नई दिल्ली। नीट-पीजी 2021 काउंसलिंग में देरी पर अपना आंदोलन तेज करते हुए, बड़ी
संख्या में रेजिडेंट डॉक्टरों ने मंगलवार को केंद्र द्वारा संचालित सफदरजंग अस्पताल के परिसर में विरोध प्रदर्शन
किया, जबकि कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस कर्मियों को तैनात किया गया।
एक दिन पहले विरोध ने एक नाटकीय मोड़ ले लिया, जब चिकित्सकों और पुलिस कर्मियों का सड़कों पर आमना-
सामना हुआ जहां दोनों पक्षों ने आरोप लगाया कि हाथापाई में कई लोगों को चोट लगी।
पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि डॉक्टरों की जारी हड़ताल के बीच कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए
सफदरजंग अस्पताल परिसर में सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया है।
अधिकारी ने बताया, “100 से अधिक पुलिस कर्मियों को तैनात किया गया है। यह अस्पताल में कानून-व्यवस्था
की स्थिति सुनिश्चित करने के लिए भी है। फिलहाल स्थिति सामान्य है और नियंत्रण में है। रेजिडेंट डॉक्टर यहां
शांतिपूर्वक धरना प्रदर्शन कर रहे हैं।”
सरोजिनी नगर पुलिस थाने में नाटकीय दृश्य देखे जाने के बाद सोमवार को पुलिस के साथ झड़प आधी रात तक
जारी रहने के बाद डॉक्टरों ने 'हमें न्याय चाहिए' जैसे नारे लगाए और एक-दूसरे का मनोबल बढ़ाने की कोशिश की।
सफदरजंग अस्पताल के फैकल्टी एसोसिएशन ने झड़प की निंदा की, जबकि एम्स के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन
ने सरकार से नीट पीजी काउंसलिंग में तेजी लाने के लिए अपनी योजनाओं का खुलासा करने का आग्रह किया,
जिसमें विफल रहने पर उसने 29 दिसंबर को एक सांकेतिक हड़ताल के की धमकी दी, जिसमें सभी गैर-
आपातकालीन सेवाएं बंद करना भी शामिल है।
फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (फोर्डा) की अगुवाई में आंदोलन मंगलवार को 12वें दिन जारी रहा
जबकि केंद्र द्वारा संचालित तीन अस्पतालों – सफदरजंग, आरएमएल और लेडी हार्डिंग अस्पतालों और दिल्ली
सरकार द्वारा संचालित कुछ अस्पतालों में मरीजों की देखभाल प्रभावित रही।
फोर्डा ने सोमवार को यह भी कहा था कि मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज (एमएएमसी) से उच्चतम न्यायालय तक
विरोध मार्च निकालने की कोशिश करने पर उसके कई सदस्यों को "हिरासत में" लिया गया।
फोर्डा के अध्यक्ष मनीष ने दावा किया था कि सोमवार को बड़ी संख्या में प्रमुख अस्पतालों के रेजिडेंट डॉक्टरों ने
"सेवाओं की अस्वीकृति के प्रतीकात्मक संकेत में अपना एप्रन (लैब कोट) लौटा दिया।”
वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज (वीएमएमसी) और सफदरजंग अस्पताल के फैकल्टी एसोसिएशन ने सोमवार को
दिल्ली पुलिस आयुक्त को पत्र लिखकर कहा, "वह दिल्ली पुलिस द्वारा रेजिडेंट डॉक्टरों के साथ पेश आए गए
अस्वीकार्य, क्रूर और अमानवीय तरीके की कड़ी निंदा करती है। रेजिडेंट डॉक्टरों के साथ दिल्ली पुलिस ने बेरहमी से
मारपीट की।"
उसने कहा कि आज की सभ्य दुनिया में, यह शर्म की बात है कि पिछले दो वर्ष से अथक रूप से अग्रिम मोर्चे के
कोविड योद्धाओं के रूप में काम कर रहे जूनियर डॉक्टरों के साथ “इतना कठोर व्यवहार” किया गया है।
एसोसिएशन ने कहा, “कोविड की तीसरी लहर के लगभग दस्तक देने के साथ, हर कोई फिर से चिकित्सकों से
गुहार लगाएगा कि वे अपने कर्तव्य से परे जाएं ताकि लोगों की जान बचाई जा सके। यह प्रशासन का फर्ज है कि
चिकित्सकों की शारीरिक कुशलता का ध्यान रखा जाए।”
उसने कहा, “रेजिडेंट डॉक्टर पिछले दो सप्ताह से एक कारण के लिए विरोध कर रहे हैं और कोई उचित कारण नहीं
हो सकता है कि उन्हें क्यों पीटा गया … किसी भी रूप में हिंसा किसी भी पक्ष से की गई हो, हमारी एसोसिएशन
उसकी निंदा करती है।”
हालांकि, पुलिस ने सोमवार को अपनी ओर से लाठीचार्ज या अभद्र भाषा के इस्तेमाल के किसी भी आरोप से
इनकार किया और कहा कि 12 प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया और बाद में रिहा कर दिया गया।
एम्स आरडीए ने सोमवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया को पत्र लिखकर डॉक्टरों के खिलाफ कथित
"पुलिस के अत्याचारों" की निंदा की। उसने कहा कि वे 42,000 से अधिक डॉक्टरों के प्रवेश के लिए नीट पीजी
काउंसलिंग में तेजी लाने के लिए शांतिपूर्वक विरोध कर रहे थे।
उसने आरोप लगया, “डॉक्टरों की बेरहमी से पिटाई और हिरासत में लेकर पुलिस और सरकार बेहद निचले स्तर पर
चली गई।”
एम्स आरडीए ने कहा, “इस दिन को चिकित्सा समुदाय के लिए काले दिवस के रूप में याद किया जाएगा।”
पुलिस ने सोमवार की रात कहा कि कोविड उल्लंघन, दंगे और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में
भारतीय दंड संहिता (भादंसं) की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है।