अयोध्या में इस बार की दिवाली ने श्रीराम के लौटने का आभास कराया

asiakhabar.com | October 28, 2017 | 4:56 pm IST
View Details

अयोध्या में मनी दिवाली ने देशवासियों को त्रेता युग का स्मरण करवा दिया। रामराज्य का साक्षी वह युग जिसमें तुलसीदास के शब्दों में दैहिक, दैविक व भौतिक तापों को लोग जानते तक नहीं थे। बड़ी प्रतीकात्मक रही अबकी दिवाली। मानव जीवन केवल रोटी, कपड़ा और मकान तक सीमित नहीं, इसमें सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रतीक जीवन में ऊर्जा, सामाजिक अनुशासन व एकता पैदा करते हैं। राष्ट्रपुरुष भगवान श्रीराम की भांति उनकी जन्मभूमि अयोध्या देश की आध्यात्मिक होने के साथ-साथ सांस्कृतिक प्रतीक भी है। पहले विदेशी शासकों और बाद में धर्मनिरपेक्षता के नाम पर तुष्टिकरण की राजनीति के चलते हमारे प्रतीकों की उपेक्षा होती रही। लेकिन इस साल अयोध्या में मनी दिवाली से देश के सांस्कृतिक प्रतीकों से अंधकार छंटता नजर आया। भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने से पहले उनकी प्रतीक्षा कर रहे भरत को मंगल होने का आभास होने लगा था। उनकी इस स्थिति का वर्णन करते हुए तुलसी बाबा कहते हैं-

