-ओमप्रकाश मेहता-
आखिर भारतीय चुनाव आयोग ने सरकार की सहूलियत के अनुसार पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की घोषणा
कर ही दी, इन पांच राज्यों में उत्तरप्रदेश भी शामिल है, जो राजनीतिक दलों को केन्द्र की सत्ता का मार्ग प्रशस्त
करता है, जहां दस फरवरी से सात मार्च के बीच सात चरणों में मतदान होना है और उसके बाद देश की सियासत
का भविष्य तय करने वाले चुनाव परिणाम दस मार्च को सामने आ जाएगें। फिलहाल इन पांच राज्यों में से चार
राज्यों में भाजपा की सरकारें है, अकेले पंजाब में कांग्रेस सत्तारूढ़ है। अब इसीलिए भाजपा के लिए ये चुनाव
प्रतिष्ठा का प्रश्न बने हुए है, खासकर उत्तरप्रदेश जो देश की सबसे बड़ी विधानसभा अपने आगोश में रखे हुए है
और फिलहाल यहां भाजपा भारी बहुमत के साथ सत्तारूढ़ है।
ये पांच राज्यों के चुनाव सिर्फ सत्तारूढ़ भाजपा के लिये ही नहीं, बल्कि प्रतिपक्षी दलों के लिए काफी अहमियत रखते
है, इन चुनावुं को केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा को अपना रूतबा दिखाना है, वहीं अपनी इज्जत बचाने की भी चुनौती
भी है। खासकर पंजाब में अपनी सत्ता को सुरक्षित रखने की चुनौती कांग्रेस के सामने है, वहां भाजपा जहां
राजनीतिक पाला बदलने वाले पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के प्रति आशान्वित है, तो कांग्रेस वहां प्रदेशाध्यक्ष
सिद्धु और मुख्यमंत्री चन्नी के आपसी मतभेद में उल्झी है, हाल ही में चंड़ीगढ़ महापरिषद के चुनाव में भाजपा ने
उत्साह जनक परिणाम प्राप्त कर अपनी महापौर को चुनावाया है, इससे कांग्रेस व आप दोनों दल आश्चर्यचकित है,
भाजपा जहां अपने भविष्य के लिए महापौर के चुनाव को शुभ मान रही है, वहीं कांग्रेस आप और अकाली दल इस
परिणाम को विस्मय भरी नजरों से निहार रहे है। इन पांच राज्यों में उत्तरप्रदेश के बाद पंजाब ही अहम राज्य है,
शेष तीन राज्य उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर तीनों राजनीतिक दृष्टि से गौण राज्य है।
अब यदि इन चुनावों के परिणामों के सियासी असर पर गौर किया जाये तो जहां इन पांच राज्यों के चुनाव
परिणामों का राष्ट्रपति जी के चुनाव पर भी सियासी असर होगा, जो जुलाई माह में होने वाले है, यदि इन पांच
राज्यों में चुनाव परिणाम पहले की तरह ही आए तो फिर भाजपा को अपना राष्ट्रपति चुनने में कोई दिक्कत नहीं
होगी और अगर उलटफैर हुए तो फिर भाजपा के सामने अपनी पसंद का राष्ट्रपति लाने में कुछ दिक्कत हो सकती
है। उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ सालों में भाजपा की विधानसभा चुनावों में स्थिति कमजोर रही है।
राष्ट्रपति चुनाव के साथ ही इन पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम संसद की मौजूदा स्थिति को भी बदल
सकते है, खासकर राज्यसभा का सियासी समीकरण इन चुनाव परिणामों से अधिक प्रभावित होगा। राज्यसभा की
73 सीटों के लिए इसी साल जुलाई में चुनाव होगें, अर्थात्् एक तिहाई सीटों पर चुनाव होगें, सियासी अनुमान है
कि इन राज्यों के परिणाम प्रतिपक्षी दलों को राज्यसभा में हल्की सी बढ़त हासिल करवा सकते है, इसलिये भाजपा
के सामने राज्यसभा में अपनी इज्जत बचाकर रखने की भी गंभीर चुनौति है।
यद्यपि भाजपा की पूरी कौशिश है कि इन पांच राज्यों के चुनाव परिणामों के माध्यम से प्रतिपक्षी दलों को
सियासत की भावी तस्वीर दिखा दें, इसीलिए प्रधानमंत्री ने भी इन चुनरवों को अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा मान
लिया है और वे प्रचार में जी-जान से जुटे है, किंतु भाजपा उन खूफिया रिपोर्टो से भी परेशान है, जिन में यह
बताया जा रहा है कि पिछले कुछ सालों में देश में भाजपा की साख व प्रतिष्ठा में गिरावट आई है तथा मोदी जी
की लोकप्रियता भी कम हुई है। किंतु साथ ही भाजपा इस तथ्य को लेकर भी प्रसन्न है कि अभी तक कोई सशक्त
विरोधी दल भाजपा के मुकाबले में नहीं आ पाया है और प्रमुख प्रतिपक्षी दल कांग्रेस राजनीति के गहन चिकित्सा
इकाई (आईसीयू) में अंतिम सांस ले रही है। इस प्रकार कुल मिलाकर इन पांच राज्यों के चुनाव परिणाम हर दृष्टि
से देश की सियासत को काफी प्रभावित करने वाले है।
अब अंत में यदि चुनाव आयोग की बात की जाए तो वह भी अब स्वतंत्र व निष्पक्ष इकाई नहीं रहा उसे वही सब
करना पड़ता है जो केन्द्र में सत्तारूढ़ दल चाहता है, इसीलिए केन्द्र की सहूलियत के अनुसार चुनाव की तारीखों व
उनके नियमों की घोषणा की गई, सबसे अधिक आश्चर्य का विषय एक सप्ताह के लिए रैलियों पर प्रतिबंध लगाना
है क्या चुनाव यह भविष्यवाणी कर रहा है कि 19 जनवरी के बाद कोरोना महामारी खत्म हो जाएगी? इस प्रकार
ये चुनाव देश व देशवासियों के लिए काफी महत्वपूर्ण है।