-गोवर्धन यादव-
रात गहरा गई थी और राजा भोज तथा कवि माघ जंगल में भटक रहे थे। उन्हें जंगल से बाहर निकलने का
मार्ग सूझ नहीं रहा था। काफी यहां-वहां भटकने के बाद, उन्हें एक स्थान पर दीपक का प्रकाश दिखाई दिया।
दोनों रोशनी को देखते हुए आगे बढे। पास पहुंचकर देखा कि वहां एक झोपडी है। उसमें एक बुढ़िया बैठी हुई है।
राजा भोज और माघ कवि ने उसे प्रणाम किया और राजा ने पूछा कि यह रास्ता कहां जाता है। बुढ़िया ने कहा-
यह रास्ता कहीं नहीं जाता। मैं कई सालों से इसे यहीं देख रही हूं हां, इस पर चलने वाले आते हैं और चले जाते
हैं।, लेकिन यह बतलाओ कि तुम लोग कौन हो?
राजा ने अपना नाम न बतलाते हुए कहा- हम पथिक हैं।
राजा की बात सुनते ही बुढ़िया जोरों से हंसने लगी। और बोली- तुम झूठ बोल रहे हो। पथिक तो केवल दो हैं।
एक सूरज और दूसरा चन्द्रमा। सच-सच बताओ की तुम कौन हो?
बुढ़िया की बातें सुनकर राजा भोज चकरा गए। बुढ़िया ने सचमुच में उलझन वाली बात कही थी।
काफी सोचने-विचारने के बाद राजा ने कहा- हम मेहमान हैं। मेहमान समझकर हमें रास्ता बता दो।
बुढ़िया बोली-लेकिन मैं तुम्हें मेहमान कैसे मान लूं? मेहमान तो दो ही होते हैं। एक धन और दूसरा यौवन।
इसमें से तुम कौन हो?
बुढ़िया के तर्क सुनकर राजा निरुत्तर हो गया। राजा ने बात बढाते हुए कहा- हे माता, हम राजा हैं। अब तो
रास्ता बतला दो।
बुढ़िया फिर हंसी और बोली- राजा दो ही हैं- एक इंद्र और दूसरा यमराज। क्या तुम दोनों वही हो?
राजा ने कहा- हम वे राजा नहीं है। पर हां सामर्थ्यवान अवश्य हैं।
बुढ़िया ने कहा- तुम वह भी नहीं हो। सामर्थ्यवान केवल दो ही हैं। एक तो पृथ्वी है और दूसरी स्त्री।
राजा ने कहा- देवी..हम तो साधु हैं। अब -पया रास्ता बतला दें
साधु भी दो ही हैं। एक शनि और दूसरा संतोष। इनमें से तुम कौन हो?
समस्या गंभीर होते जा रही थी। विद्वान कवि माघ और राजा के सामने इस तरह के तर्क करने वाला व्यक्ति,
इससे पहले कभी नहीं आया था। मजेदार बात तो यह थी कि बुढ़िया बहुत ही संक्षिप्त में, तर्कसंगत-अर्थपूर्ण
और काफी गंभीर बात कह रही थी।
राजा भोज बोले- मां, हम तो परदेशी हैं। अब -पया रास्ता बतला दो।
बुढ़िया बोली- फिर वही बात। परदेशी भी दो ही होते हैं। एक जीव और दूसरा पेड का पत्ता। तुम तो इसमें से
कोई भी नहीं हो।
कवि माघ से रहा नहीं गया। वे विनम्रतापूर्वक हाथ जोड कर बोले- मां हम गरीब हैं। अब तो रास्ता बतला दो।
गरीब भी दो होते हैं। एक बकरी का बच्चा और दूसरा लड़की। अब बोलो, मैं तुम्हें गरीब कैसे मान लूं?
अच्छा, यह तो मानोगी कि हम मूर्ख नहीं है। हम चतुर व्यक्ति हैं। राजा भोज ने कहा।
चतुर भी दो होते हैं। एक अन्न और दूसरा पानी। तुम कैसे चतुर हो गए?
राजा भोज और माघ कवि बुढ़िया के तर्क करने की स्थिति में नहीं थे।
अपनी हार मानते हुए राजा ने कहा- हम हारे हुए हैं।
इस बात को सुनकर बुढ़िया ने कहा- हारे हुए भी दो होते हैं। एक कर्जदार और दूसरा बेटी का बाप।
बुढ़िया के तर्क के आगे, अब दोनों में से किसी की भी हिम्मत नहीं पड रही थी। अचानक वे मौन हो गए और
बुढ़िया की ओर कातर दृष्टि से देखने लगे।
यह देखकर बुढ़िया ने कहा- आप दोनों को मैं देखते ही पहचान गई थी। फिर इशारा करते हुए कहा- आप राजा
भोज हैं और आप माघ पंडित। राजन इस रास्ते से सीधे चले जाएं। प्रातःकाल आप दोनों अपनी नगरी में
सुरक्षित पहुंच जाएंगे.. राजा भोज और माघ पंडित ने बुढ़िया को प्रणाम किया और आगे बढ़ गए। अगले दिन
सुबह, वे अपनी धारा नगरी पहुंच गए।