नई दिल्ली। कोल्हापुर से दिल्ली आई 10 साल की श्रेया जब नैशनल वॉर मेमोरियल पहुंची
तो उसकी आंखों में अपने पिता की बहादुरी पर नाज साफ झलक रहा था। श्रेया ने अपने पिता के बारे में जो भी
जाना-समझा वह सब अपनी मां सुगंधा से जाना। जब श्रेया महज 3 साल की थी तो उसके पिता सिपाही उत्तम
भीकले लाइन ऑफ कंट्रोल पर देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए। सोमवार को श्रेया ने अपनी मां के साथ वॉर
मेमोरियल में अपने शहीद पिता को श्रृद्धांजलि दी। अब श्रेया बड़े होकर इंडियन आर्मी का हिस्सा बनना चाहती है।
शहीद उत्तम की पत्नी सुगंधा बताती हैं कि जब उनके पति शहीद हुए तब उनकी शादी को 6 साल हुए थे। 3 साल
की बेटी थी। बेटी अपने पिता के बारे में पूछती रहती थी पर तब उसे समझाना मुश्किल था कि किस तरह और
क्यों उसने अपने पिता को खोया। अब वह सब समझती है। नैशनल वॉर मेमोरियल में आकर बेटी ने अपने पिता
को और करीब से समझा।
18 मई 2014 को जब इंडियन आर्मी की 2-मराठा लाइट इन्फेंट्री के सिपाही उत्तम भीकले जम्मू-कश्मीर के अखनूर
सेक्टर में ड्यूटी पर तैनात थे, तब उन्होंने माइन में हुए ब्लास्ट की आवाजी सुनी। वह उस तरह रेस्क्यू टीम लेकर
दौड़े। वह इंजीनियर रेजिमेंट के सैनिकों को रेस्क्यू कर रहे थे तब आतंकियों ने भारी गोलीबारी शुरू कर दी। सिपाही
उत्तम ने बहादुरी का परिचय देते हुए आतंकियों से भी मुकाबला किया और घायल सैनिकों को भी रेस्क्यू किया।
आतंकियों की एक गोली सिपाही उत्तम के सीने में लगी और वह अपनी ड्यूटी पूरी करते हुए शहीद हो गए। उन्हें
मरणोपरांत सेना मेडल से भी सम्मानित किया गया।