-सुशील देव-
पहले तांबा-पीतल, कांसा या चांदी के बर्तनों में भोजन करने का प्रचलन था। हमारी पीढ़ियों ने इसका खूब उपयोग
किया था। जमाना बदला, अब उनकी जगह स्टील, लोहा, एल्यूमीनियम, प्लास्टिक एवं चीनी मिटटी समेत कई
अन्य धातुओं से बने डिजाइनर बर्तनों के रूप में ले लिया। अब चलन बन गया है। पहले मिट्टी के बर्तनों का भी
प्रयोग किया जाता था। परंतु इन धातुओं की समझ रखने वाले लोगों के घरों में तब पीतल, तांबे या कांस्य के
बर्तन जरूर होते थे। यह उनकी संपन्नता का द्योतक भी था। इसमें कोई दो राय नहीं कि तांबे का पात्र स्वास्थ्य के
दृष्टिकोण से बेहद लाभकारी होता है। दरअसल, तांबे के पात्र पर किसी भी तरह का वायरस ज्यादा देर तक नहीं
टिक पाते हैं। कहते हैं कि तांबे के बर्तन का पानी रोज पीने से पेट में गैस, बदहजमी जैसी समस्याएं भी दूर हो
जाती हैं। फिर से लाखों घरों में तांबे के बर्तनों में रखा हुआ पानी पी रहे हैं। वैज्ञानिकों की माने तो तांबे में कोरोना
प्रतिरोधक क्षमता के गुण होते हैं। हमने कभी यह नहीं सोचा कि जिन बर्तनों में हम खाते हैं, धातु के हिसाब से वह
हमारे लिए कितना उपयोगी है?
तांबे में वायरस, बैक्टिरिया जैसे सूक्ष्म जीवों से लड़ने की क्षमता होती है। लिहाजा तांबे की बनी वस्तुएं चौबीसों घंटे
वायरस, बैक्टिरिया जैसे सूक्ष्म जीवों से लड़ रही होतीं हैं और अपने ऊपर टिकने नहीं देती। वायरस अगर तांबा से
बनी वस्तु के संपर्क में आ भी गया तो 2 घंटे में वह अपने-आप खत्म हो जाता है। अमेरिका की पर्यावरण सुरक्षा
एजेंसी ने पिछले साल फरवरी में इस बात को मान्यता दी थी कि वैसे पदार्थ जिनमें तांबा यानी कॉपर की मात्रा
95.6 प्रतिशत तक हो, वो सार्स-कोविड-2 यानी कोरोना वायरस को 2 घंटे में 99.9 प्रतिशत तक खत्म कर सकते
हैं। 10 फरवरी 2021 को जारी अपने इस बयान में यूएस-ईपीए ने कहा था कि तांबे से बने मिश्र धातु के वैसे
पदार्थ जिनमें तांबा यानी कॉपर की मात्रा अधिकतम हो, में कोरोना वायरस सहित कई अन्य वायरसों से लंबे समय
तक लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता होती है और तांबे से बने इन मिश्र धातुओं का उपयोग बहुत तरह की चीजों को
बनाने में किया जा सकता है। ऐसी वस्तुओं में दरवाजा खोलने वाला हैंडल, सीढ़ियों के किनारे लगी रेलिंग या हर
वो वस्तु शामिल हो सकती हैं जिसकी सतह को लोग सबसे ज्यादा छूते हैं। यहां इस बात का ध्यान रखना जरूरी है
कि यूएस-ईपीए द्वारा दिये गये सर्टिफिकेट को दुनिया भर में गोल्ड स्टैंडर्ड यानी सबसे बेहतर माना जाता है और
यहां से सर्टिफिकेट पाने के लिए कड़ी से कड़ी प्रक्रियाओं से गुजर कर खरा उतरना होता है। इसी तरह न्यू इंग्लैंड
जर्नल ऑफ मेडिसीन में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक तांबे से बनी वस्तुओं की सतह पर कोरोना वायरस ज्यादा
से ज्यादा 4 घंटे तक टिक सकता है, जबकि कार्ड बोर्ड पर 24 घंटे तक और प्लास्टिक या स्टेनलेस स्टील से बनी
चीजों पर यह 48 से 72 घंटे तक टिका रह सकता है।
कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई में भारत में तांबे का उपयोग बढ़ रहा है। फरवरी 2022 में विज्ञान और