भरत नयन भुज दच्छिन फरकत बारहिं बार।
जानि सगुन मन हरष अति लागे करन विचार।।
भरत की भांति अब देशवासियों के शुभता के प्रतीक दाएं अंग फरकने लगे हैं और लगने लगा है कि सदियों से जिस भारतीय संस्कृति व आध्यात्मिक प्रतीकों को वनवास झेलना पड़ रहा था उनके भी अच्छे दिन आने वाले हैं। अयोध्या में ऐसे आयोजन समय-समय पर अवश्य होने चाहिए, जिनकी गूंज देश-विदेश तक सुनाई दे। उत्तर प्रदेश की सरकार ने इस कल्पना को साकार करने का मंसूबा दिखया। सरकारी मशीनरी के साथ ही समाज का योगदान हुआ। इसने अयोध्या की दीपावली को ऐतिहासिक बना दिया। कल्पना की जा सकती है कि त्रेता में जब प्रभु राम, जानकी और लक्ष्मण अयोध्या वापस आये थे, तब ऐसा ही उत्साह रहा होगा। यह आशा करनी चाहिए कि अयोध्या में प्रतिवर्ष इसी धूमधाम के साथ दीपावली का आयोजन होगा। त्रेता युग में लौटा तो नहीं जा सकता, लेकिन उसकी कल्पना और प्रतीक से ही मन प्रफुल्लित हो जाता है। अयोध्या में ऐसे ही चित्र सजीव हुए। इस आयोजन का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू यह था कि इसमे आमजन आस्था के भाव से सहभागी बना। यह प्रसंग भी रामचरित मानस के वर्णन जैसा प्रतीत होता है।
नाना भांति सुमंगल साजे। हरषि नगर निसान बहु बाजे।।
जँह तंह नारी निछावरि करही। देहि असीस हरष उर भरही।।
ज्ञान और संस्कृति ने भारत को विश्व गुरु के गौरवशाली मुकाम पर पहुंचाया था। शांति और अहिंसा के साथ इस विरासत का विश्व के बड़े हिस्से में प्रसार हुआ। आज भी अनेक देशों ने इस विरासत को सहेज कर रखा है। वहां आज भी रामकथा जनजीवन से जुड़ी है। इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम देशों में आज भी रामलीला का मंचन होता है। भारत से गिरमिटिया बन कर गए श्रमिक अपने साथ केवल रामचरितमानस की लघु प्रति लेकर गए थे। रामकथा आज भी उनकी धरोहर है। रामलीला के अनेक रूप वहां प्रचलित हैं।
विदेशी आक्रांताओं ने भारत की सांस्कृतिक विरासत को समाप्त करने में कोई कसर नही छोड़ी थी। अपनी सभ्यता के विस्तार हेतु उन्होंने प्रत्येक संभव प्रयास किये। इसमें तलवार और प्रलोभन दोनों का खुलकर प्रयोग हुआ। लेकिन, एक सीमा से अधिक उन्हें सफलता नहीं मिली। वह शासन पर कब्जा जमाने में अवश्य कामयाब रहे। यह राजनीतिक परतन्त्रता थी, लेकिन, भारत सांस्कृतिक रूप से कभी परतन्त्र नहीं हुआ। विश्व की अन्य प्राचीन सभ्यताएं समय के थपेड़ों में समाप्त हो गईं। लेकिन, क्रू आक्रांताओं के सदियों तक चले प्रहारों के बावजूद भारतीय सभ्यता संस्कृति का प्रवाह आज भी कायम है। लेकिन, सदियों की गुलामी ने अपनी विरासत के प्रति आत्मगौरव को अवश्य कमजोर किया। विदेशी आक्रांताओं की वजह से अयोध्या उपेक्षित रह गई। यह आस्था का केंद्र तो बना रहा। लेकिन, एक प्रकार की उदासी यहां दिखाई देती थी। अपने को धर्मनिरपेक्ष बताने वाली सरकार अयोध्या से एक दूरी भी बना कर चलती थी। शायद इससे उन्हें अपनी सेकुलर छवि के लिए खतरा दिखाई देता हो। यहाँ के लिए कई योजनाएं अधूरी रह गईं। जबकि इसे विश्व पर्यटन के मानचित्र पर स्थापित करने का प्रयास होना चाहिए था।
उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार ने अयोध्या के महत्व को व्यापक सन्दर्भों में देखा है। इसमें आस्था के साथ ही पर्यटन को प्रोत्साहन देने का विचार भी समाहित है। वैसे भी दीपावली का आध्यात्मिक ही नहीं सामाजिक, सांस्कृतिक एवं पर्यावरणीय महत्व भी है। यह अंधकार को मिटाने और प्रकाश फैलाने का पर्व है। पूरा समाज इसमें सहभागी होता है।
नारी कुमुदनी अवध सर, रघुपति बिरह दिनेस।
अस्त भये बिगसत भई, निरखि राम राकेस।।
इस बार देश ही नहीं, विदेशी पर्यटक भी बड़ी संख्या में यहां पहुंचे। इस संख्या में बढ़ोत्तरी होगी। ऐसे आयोजन के लिए अयोध्या में ढांचागत सुविधाओं का भी विकास होगा। लोग अपनी इस विरासत के प्रति गर्व करना सीखेंगे। यही बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कही। इसी प्रकार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी व्यापक नजरिये के साथ चल रहे हैं। उन्होंने अयोध्या में त्रेता युग जैसी दीपावली की योजना ही नहीं बनाई, बल्कि पर्यटन बढ़ाने के उपायों पर भी सरकार विचार कर रही है। इससे उन लोगों के मुंह बंद होने चाहिए, जो अयोध्या की दिव्य दीपावली को संकुचित नजर से देख रहे हैं। पर्यटन की दृष्टि से उत्तर प्रदेश अत्यधिक संपन्न राज्य है। ताजमहल की भांति राम सर्किट योजना भी लाखों करोड़ों विदेशी पर्यटकों को खींच सकती है। इससे न केवल राज्य का ढांचागत विकास होगा बल्कि रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और संपन्नता आएगी। स्पष्ट है कि इन मसलों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व्यापक दृष्टिकोण लेकर चल रहे हैं। अयोध्या में प्रकाश-पर्व का जिस प्रकार आयोजन हुआ, उसका दूरगामी सकारात्मक प्रभाव होगा। यहाँ से निकले सन्देश का वैश्विक महत्त्व है। इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। संकेत बताते हैं कि उत्तर प्रदेश के साथ-साथ देश के दिन भी फिरने वाले हैं।
अयोध्या में इस बार की दिवाली ने श्रीराम के लौटने का आभास कराया

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *