणिक सत्र से लागू होगी। यह फैसला निजी
विश्वविद्यालयों के अलावा डीम्ड यूनिवर्सिटीज पर भी लागू होगा। मेडिकल के नए फीस स्ट्रक्चर का लाभ पहले उन
छात्रों को दिया जाएगा जिनका एडमिशन सरकारी कोटे की सीट पर होगा। हालांकि यह किसी भी संस्थान की कुल
सीटों में से अधिकतम 50 फीसदी सीटों की संख्या तक सीमित रहेगा, लेकिन अगर किसी संस्थान में सरकारी कोटे
की सीटें वहां की कुल सीटों की 50 फीसदी की सीमा से कम है, तो उन छात्रों को भी फायदा मिलेगा जिनका
एडमिशन सरकारी कोटे से बाहर लेकिन संस्थान की 50 फीसदी सीटों में हुआ है। इसका निर्धारण मेरिट के आधार
पर होगा। यह फैसला वर्तमान संदर्भ में बेहतरीन है। सरकारी कॉलेज में सीमित सीटों के कारण करीब देश के 80
फीसदी से अधिक परिवार ऐसे हैं जो अपने बच्चों की मेडिकल पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकते हैं। ऐसे में देश से
बच्चे मेडिकल पढ़ाई के लिए रूस, यूक्रेन, बांग्लादेश, नेपाल, स्पेन, जर्मनी जैसे देशों में जाते हैं। इसकी वजह है कि
इन देशों में मेडिकल पढ़ाई का खर्च तुलनात्मक रूप से काफी कम है। यूक्रेन जैसे देश में मेडिकल कोर्स में
एडमिशन लेना अधिक आसान है। इसके अलावा यदि देश में प्राइवेट कॉलेज से मेडिकल पढ़ाई का खर्च 60 लाख से
80 लाख रुपए के बीच है। वहीं, यूक्रेन और अन्य देश महज 20 से 35 लाख रुपए तक में ही मेडिकल की पढ़ाई
कर सकते हैं। देश में एमबीबीएस की कुल 90800 सीटों में सिर्फ आधी सीटों का लोग खर्च उठा सकते हैं। इसकी
वजह है कि ये सीटों सरकारी मेडिकल कॉलेज में हैं। यदि एमबीबीएस की सरकारी कॉलेज में कुल सीटों को हटा
दिया जाए तो महज 200 सीट हैं ऐसी है जिसका खर्च लोग उठा सकते हैं। अकेले एनआरआई और मैनेजमेंट कोटे
की सीटों की सालाना फीस ही करीब 5 हजार करोड़ रुपए है। एक सर्वे में सामने आया है कि देश के ग्रामीण इलाके

जहां डॉक्टरों की बहुत अधिक कमी हैं, वहां सिर्फ एमबीबीएस की सिर्फ 40 फीसदी सीटें हैं। इनमें से अधिकतर
सरकारी कॉलेजों में हैं। ऐसे में अब सवाल उठता है कि हम मेडिकल पढ़ाई के खर्च को कैसे देखते हैं? राष्ट्रीय
सांख्यिकी आंकड़ों के अनुसार हम प्रति व्यक्ति सालाना खर्च को देखते हैं। देश में करीब 90 फीसदी लोग असंगठित
क्षेत्र में काम करते हैं। इसमें देश की 80 फीसदी आबादी के सालाना खर्च और एमबीबीएस की सालाना फीस की
तुलना की गई। इसमें परिवार के सालाना खर्च के आधी रकम को अफोर्डबल फीस माना गया। हालांकि, यह कहना
थोड़ा वास्तविकता से हटकर होगा की एक परिवार अपने कुल खर्च का आधा हिस्सा बच्चे की मेडिकल पढ़ाई पर
लगा सकता है। हालांकि, ट्यूशन फीस के अलावा हॉस्टल चार्ज, मेस खर्च, एग्जाम फीस, यूनिवर्सिटी डेवलपमेंट फीस
भी शामिल हैं। यह एक लाख से 3 लाख तक सालाना अधिक हो सकता है। सरकारी कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई
के लिए गुजरात देश का सबसे महंगा राज्य है। अहमदाबाद और सूरत के नगर निगम संचालित मेडिकल कॉलेजों में
भी प्राइवेट कॉलेज की तर्ज पर मैनेजमेंट और एनआरआई कोटा भी है। यहां सरकारी कॉलेज में एमबीबीएस की
सालाना फीस 3 लाख रुपए से लेकर 7.6 लाख रुपए तक है। राज्य में 80 फीसदी शहरी आबादी का सालाना खर्च
3 लाख रुपए से कम है। पंजाब, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश में सरकारी कॉलेज में एमबीबीएस कोर्स की सालाना
फीस क्रमश: 1.8 लाख रुपए, 1.4 लाख रुपए और 1.1 लाख रुपए है। केंद्र सरकार के संस्थानों के अलावा बिहार
और पश्चिम बंगाल के सरकारी कॉलेजों में सालाना फीस 6500 से लेकर 9000 रुपए तक है। देश में कुल 90
हजार 800 एमबीबीएस सीटों के लिए हर साल करीब 8 लाख छात्र क्वालीफाई करते हैं। इनमें से करीब आधी सीटें
ही ऐसी है जिनकी फीस का खर्च अधिक भारतीय परिवार उठा सकते हैं। ऐसे में साफ है कि यदि मेडिकल सीटों को
दो गुना या तीन गुना भी बढ़ा दिया जाए तो भी विदेश से मेडिकल की पढ़ाई करना अपने देश की तुलना में सस्ता
पड़ेगा।


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