-योगेश कुमार गोयल-
15 जनवरी को प्रतिवर्ष भारतीय सेना दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष हम 15 जनवरी को 74वां सेना दिवस मना
रहे हैं। सेना दिवस के अवसर पर पूरा देश थलसेना के अदम्य साहस, जांबाज सैनिकों की वीरता, शौर्य और उसकी
शहादत को याद करता है।
इस विशेष अवसर पर जवानों के दस्ते और अलग-अलग रेजिमेंट की परेड के अलावा झांकियां भी निकाली जाती हैं
और उन सभी बहादुर सेनानियों को सलामी दी जाती है, जिन्होंने देश और लोगों की सलामती के लिए अपना
जीवन न्यौछावर कर दिया।
15 जनवरी को ही यह दिवस मनाए जाने का विशेष कारण यही है कि 1899 में कर्नाटक के कुर्ग में जन्मे
लेफ्टिनेंट जनरल केएम करियप्पा आज ही के दिन वर्ष 1949 में भारतीय सेना के पहले कमांडर-इन-चीफ बने थे।
उन्होंने 15 जनवरी 1949 को ब्रिटिश जनरल फ्रांसिस बुचर से भारतीय सेना की कमान संभाली थी। जनरल
फ्रांसिस बुचर भारत के आखिरी ब्रिटिश कमांडर-इन-चीफ थे। 1953 में वे भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हुए और 94
वर्ष की आयु में 1993 में उनका निधन हुआ। केएम करियप्पा दूसरे ऐसे सेना अधिकारी थे, जिन्हें फील्ड मार्शल
की उपाधि दी गई थी।
भारतीय थल सेना का गठन ईस्ट इंडिया कम्पनी की सैन्य टुकड़ी के रूप में कोलकाता में 1776 में हुआ था, जो
बाद में ब्रिटिश भारतीय सेना बनी और देश की आजादी के बाद इसे 'भारतीय थल सेना' नाम दिया गया। भारतीय
सेना की 53 छावनियां और 9 आर्मी बेस हैं और चीन तथा अमेरिका के साथ भारतीय सेना दुनिया की तीन सबसे
बड़ी सेनाओं में शामिल है। हमारी सेना संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में सबसे बड़ी योगदानकर्ताओं में से एक
है। यह दुनिया की कुछेक ऐसी सेनाओं में से एक है, जिसने कभी भी अपनी ओर से युद्ध की शुरूआत नहीं की।
भारतीय सेना के ध्वज का बैकग्राउंड लाल रंग का है, ऊपर बायीं ओर तिरंगा झंडा, दायीं ओर भारत का राष्ट्रीय
चिह्न और तलवार हैं। सेना दिवस के अवसर पर सेना प्रमुख को सलामी दी जाती रही है लेकिन 2020 में पहली
बार सेना प्रमुख के स्थान पर देश के प्रथम सीडीएस बने जनरल बिपिन रावत को सलामी दी गई थी।
देश की आजादी के बाद भारतीय सेना पांच बड़े युद्ध लड़ चुकी है, जिनमें चार पाकिस्तान के खिलाफ और एक
चीन के साथ लड़ा था। देश की आजादी के बाद 1947-48 में हुए भारत-पाक युद्ध को 'कश्मीर युद्ध' नाम से भी
जाना जाता है, जिसके बाद कश्मीर का भारत में विलय हुआ था। 1962 में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा
धोखे से थाग-ला-रिज पर भारतीय सेना पर हमला बोल दिया गया था। उस जमाने में भातीय सेना के पास
स्वचालित और आधुनिक हथियार नहीं होते थे, इसलिए चीन को रणनीतिक बढ़त मिली थी। 1965 के भारत-पाक
युद्ध के बाद 1971 में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी। 13 दिनों तक चले उस युद्ध के
बाद ही पाकिस्तान के टुकड़े कर बांग्लादेश का जन्म हुआ और पाकिस्तानी जनरल नियाजी के साथ 90 हजार पाक
सैनिकों ने जांबाज भारतीय सेना के समक्ष हथियार डाल दिए थे। मई से जुलाई 1999 तक चले कारगिल युद्ध में
तो भारतीय सेना ने पाकिस्तान को छठी का दूध याद दिला दिया था।
सेना दिवस के महत्वपूर्ण अवसर पर चीन द्वारा वर्तमान में लगातार पेश की जा रही चुनौतियों के दौर में भारतीय
सेना की निरंतर बढ़ती ताकत का उल्लेख करना बेहद जरूरी है। भारतीय सैन्य बल में तेरह लाख से अधिक सक्रिय
सैनिक, साढ़े ग्यारह लाख से ज्यादा आरक्षित बल तथा बीस लाख अर्धसैनिक बल हैं। भारतीय थलसेना में 4400
से ज्यादा टैंक टी-72, टी-90, अर्जुन एमके-1, अर्जुन एमके-2 इत्यादि टैंक, 5 हजार से ज्यादा तोपें, 290
स्वचालित तोपें, 290 से ज्यादा रॉकेट तोपें तथा 8600 बख्तरबंद वाहन शमिल हैं। पूरी दुनिया आज भारतीय सेना
का लोहा मानती है।
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय थलसेना हर परिस्थिति में चीनी सेना से बेहतर और अनुभवी है, जिसके
पास युद्ध का बड़ा अनुभव है, जो कि विश्व में शायद ही किसी अन्य देश के पास हो। भले ही चीन के पास भारत
से ज्यादा बड़ी सेना और सैन्य साजो-सामान है लेकिन आज के परिप्रेक्ष्य में दुनिया में किसी के लिए भी इस तथ्य
को नजरअंदाज करना संभव नहीं हो सकता कि भारत की सेना को अब धरती पर दुनिया की सबसे खतरनाक सेना
माना जाता है और सेना के विभिन्न अंगों के पास ऐसे-ऐसे खतरनाक हथियार हैं, जो चीनी सेना के पास भी नहीं
हैं। धरती पर लड़ी जाने वाली लड़ाइयों के लिए भारतीय सेना की गिनती दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सेनाओं में होती है
और कहा जाता है कि अगर किसी सेना में अंग्रेज अधिकारी, अमेरिकी हथियार और भारतीय सैनिक हों तो उस
सेना को युद्ध के मैदान में हराना असंभव होगा।
जापान के एक आकलन के मुताबिक भारतीय थलसेना चीन के मुकाबले ज्यादा मजबूत है। इस रिपोर्ट के अनुसार
हिन्द महासागर के मध्य में होने के कारण भारत की रणनीतिक स्थिति बेहद महत्वपूर्ण है और दक्षिण एशिया में
अब भारत का काफी प्रभाव है। अमेरिकी न्यूज वेबसाइट सीएनएन की एक रिपोर्ट में भी दावा किया गया है कि
भारत की ताकत पहले के मुकाबले बहुत ज्यादा बढ़ गई है और युद्ध की स्थिति में भारत का पलड़ा भारी रह
सकता है। बोस्टन में हार्वर्ड केनेडी स्कूल के बेलफर सेंटर फॉर साइंस एंड इंटरनेशनल अफेयर्स तथा वाशिंगटन के
एक अमेरिकी सुरक्षा केन्द्र के अध्ययन में कहा जा चुका है कि भारतीय सेना उच्च ऊंचाई वाले इलाकों में लड़ाई के
मामले में माहिर है और चीनी सेना इसके आसपास भी नहीं फटकती।