-सिद्वार्थ शंकर-
देश में कोरोना संक्रमण का रोजाना का आंकड़ा दो लाख के करीब पहुंचने को है। संक्रमण के प्रसार की बढ़ती
रफ्तार बता रही है कि हम बड़े खतरे की ओर बढ़ रहे हैं। पर अब ज्यादा बड़ा संकट यह खड़ा हो गया है कि
कार्यस्थलों पर सामूहिक संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच चुनाव आयोग ने
पांच राज्यों- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान कर दिया
है। इन चुनावों का आयोजन इस लिहाज से भी अहम है क्योंकि ये महामारी की तीसरी लहर के बीच हो रहे हैं।
हालांकि इससे पहले पिछले साल मार्च-अप्रैल में भी पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव करवाए गए थे। तब दूसरी
लहर जोरों पर थी। उन चुनावों में कोरोना से बचाव के नियमों की खूब धज्जियां उड़ी थीं और चुनाव आयोग कोई
कार्रवाई करता नहीं दिखा था। इस वजह से आयोग को कड़ी आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा था। इसी से
सबक लेकर अब चुनाव आयोग ने इस बात का ख्याल रखा है कि पूरी चुनाव प्रक्रिया के दौरान हर स्तर पर कोरोना
से बचाव संबंधी नियमों का पालन सुनिश्चित हो। चुनाव आयोग की नसीहत को राजनीतिक दल कितनी जिम्मेदारी
और संयम से काम लेते हैं। आयोग की कितनी सुनते हैं। यह देखने वाला होगा। अब तक चुनावी सभाओं में जिस
कदर भीड़ उमड़ती रही है, उसके लिए लोगों से कहीं ज्यादा दोषी राजनीतिक दल हैं। पिछले एक महीने में सभी
दलों ने महामारी विशेषज्ञों की चेतावनियों को नजरअंदाज करते हुए चुनावी सभाएं और रैलियां कीं और
गैरजिम्मेदारी का ही परिचय दिया। इसलिए आयोग ने 15 जनवरी तक राजनीतिक दल या उम्मीदवार किसी भी
तरह की रैली, जनसभा, रोड शो, पद यात्रा, साइकिल रैली और नुक्कड़ सभाओं जैसे आयोजन नहीं कर सकेंगे,
ताकि भीड़ जमा न हो पाए। प्रचार के लिए उम्मीदवारों से डिजिटल तरीकों का इस्तेमाल करने को कहा गया है।
जिस तरह से केस बढ़ रहे हैं, उसे देखकर लगता है कि यह पाबंदी 15 जनवरी के बाद बढ़ेंगी ही। अभी पूरे देश में
कोरोना के केस तेजी से बढ़ रहे हैं। चुनाव वाले राज्यों में भी स्थिति हाथ से बाहर जाती दिख रही है। वहीं जिन
राज्यों में चुनाव नहीं है, वहां के हालात भी खराब हैं। दिल्ली पुलिस में एक हजार कर्मियों के संक्रमित होने की
खबर है। पुणे में भी पिछले कुछ दिनों में 250 से ज्यादा पुलिस जवान संक्रमित मिले। सुप्रीम कोर्ट में चार जजों
सहित 150 कर्मचारी संक्रमित हो गए। उधर, संसद के 400 कर्मचारियों में संक्रमण फैल जाने से चिंता और बढ़
गई। जेलों में कैदियों और कर्मचारियों तक संक्रमण पहुंच गया है। स्कूलों, कालेजों और छात्रावासों में बड़ी संख्या में
एक साथ कोरोना फैलना बता रहा है कि हालात अब बेकाबू होते जा रहे हैं। संक्रमण के ज्यादातर मामले उन जगहों
से ही आ रहे हैं जहां लोगों की आवाजाही ज्यादा है और लोग एक दूसरे के संपर्क में आ रहे हैं। संक्रमण से बचाव
के लिए कोरोना व्यवहार के उपायों जैसे मास्क लगाने, सुरक्षित दूरी रखने और बार-बार हाथ धोने के अलावा सबसे
ज्यादा जोर टीकाकरण पर रहा है। हालांकि सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के लिए टीकाकरण को अनिवार्य बनाया
भी। लेकिन ऐसे कर्मचारी अभी कम नहीं हैं जिन्होंने टीका नहीं लगवाया है। कई राज्यों में यह स्थिति काफी खराब
है। तीसरी लहर के हालात को देखते हुए सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे हर कर्मचारी के लिए
टीकाकरण अनिवार्य करें, खासतौर से पुलिस बल और उनके परिवारों को। दफ्तरों में मास्क और सुरक्षित दूरी के
पालन को लेकर सख्ती हो। कर्मचारियों की नियमित जांच हो। संक्रमितों के संपर्क में आने वालों का पता लगाया
जाए। हालांकि यह कवायद तभी संभव और कारगर होगी, जब लोग भी इसे अपनी जिम्मेदारी समझेंगे। पुलिस,
अदालतें या दूसरे सरकारी महकमों में संक्रमण के मामले चिंता का विषय इसलिए हैं कि इन जगहों पर कामकाज
बाधित होने से और दूसरे संकट खड़े हो सकते हैं। पुलिस का काम तो सीधे-सीधे जनता से जुड़ा है। अब तो उस पर
कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी के साथ कोरोना के हालात संभालने की भी है। कर्मचारियों में संक्रमण से अगर
अदालती कामकाज भी बाधित होने लगे तो यह चिंता की बात होगी। बड़ी संख्या में संसद के कर्मचारियों को
संक्रमण हो जाने से यह आंशका भी खड़ी हो सकती है कि बजट सत्र का काम कैसे चलेगा। जाहिर है, समस्या कम
गंभीर नहीं है।