प्रौद्योगिकी मंत्रालय के मुताबिक भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने कोविड-19 महामारी से लड़ाई के लिए एक
स्व-कीटाणुनाशक 'कॉपर-आधारित नैनोपार्टिकल-कोटेड एंटीवायरल फेस मास्क' विकसित किया है। यह मास्क कोविड-
19 विषाणु के साथ-साथ कई अन्य वायरल व बैक्टीरियल संक्रमणों के खिलाफ बेहतर काम करता है और यह जैव
निम्निकरण (बायोडिग्रेडेबल यानी जैविक रूप से नष्ट होने वाला), सांस लेने में सुविधाजनक और धोने योग्य है।
तांबा के नैनो कणों से मिश्रित इस कपड़े की वायरसनाशक गुणों की जांच सीएसआईआर-सीसीएमबी के वैज्ञानिकों ने
किया और पाया कि ये कपड़ा कोरोना वायरस यानी सार्स एवं कोविड-2 को 99.9 प्रतिशत तक खत्म करने की
क्षमता रखता है। इसके बाद, वैज्ञानिकों ने सिंगर लेयर और ट्रिपल लेयर जैसे विभिन्न डिजाइन वाले प्रोटोटाइप
(प्रारंभिक नमूना) मास्क का परीक्षण किया और पाया कि कोरोना वायरस से लड़ने की क्षमता के कारण तांबे के
नैनो कणों से मिश्रित कपड़े वाला यह सिंगल लेयर मास्क, एक नियमित मास्क के कहीं ज्यादा उपयोगी है।
इससे पहले रेल मंत्रालय ने जुलाई 2020 में घोषणा की थी कि रेल कोच फैक्ट्री, कपूरथला ने कोविड-19 से लड़ने
के लिए एक 'पोस्ट कोविड कोच' डिजाइन किया है। कोविड-19 वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए
बनाये गये इस कोच की खास बातों में से एक है। कॉपर कोटिंग युक्त रेलिंग व चिटकनी, जो इस कोच में विशेष
रूप से लगाई गयी हैं। रेल मंत्रालय की आधिकारिक विज्ञप्ति के मुताबिक "कॉपर के संपर्क में आने वाला वायरस
कुछ ही घंटों में निष्क्रिय हो जाता है। कॉपर में सूक्ष्मजीव-रोधी गुण होते हैं। जब कॉपर की सतह पर वायरस आता
है तो आयन रोगाणु को जोर का झटका देता है और वायरस के अंदर स्थित डीएनए एवं आरएनए को नष्ट कर
देता है। सार्वजनिक परिवहन यानी बस, ट्रेन, मेट्रो वगैरह में, जहां दिन-रात लाखों लोग यात्रा करते हैं। ट्रेन या मेट्रो
की कोचेज में लगे हैंडल्स को सबसे ज्यादा लोग छूते हैं या फिर इनमें लगीं सीटें-जहां लोग बैठते हैं, या बस स्टैंड
वगैरह को तांबे का बनाया जा सकता है। इससे यात्रियों को बनी-बनाई सुरक्षा दी जा सकती है।
भारतीय परंपरा में तांबा से बनी वस्तुओं का प्रयोग सदियों से चलता रहा है। खास करके खाने-पीने की बर्तनों में
तांबे का प्रयोग तो अभी भी देखा जा सकता है। जैसे कि तांबे से बनीं थालियां, कटोरियां, जग वगैरह। परंपरागत
रूप से ऐसा माना जाता रहा है कि तांबे के बर्तन में रात भर पानी छोड़ दिया जाए और उसी पानी को सुबह-सुबह
खाली पेट में पीने से पेट की गड़बड़ियां दूर हो जाती हैं। इसी तरह पीतल, जिसका प्रयोग हमारे देश में आम बात
है, में भी दो-तिहाई हिस्सा तांबा ही रहता है। आज से तकरीबन 2 साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने 69वें
जन्मदिन पर अपनी मां श्रीमती हीराबेन मोदी का आशीर्वाद लेने पहुंचे थे और उस वक्त उनका अपनी मां के साथ
भोजन करते हुए एक फोटो वायरल हुआ था। अगर उस फोटो को ध्यान से देखा जाय तो वो भी तांबे से बनी हुई
थाली और कटोरियां थीं, जिनमें प्रधानमंत्रीजी और उनकी मांखाना खा रहे थे। ये बातें दिखातीं है कि तांबा हमारे
जन-मानस में किस हद तक जमा हुआ है।